इस साल के शुरू में डायरेक्टर एसएस राजामौली की मैमथ RRR आई थी. और अब अंत में आई है - Avatar: The Way of Water. पहली वाली फ़िल्म इंडियन सिनेमा, उसकी स्टोरीटेलिंग, एक्शन, वीएफएक्स के लिए ऐतिहासिक और बेजोड़ थी. वहीं अवतार-2 पूरी दुनिया के सिनेमा के लिए हिस्टोरिकल है. सिनेमा की दुनिया के चक्रवाती तूफान स्टैनली कुबरिक ने कहा था - If it can be written, or thought, it can be filmed. अवतार-2 ने, "क्या फिल्म किया जा सकता है और दर्शक की नजर को दग़ा देकर काल्पनिक को भी कितना रियल बनाया जा सकता है", इसके होराइज़न को बहुत बड़ा कर दिया है. फ्यूचर फिल्ममेकिंग को ये फिल्म कितना बदल जाएगी इसका अभी अंदाजा भी लगा पाना मुश्किल है. ये फिल्म अपने साथ सीजीआई, मोशन कैप्चर, 3डी कैमराज़, सॉफ्टवेयर्स, रिग्स के मामले में जितना इवोल्यूशन लेकर आई है, वो न जाने भविष्य के सिनेमा को कितने असंभव संसार रचने में सक्षम करेगी. न जाने कितने ऐतिहासिक, अनदेखे पात्रों को यकीनी तौर पर इस इवोल्यूशन के जरिए जिंदा किया जा सकेगा.
अवतार - द वे ऑफ वॉटर: फ़िल्म रिव्यू
सिनेमा अब बदल जाएगा.

इस फिल्म को रचा है जेम्स कैमरॉन ने. इसके डायरेक्टर वे हैं. कहानी भी उनकी है. विश्व सिनेमा की शब्दावली में उन्हें आप ऑटर बोल सकते हैं - वो जो फिल्म के हर रचनात्मक विभाग का उद्गम व्यक्ति होता है, वो जो फिल्म को सिंगल हैंडेडली बनाता है - जाहिर है सैकड़ों, हजारों अन्य क्रिएटिव जीनियसेज़ के साथ मिलकर ही.
जेम्स को न जानते हों तो इन्होंने इससे पहले एलियंस, टाइटैनिक, पिरान्हा 2, टर्मिनेटर जैसी फिल्में बनाई हैं. इनकी पिछली फिल्म थी अवतार जो 2009 में आई थी और कमाई के मामले में आज भी दुनिया की नंबर एक फिल्म है. इससे पहले इन्होंने बनाई थी टाइटैनिक, वो भी कमाई के लिहाज से दुनिया की नंबर एक फिल्म थी. ये कलेक्शन वगैरह मैटर नहीं करते. सिर्फ संदर्भ के लिए ये ज़िक्र है कि इन्होंने कमर्शियल सिनेमा में दुनिया भर के हर फिल्म मार्केट में दर्शकों को जकड़ा है. यानी इनकी स्टोरीटेलिंग कारगर रही है.
तो कैसी है अवतार-2.
चाक्षुक, इमर्सिव, अंचभे में डालने वाली, अनबिलीवेबल, और सिनेमाई लिहाज से एकदम नया एक्सपीरियंस.
मोशन कैप्चर इससे पहले भी देखा है लेकिन इस फिल्म जैसा रिफाइन्ड और रियल कभी नहीं देखा है.
लगता ही नहीं कि कोई टेक्नीक दर्शक और विजुअल के बीच में है. पैंडोरो ग्रह की अनुपम दुनिया, मरीन इकोलॉजी, जीव-जंतु, बायो लूमनेसेंस वाले जंगल, कीट, पतंग, मछलियां. सब विलक्षण. डायरेक्टर जॉनी ह्यूज़ की 2020 में आई डॉक्यूमेंट्री David Attenborough: A Life on Our Planet में भांत भांत के वन्यजीवों को और अंडरवॉटर जीवों को देखकर विस्मय और वंडर हुआ था. अवतार-2 में नीले परग्रही ह्यूमनॉयड्स और इस ग्रह की जैव विविधता को देखते हुए लगता नहीं कि ये सब एकदम काल्पनिक तत्व हैं, बल्कि लगता है कि उस डॉक्यूमेंट्री की तरह ही कोई फिल्ममेकर इस छुपी हुई दुनिया में गया है और वहां जाकर चमत्कारिक ढंग से शूट कर आया है.
