वेब सीरीज़ ‘असुर’ के इस मोनोलॉग को सुनकर आपको ‘वी फ़ॉर वेंडेटा’ के एक मोनोलॉग की याद आ सकती है-दुत्कार, मानव समाज की प्रथम प्रतिक्रिया होती है, जब उनकी मान्यताओं पर प्रहार किया जाए. फिर चाहे वो प्रहार उनके स्वयं के हित के लिए ही क्यों न हो. क्योंकि सामान्य मनुष्य का सीमित ज्ञान उसे स्वयं से परे देखने नहीं देता. फिर चाहे वो मानव जीवन हो, वास्तुक्रिया या नए विचार. ब्रह्मांड में नवजीवन का सिंचन, पुराने खंडहरों की राख से ही जन्म लेता है. अश्रु, रक्त, पीड़ा, निराशा. एक साधारण मनुष्य इस मार्ग पर चलकर अजेय बन सकता है. क्योंकि विचारों की आयु मानव जीवन से कहीं अधिक है.
We are told to remember the idea, not the man, because a man can fail. He can be caught, he can be killed and forgotten, but 400 years later, an idea can still change the world.साथ ही जिस तरह की हिंदी का इस्तेमाल इस डायलॉग में किया गया है, आपको ‘तुम्बाड’ भी याद आ सकती है.
'असुर'. पूरा नाम- 'असुर: वेलकम टू योर डार्क साइड'. आठ एपिसोड की वेब सीरीज़. ‘वूट सेलेक्ट’ नाम के ओटीटी (स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म) पर स्ट्रीम हो रही है. हर एपिसोड पौने घंटे का है. सिर्फ़ लास्ट वाले को छोड़कर, जो एक घंटे से कुछ लंबा है.
इसे लिखा गौरव शुक्ला, विनय चावला और निरेन भट्ट ने है. डायरेक्ट किया है ओणी सेन ने.

# कहानी-
कहानी तीन किरदारों के इर्द-गिर्द बुनी गई है-
1) 15 साल पहले, बनारस के एक पंडित का बच्चा, शुभ. जिसको उसका बाप ‘असुर’ पुकारता है. दुत्कारता है. क्योंकि एक तो उसके पैदा होते ही उसकी मां मर जाती है. दूसरा वो उस नक्षत्र में पैदा नहीं होता, जिसकी उसके पिता को उम्मीद थी. हालांकि इस बच्चे का आईक्यू बहुत ही तेज़ है, लेकिन बड़े होकर ये सीरियल किलर बन जाता है. अव्वल तो अपने ‘ट्रबल्ड पास्ट’ के चलते और साथ ही इसने शास्त्रों, वेदों को पढ़कर अपनी एक अजब सी आइडियोलॉजी बना ली है.
2) निखिल नायर, जो पहले सीबीआई की फ़ोरेंसिक टीम में काम करता था, लेकिन अब अमेरिका में पढ़ाता है. इसे वापस इंडिया आना पड़ता है. क्योंकि कोई है, जो इसे इंडिया वापस बुला रहा है. एक ट्रैप बुन रहा है.
3) डॉक्टर धनंजय राजपूत, जो सीबीआई की फ़ोरेंसिक टीम में टॉप पोस्ट पर है. लेकिन पहले ही एपिसोड में अपनी पत्नी, संध्या के क़त्ल के इल्ज़ाम में जेल पहुंच जाता है.

दर्शकों को ‘असुर’ यानी कहानी के मेन विलेन का सिर्फ़ बचपन ही पता है. अब, यानी बड़े होकर ये असुर कौन है, यही कहानी का सस्पेंस है. साथ में सवाल और भी हैं-
# असुर, निखिल और डॉक्टर धनंजय राजपूत के बीच क्या कनेक्शन है?इन सवालों को ढूंढने के दौरान ज़्यादातर टाइम इस वेब सीरीज़ की स्क्रिप्ट दर्शकों से दो क़दम आगे रहती है. और अगर आप कोई सस्पेंस गेस कर भी लेते हैं, तो वो भी इसलिए क्योंकि सीरीज़ के निर्माता ऐसा चाहते हैं.
# असुर, उनको क्यों मार रहा है, जिनको मार रहा है? पैटर्न क्या है? मोटिव क्या है?
# क्या असुर आसपास का ही कोई है? टीम मेंबर? रिश्तेदार?
# क्या डॉक्टर धनंजय राजपूत ने ही संध्या का क़त्ल किया है? और अगर नहीं किया है, तो फिर किसने किया?
# और फ़ाइनली, क्या है इन तीन लीड कैरेक्टर्स का पास्ट, जो सिर्फ़ सीरियल मर्डर के चलते ही नहीं, पर्सनली भी इनको कनेक्ट करता है.

