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'एनिमल' ना देखने की 4 सॉलिड वजहें, जिनके आगे डायरेक्टर भी बहस नहीं कर पाएंगे

'एनिमल' के खिलाफ आपत्ति दर्ज करवाने की आपको कई वजहें मिल सकती हैं. हमने उनमें से 4 चुनी हैं, जिन्होंने रणबीर कपूर की फिल्म को अझेल बना दिया.

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'एनिमल' अपनी हिंसा को कोई ठोस वजह नहीं दे पाती.

Sandeep Reddy Vanga के पास एक बहुत बड़ा मौका था. Animal में देश के टॉप स्टार्स थे. फिल्म को हिंदी समेत साउथ की भाषाओं में रिलीज़ किया गया. प्री-रिलीज़ इवेंट में महेश बाबू और एसएस राजामौली पहुंचे. वांगा फिल्म के स्केल को आसमान पर ले गए. फिर भी आसमान फाड़कर निकल जाने वाली फिल्म नहीं बना सके. ये अपने मार्क से चूक गई. ‘एनिमल’ साल 2023 की सबसे तगड़ी फिल्मों में से एक बन सकती थी. वो बात अलग है कि ये अभी भी खूब पैसा फोड़ेगी लेकिन इसकी रीवॉच वैल्यू कितनी रहेगी, उसे लेकर पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. 

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फिल्म इतना ऑफर नहीं करती कि दूसरी बार फिर आप उसके पास जाएं. उन चार वजहों की बात करेंगे, जिन्होंने इस ‘एनिमल’ के दांत घिस दिए. वो दिखाने के लिए थे लेकिन उससे किसी को काट नहीं पाया. आगे बढ़ने से पहले बता दें कि बहुत कठिन है डगर पनघट की, स्पॉइलर का दरिया है, डूब के जाना है. इसलिए फिल्म नहीं देखी तो स्टोरी सेव कर लीजिए. फिल्म देखने के बाद यहां फिर से दस्तक दे दीजिएगा. 

#1. वॉयलेंस! वॉयलेंस! वॉयलेंस! 

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संदीप रेड्डी वांगा अपनी फिल्म में हिंसा के स्तर को बहुत ऊपर ले गए हैं. ऐसा कुछ हिंदी सिनेमा में ज़्यादा अटेम्प्ट नहीं हुआ है. हिंसक किरदारों या हिंसा से कोई दिक्कत नहीं है. आखिर क्वेंटीन टेरेंटिनों ने अपने सिनेमा का कल्ट इसी आधार पर खड़ा किया है. कोरियन सिनेमा को उसके वॉयलेंस के लिए सराहा जाता है. ‘एनिमल’ के वॉयलेंस से मसला ये है कि वहां उसके लिए ठोस ज़मीन तैयार नहीं की गई. बिना वजह या पर्पस की हिंसा सिर्फ शोर होती है. यहां ऐसा ही होता है. खूब सारा खूनखराबा आपसे थिएटर में ताली बजवा लेगा लेकिन उस किरदार के लिए आपके दिल में कोई तार नहीं छेड़ पाएगा. 

#2. लॉर्ड बॉबी के साथ नाइंसाफी 

‘एनिमल’ के ट्रेलर से बॉबी देओल की झलक आने के बाद जनता में हाइप बढ़ गई थी. देखकर लग रहा था कि उनका कैरेक्टर तोड़फोड़ मचा देगा. फिर इंटरनेट पर थ्योरीज़ चलने लगीं कि उनका किरदार नरभक्षी होगा. वो ऐसा करेगा, वैसा करेगा. लेकिन वो कुछ भी नहीं कर पाता. उसकी वजह है कि बेचारे को उतना स्पेस ही नहीं मिलता. गिनती के तीन से चार सीन थे. फिल्म सिर्फ एक सीन से ये दर्शाना चाहती है कि हैवानियत में वो रणबीर के किरदार के बराबर ही है. लोग बस उसके भयानक स्वभाव के बारे में बातें करते हैं. ये किताबी लगने लगता है. नतीजतन स्क्रीन पर वो इम्पैक्ट पैदा नहीं हो होता.        

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#3. औरतों की कोई जगह नहीं 

हीरो, एंटी-हीरो, हीरो का बाप, सबकी लाइफ में एक बात कॉमन है. उनके लिए अपनी लाइफ की औरत का कोई दर्जा नहीं. रणबीर का किरदार अपनी पत्नी को धमकाता रहता है. चुप करवाता रहता है. बॉबी का कैरेक्टर अपनी पत्नी के साथ सेक्शुअल अब्यूज़ करता है. रणबीर के पिता का कैरेक्टर अपना गुस्सा पत्नी पर निकालता है. कुल मिलाकर इस फिल्म में औरतों के पास अपनी एजेंसी, अपनी ज़रूरत, कुछ भी नहीं थी. वो बस किसी की पत्नी, प्रेमिका और बहनें हैं. 

#4. रोमांस का आइडिया 

संदीप रेड्डी वांगा पहले ही क्लियर कर चुके हैं कि उनका रोमांस को लेकर क्या सोचना है. उनका मानना है कि अगर दो लोग प्यार में हैं, तो हिंसा पूरी तरह से जायज़ है. इसी सूत्र पर उन्होंने ‘अर्जुन रेड्डी’ और ‘कबीर सिंह’ को गढ़ा था. ‘एनिमल’ के केस में वो एक कदम आगे गए. फिल्म के एक सीन में रणबीर कपूर का कैरेक्टर एक लड़की से पूछता है कि क्या तुम मुझसे प्यार करती हो. वो हामी भरती है. उसके बाद वो अपना जूता टेबल पर धरता है. उससे कहता है कि अगर मुझसे प्यार करती हो, तो मेरे जूते को चांटो. अगर यही प्यार है तो फिर क्या ही कहा जाए. 

और भी बहुत कुछ है प्रॉब्लमैटिक, क्या-क्या बताएं!

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