इस अवतार सीरीज़ की कहानी शुरू हुई थी साल 2154 में. आज से कोई सवा सौ साल आगे. जब धरती पर सारे प्राकृतिक संसाधन खत्म हो चुके हैं. और रिसोर्स डिवेलपमेंट एडमिनिस्ट्रेशन नाम की एक अमेरिकी कंपनी पैंडोरा नाम के एक ग्रह, जो कि असल में एक चंद्रमा, है उसके दुर्लभ खनिजों और संपदा को लूट रही है. धरती जैसे दिखने वाले इस ग्रह के वासी कहलाते हैं - नावी. जो ह्यूमनॉयड हैं. यानी गैर-इंसान, लेकिन इंसान जैसे दिखने वाले. ये इस बाहरी आक्रमणकारियों से लड़ रहे हैं. इन आक्रमणकारियों की फौज में नेतृत्व कर रहा है कर्नल क्वारिच का दुष्ट किरदार. एक सीन में वो अपने रीकॉन सैनिक जेक से कहता है -
ये पूरा अवतार प्रोग्रैम ही एक जोक है. कुछ लल्लू साइंटिस्ट अपनी में लगे हैं. लेकिन हमारे पास गजब का मौका है. मैं और तुम. अवतार की बॉडी में एक टोही सैनिक के तौर पर तुम, मुझे बागियों के कैंप से ज़मीनी इंटेल लाकर दे सकते हो. मैं चाहता हूं तुम जाओ और उन बर्बर, जंगली जानवरों का भरोसा जीतो. पता लगाओ, किस तरीके से हम उनका सहयोग हासिल कर सकते हैं और अगर वे न मानें तो कैसे उन पर हमला बोल सकते हैं.
इस एक सीन में दो बातें हैं. आगे दोनों का उल्टा होता है. अवतार 2 तक आते आते सब सिर के बल खड़ा हो जाता है.
क्वारिच का टोही अंततः उन्हीं "बर्बर जंगलियों" में से एक बन जाता है. नावी बन जाता है. दूसरी ओर क्वारिच जिस अवतार प्रोग्रैम को जोक बता रहा होता है, उसी की बदौलत अवतार 2, 3, 4 वगैरह में अपनी राह बना पाता है. अवतार के अंत में नेतीरी का तीर उसे मार देता है. अवतार द वे ऑफ वॉटर में वो इसी अवतार प्रोग्रैम की मदद से पुनर्जीवित होता है. और अपने इसी टोही जेक सली से इंतकाम लेने निकलता है.
अवतार द वे ऑफ वॉटर, पहली मूवी के कोई दस साल बाद शुरू होती है. जेक और स्थानीय नावी यौद्धा नेतीरी में प्यार हो गया था. अब उनके बच्चे हो चुके हैं. बच्चे बड़े हो रहे हैं तेजी से. इतने छुटपने में ही इन बच्चों की हाइट इंसानों से ऊपर है. फिल्म के शुरू में हम जेक को अपने कबीले के साथ मिलकर आरडीए वालों की ट्रेन लूटते देखते हैं. ये सीन देखते हुए लगा जैसे वे उन क्रांतिकारियों जैसे हों जिन्होंने 1925 में काकोरी में ट्रेन लूटी थी. यहां जेक सली का सफेद धारी पुता चेहरा ब्रेवहार्ट के मेल गिब्सन की याद दिलाता है.
बड़े होते बच्चों की गलतियों के बीच पिता जेक कैसे रिएक्ट करता है. उसके बच्चे क्या क्या जोखिम लेते हैं, क्या एडवेंचर करते हैं, उनके क्या व्यक्तित्व होते हैं, उनकी क्या इंडिविजुअल कहानियां हैं जो आगे की अवतार फिल्मों को लीड करेंगी. ये सब दिखता है. आगे हम ये भी जानते हैं कि सली परिवार समुद्र किनारे बसे मैटकाइना कबीले में क्यों चला जाता है. वहां उनके साथ क्या होता है. क्या लड़ाईयां वे अमेरिकी कोलोनाइजर्स से लड़ते हैं, क्या दुख वे झेलते हैं. आदि.