# क्या अच्छा है, क्या बुरा है-
चलिए इस सीरीज़ को देखने के दौरान के कुछ ऑब्जर्वेशन्स आपको पॉइंट्स में बताते हैं-
# ‘असुर’ के पहले कुछ सीन और एपिसोड ‘क्लिशे’ से भरे पड़े हैं. जैसे पति-पत्नी के बीच की लड़ाई, सपना पूरा करने के लिए सब कुछ छोड़ देना. इस दौरान ये थोड़ी बोरिंग भी लगती है. लेकिन इंतज़ार रंग लाता है और दूसरे तीसरे एपिसोड से आपकी स्थिति ये हो जाती है कि ‘पूरा देखकर ही उठना है.’
# कहीं पढ़ा था-
जितना सशक्त किसी कृति का खलनायक होता है, उतनी ही सशक्त वो कृति होती है.शायद ‘असुर’ को लिखने वालों को ये बात पता चल गई होगी. जैसे ‘थानोस’ या ‘जोकर’ को गढ़ते वक़्त उनके लेखकों को. इसलिए ही आपको इसके विलेन को देखकर ‘जोकर’ की याद आ सकती है. ‘दी डार्क नाइट’ का वो निर्लिप्त जोकर जो अपनी कमाई वाला सारा हिस्सा जला देता है.
# ‘असुर’ में एक सीक्वेंस है, जहां पर तीन लोगों को एक कमरे में बंद कर दिया जाता है और ज़िंदा रहने के लिए एक-दूसरे को मार डालने का विकल्प दिया जाता है. इस सीन को देखकर फिर से आपको ‘दी डार्क नाइट’ के उस सीन की याद आएगी, जहां जोकर ये विकल्प देता है कि दो जहाज़ों में से सिर्फ़ वही एक जहाज़ बच पाएगा, जिसके बंदे सबसे पहले दूसरे जहाज़ को उड़ा देंगे. हालांकि आश्चर्यजनक तौर पर ‘असुर’ में रिज़ल्ट ‘दी डार्क नाइट’ से बिलकुल अलहदा रहता है.

# इंट्रेस्टिंग बात ये है कि सीरीज़ कई जगहों पर ‘लॉ ऑफ़ कर्मा’ की बात करती है, लेकिन अपने क्लाइमैक्स में नैतिक होने का या जस्टिस करने का लोड नहीं लेती. और यूं, अगर सस्पेंस को छोड़ भी दिया जाए, तो भी एक यूनिक सी एंडिग देखने को मिलती है. होने को इस एंडिंग को आप इस सीरीज़ के अगले सीज़न का क्लिफहैंगर भी कह सकते हैं, लेकिन कई मायनों में ये अपने आप में भी पूर्ण है. कुछ-कुछ ब्रेड पिट की मूवी ‘सेवन' सरीखी. (माइनस जस्टिस)
और इन सब चीज़ों के चलते लास्ट वाले एपिसोड का नाम भी, ’एंड इज दी बिगनिंग’ काफ़ी सटीक लगता है.
# यही ‘नैतिक’ न होने वाला पॉइंट, दोनों नायकों को ग्रे शेड देता है, वास्तविक बनाता है. जैसे, जहां डॉक्टर धनंजय राजपूत एक अपराधी को सज़ा दिलवाने के लिए फ़र्ज़ी डॉक्यूमेंट्स बनाता है. वहीं निखिल का किरदार अपने परिवार की ख़ातिर, खलनायक के हाथ का हथियार बन जाता है.
# कुछ नेगेटिव तो ख़ैर हम डिस्क्स करेंगे ही, लेकिन ये बात नेगेटिव नहीं इस सीरीज़ की एक और अच्छी बात है. कि अगर ये सीरीज़ कहीं-कहीं आपको किसी थ्रिलर मूवी/नॉवल से इंस्पायर्ड लगे भी, तो वो यक़ीनन कुछ बेहतरीन थ्रिलर्स से लगेगी. जैसे इसकी ट्विस्टेड फ़िलॉसफ़ी आपको अनुराग कश्यप की मूवी ‘नो स्मोकिंग’, किदार शर्मा की ‘चित्रलेखा’ या हॉलीवुड साई-फ़ाई ‘मैट्रिक्स’ की याद दिला सकती है. बिना स्पॉइलर के बताएं तो आपको विलेन का ‘एकवचन से बहुवचन’ हो जाना, ‘फ़ाइट क्लब’ मूवी में फ़ाइट क्लब के मेंबर्स भी याद दिलाता है-
यत्र तत्र सर्वत्र.

# फ़ोरेंसिक साइंस को भी यक़ीनन साइंस की तरह ही दिखाया गया है. सीआईडी सीरियल से बिलकुल अलग. यूं फ़ोरेंसिक साइंस, ‘असुर’ का एक बड़ा प्लस है और इस डिपार्टमेंट में काफ़ी रिसर्च की गई लगती है.
# ‘असुर’ की कुछ बेहतरीन चीज़ों में शामिल है, किरदारों की एक्टिंग. 'मुन्नाभाई' की कॉमेडी, उसके बाद ‘धमाल’ और ‘पागलपंती’ के छिछोरेपन के बाद आपको अरशद वारसी का ‘असुर’ वाला ‘नो नॉनसेंस’ लुक भी देखना चाहिए. आपको लगेगा कि बंदा वर्सेटाइल है.
एक्टिंग बरुन सोबति ने भी अच्छी की है, लेकिन उनका कैरेक्टर बड़ा डिप्रेसिंग सा है. डल. सरप्राइज़ ऐलिमेंट रहे हैं, शारिब हाशमी. लोलार्क दुबे के किरदार में. उनका किरदार न अरशद वारसी के किरदार की तरह ‘नो नॉनसेंस’ है, न बरुन सोबति की तरह डिप्रेसिंग. थोड़ा बहुत ह्यूमर भी उनके ही खाते में आया है. शुभ के रोल में चाइल्ड आर्टिस्ट विशेष बंसल भी प्रभावित करते हैं. इतना कि शायद अब बॉलीवुड में इन्हें काम की कमी न पड़े. एमी वाघ भी अपने किरदार में अच्छे से उभर कर आए हैं.
बाक़ी सब भी प्रोफ़ेशनल ऐक्टर्स हैं, जिन्होंने अपना काम बेहतर ढंग से किया है.

# बैकग्राउंड म्यूज़िक बहुत बेहतरीन है और सीरीज़ को सस्पेंस और थ्रिलर वाला टेंपलेट देने की क्षमता रखता है.
# स्क्रिप्ट की सबसे बड़ी दिक्कत की बात करें, तो स्पष्ट नहीं होता मर्डर बदले के लिए किए जा रहे हैं या विलेन की ‘ट्विस्टेड फ़िलॉसफ़ी’ के चलते.
# डॉक्टर धनंजय राजपूत का किरदार कई जगहों पर साइंस, लॉजिक या सबूत के बदले इंस्टिंकट पर भरोसा करता है, जो हज़म नहीं होता. ख़ासतौर पर जब वो सीबीआई में एक ऊंचे पद पर है और उसके नाम के पीछे डॉक्टर लगा है.
# कुछ चीज़ों के उत्तर नहीं मिलते, जैसे- हर क़त्ल होने वाले की अंगुली क्यों काटी गई? ये ग़लती आप इसलिए माफ़ कर सकते हैं कि शायद इसका दूसरा सीज़न आए, लेकिन फिर भी इस दिशा में कोई डिवेलपमेंट भी तो नहीं होता.