एक एलियन स्टोरी होने के अलावा अपने कोर में ये एक फैमिली सागा है. फैमिली स्टोरीज़, जैसे कि द गॉडफादर सीरीज, अमेरिकी कमर्शियल सिनेमा की बुनियाद है. अमेिरका का पूरा पॉपुलर कल्चर ही परिवार की थीम पर बना है. यहां के राष्ट्रपति बनने के लिए अच्छा फैमिली मैन होना ग्रेट एडवांटेज देता है वोटर्स के बीच.
ख़ैर. अवतार (2009) में एक सीन है जिसमें पार्कर सेलफ्रिज (जियोवानी रिबिसी) एक पत्थर हाथ में लेते हुए कहता है -
इसी के लिए हम यहां हैं. नाम - अनओब्टेनियम. क्योंकि ये ग्रे पत्थर 20 मिलियन डॉलर प्रति किलो के हिसाब से बिकता है. इसी से हमारे बिल चुक रहे हैं.
वहीं अवतार-2 में हम देखते हैं कि जंगलों, पहाड़ों से दूर पैंडोरा के समुद्री इलाकों में इससे भी दुर्लभ एक चीज है जिसके लिए धरती के शिकारी शांत समुद्री जीवों को मारने में लगे हैं.
अवतार 2 में अमेेरिकी ही हीरो हैं. अमेरिकी ही कोलोनाइजर हैं. एक समय में जो काम ब्रिटिशर्स और दूसरे साम्राज्यवादियों ने धरती पर किया, वो यहां पर भी अमेरिकी कर रहे हैं. वे जब चाहें यहां के कबीलों में हथियार लिए घुस आते हैं और मारपीट अत्याचार करते हैं.
फिल्म में मोशन कैप्चर वाले नावी ह्यूमनॉयड्स के चेहरों के एक्सप्रेशन चकित करने वाले हैं. खासकर जेक सली के छोटे बेटे का पात्र तो कुछ सीन में बहुत इवोकेटिव लगता है. अविश्वनीय रूप से नेचुरल भाव. या फिर पानी वाले सीन. जहां पानी के अंदर से कोई बाहर आता है और छींटे उछलते हैं. उसे आप कंप्यूटर जनरेटेड कह ही नहीं सकते. किन्ग कॉन्ग, गोलम (द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स), कैप्टन डेवी जोन्स (पायरेट्स ऑफ द करेबियनः डेड मैन्स चेस्ट) जैसे मोशन कैप्चर किरदारों ने अवतारों से पहले तक का इवोल्यूशन किया इस तकनीक का. उसके बाद जेम्स इसे मीलों आगे ले आए. इतना आगे कि सिनेमा अब पहले जैसा नहीं रहेगा.
इस फ़िल्म के थ्रीडी इफेक्ट की बात करें तो इसका मतलब हमारे लिए ये रहा है ट्रेडिशनली कि परदे के अंदर कोई डायनोसोर है, कोई जीव है, कोई नुकीला हथियार है, या तेजी से हमारी ओर बढ़ रही कोई खूंखार सेना है, तो इन्हें देखकर लगता है कि परदे से बाहर निकलकर ये सीट पर हमी से आ टकराने वाले हैं. अवतार -2 में जेम्स कैमरॉन द्वारा इस तरह की चाह नहीं दिखती. यहां परदे से बाहर बस कुछ आता है तो बरसात की कुछ बूंदे जो लगता है कि थियटर में गिर रही हैं.
पैंडोरा के जीव सबसे खास हैं. ये इस फिल्म की आत्मा भी हैं. यहां के नावियों का दूसरे जीवों से रिश्ता सर्वोपरि है. यहां पर एक विशालकाय समुद्री प्राणी है, छोटी व्हेल मछली जैसा. उसे समुद्र किनारे के नावी अपने परिवार का सदस्य मानते हैं. अगर कोई उसका शिकार करे तो नावी छोड़ते नहीं. फूट फूटकर रोते हैं. सन्नाटा पसर जाता है. अपने आसपास की हर एक चीज का इस्तमेाल इस ग्रह/चंद्रमा पर वन-वे नहीं होता. पहले आत्मीयता का रिश्ता जोड़ना होता है. उसके बाद साथ मिलता है. जैसे जिस छोटे समुद्री जीव की नावी सवारी करते हैं, या फ्लोटिंग माउंटेन्स पर रहने वाले विशाल पक्षी की सवारी करते हैं. इन सबसे जुड़ना पड़ता है. अपनी और उसकी मैमोरी को एकाकार करना पड़ता है. जैसे इंसान को घोड़े की सवारी करनी है तो रोज उसके साथ समय बिताना होता है. उसके साथ अपनापन जोड़ना होता है. जैसे महाराणा प्रताप और चेतक की कहानी सुनने में आती है. वैसा ही पहलू यहां है. एक सीन है जिसमें केट विंस्लेट का किरदार रोनाल उस विशाल समुद्री प्राणी के मारे जाने पर विक्षिप्त होकर रोता है. वो फिल्म के सबसे इमोशनल सीन्स में से एक है.