# रिवर्स इंजीनियरिंग. यानी कुछ चीज़ें ‘रिवर्स ऑर्डर’ में लिखी गई लगती हैं. उदाहरण से समझाते हैं-
जैसे अगर इस सीरीज़ के लेखक को दिखाना है कि क़त्ल होने वालों की कुंडली में कुछ कॉमन है. तो लेखक, इंवेस्टिगेशन करने वाले किरदारों को कैसे न कैसे करके सभी मारे गए लोगों की कुंडली देखने का आइडिया दिलवाएगा.फिर चाहे इसके लिए कितना ही असंभव प्लॉट रचना पड़े. फिर चाहे किसी की ढेर सारी अंगूठियों को देखने भर से ही किरदारों को ये आइडिया आए.
# कहावत है कि ईश्वर की विशालता का ज्ञान आपको इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि आपका दिमाग़ सीमित है. ठीक यही बात ‘असुर’ के शुभ के साथ भी लागू होती है. लेखक ने अगर उसका आईक्यू इतना ज़्यादा बनाया है, तो लेखक का आईक्यू उससे भी ज़्यादा होना चाहिए, वरना ये किरदार बड़ी ग़लतियां कर जाएगा. जैसे एक जगह ये असुर/शुभ कहता है-
तुमको अपनी फ़ैमिली और मेरे धर्म में से एक चुनना है.जबकि असुर की बातों में फ़ैमिली और धर्म एक ही पाले में थे.
यूं, कहा ऐसा कुछ जाना चाहिए था-
तुमको अगर अपनी फ़ैमिली चुननी है, तो मेरा धर्म भी चुनना होगा.सोचिए, विलेन इतना शातिर और हाई आईक्यू वाला है कि मुश्किल से मुश्किल जगह जाकर कत्ल कर देता है. विदेश में रह रहे बंदे को ट्रैप कर लेता है. लेकिन इतना सब होने के बावजूद मर्डर करने के आडियाज़ दूसरे किरदार से मांगता है.
# कहानी बहुत ज़्यादा 'पुरुष प्रधान' है. नैना लीड की बीवी है और मेन प्लॉट में उसका रोल सिर्फ़ एक फ़ायरवॉल सिक्यूरिटी तोड़कर खानापूर्ति भर कर देने का है. बाक़ी समय उसका काम निखिल से ग़ुस्सा रहना है. नैना का किरदार अनुप्रिया गोयंका ने निभाया है.
यही हाल सीबीआई में काम करने वाली नुसरत सईद का भी है, जो एक 'प्रेमिका' भर लगती है और अपने पुराने प्रेमी को सोशल मीडिया पर स्टॉक करती है. ये किरदार रिद्धि डोगरा ने प्ले किया है. तब जबकि एक वक़्त उसे सीरियल किलिंग को इंवेस्टिगेट कर रही टीम का हेड बना दिया जाता है, फिर भी वो कहीं नेपथ्य में ही दिखाई देती है. अधिकतर.
इन दोनों की ही एक्टिंग अच्छी है. हमने इनकी चर्चा भी अलग से इसलिए की, ताकि ये बात प्रॉमिनेंट हो सके. क्योंकि रिव्यू करते वक़्त हमें ये बात बेतरह खटकती रही.
# स्टोरी डेवलपमेंट में एक्शन के बदले नरेशन को ज़्यादा भाव दिया लगता है. ये एक ऑडियो विजुआल कंटेंट की सबसे बड़ी ख़ामी ठहरी. इस सीरीज़ में दर्शन भी नरेशन के माध्यम से ही इंजेक्ट किया गया है.
# अंततः
ऊपर की सभी आलोचनाओं के बावजूद ये कहने में क़तई संकोच नहीं है कि ‘असुर’ हिंदी में बनी कुछ बेहतरीन वेब सीरीज़ में से एक है. साथ ही ऊपर जो आलोचनाएं हमने की हैं, वो भी इस सीरीज़ को बहुत ज़्यादा हार्ड मार्किंग देने पर ही उभर कर आती हैं.
इसलिए हम अंत में यही कहेंगे कि अगर आपको वेब सीरीज़ का चस्का है या फिर नहीं भी है, पर ‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘मिर्ज़ापुर’ जैसी सीरीज़ मिस नहीं की हैं, तो ‘असुर’ भी मिस मत कीजिएगा.
वीडियो देखें:
कोरोना वायरस की वजह से कैंसिल हुई फिल्म, वेब सीरीज और टीवी शोज की शूटिंग-