जेम्स कैमरॉन का अवतार के कनेक्ट के बारे में जो कहना है, वो इस पार्ट पर भी खरा उतरता है. उन्होंने कहा था कि दुनिया की सारी संस्कृतियों में पहली अवतार की गजब की अनुगूंज रही. जहां भी फिल्म रिलीज की गई, वहां नंबर 1 थी. ये फिल्म हर तरह की कल्चरल बाउंड्री के परे गई. क्योंकि ये फिल्म मानव अनुभवों के कुछ सार्वभौमिक पहलुओं के बारे में है. इनमें कुछ ऐसे है कि जब आप छोटे होते हो, युवा होते हो तो मन में जो बच्चों जैसा आश्चर्य का भाव होता है, तब आप प्रकृति से और अपने सपनों से, फैंटेसी से ज्यादा जुड़े होते हैं. इस फिल्म ने यूं ही कनेक्ट किया हर देश के लोगों से - चाहे आप चीन में हो, फ्रांस में हों या साउथ अमेरिका में हों. जेम्स ने कहा ता कि जब हम यंग थे और प्रकृति हमारे आसपास की जीती जागती चीज थी तब हम उसका हिस्सा होना चाहते थे. लेकिन बाद में हम वो मनःस्थिति खो देते हैं जब हम बड़े होते हैं, जब हम किसी शहर चले जाते हैं पढ़ने या नौकरी पाने. या फिर वो लोग जो शायद किसी शहर में ही पले पढ़े हैं और उन्होंने कभी ये सब देखा नहीं और इसकी उत्कंठा रखते हैं. अवतार ने उसी मनःस्थिति से कनेक्ट किया.
जेम्स कहते हैं - "मैं इसे Nature Deficit Disorder कहता हूं. मुझे लगता है हम सभी इससे किसी न किसी स्तर पर पीड़ित हैं, अपनी टेक्नोलॉजिकल दुनिया में. अवतार हमें एक कल्पना में मौजूद मनःस्थिति में ले जाती है जो प्रकृति के मूल चक्र के करीब ले है. जो प्रकृति से, पर्यावरण से, समुदायों से ज्यादा कनेक्टेड है. अवतार कनेक्टिविटी के बारे में है. डिजिटल कनेक्टिविटी नहीं, बल्कि सच्ची कनेक्टिविटी. ये बिलॉन्गिंग के बारे में भी है, जिस जगह से हम ताल्लुक रखते हैं - चाहे हमारा परिवार हो, प्रेम हो, चाहे वो चीज हो जिसके लिए हम लड़ जाएंगे. जैसे जेक सली, जो एक बाहरी है, एलियन है. वो आता है. मेहनत करता है. प्यार में पड़ जाता है. वो मूवी में कहता भी है कि मैं यहां के जंगल, यहां के लोगों और तुम्हारे (नेतीरी) प्यार में पड़ गया."
अवतार-2 कुछ ऐसा ही अनुभव है. कमर्शियल सिनेमा में पर्यावरण और उसके विनाश की बात इतने बड़े स्तर पर कम ही फिल्मों में हो रही है. और अवतार तो शीर्ष फिल्म है उस लिहाज से. तो ये लाजवाब बात है. लेकिन मल्टीप्लेक्स की कुर्सियों पर बैठे लोग इन सब बातों को मनोरंजन के इतर कितना आत्मसात करते हैं और अपनाते हैं, ये स्पष्ट नहीं है. बल्कि संदेहास्पद ही है. जबकि ये इफेक्ट अगर पुख्ता तौर पर ये फिल्म कर जाती तो इसके मायने ही कुछ और होते.
फिलहाल, अवतार-2 एक टेक्नीकल मार्वल है. वहां कोई दोराय नहीं.
'अवतार 2' ने रिलीज़ से 10 दिन पहले ही एडवांस बुकिंग का रिकॉर्ड तोड़ डाला














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