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'तेजस्वी का शपथ ग्रहण' करा रहे संजय यादव कौन हैं? RJD की हार के बाद सबसे ज्यादा निशाने पर हैं

Sanjay Yadav: बिहार में महागठबंधन की करारी हार के बाद आरजेडी के राज्यसभा सांसद संजय यादव पर सवाल उठ रहे हैं. संजय यादव वही हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि तेजस्वी यादव के सारे फैसले वही लेते हैं. संजय को लेकर आरोप लगते हैं कि वह लोगों के लिए तेजस्वी की उपलब्धता के बीच दीवार बनकर खड़े हैं. आज भी लालू प्रसाद से मिल पाना आसान है, लेकिन तेजस्वी से मिलने के लिए किसी को भी संजय यादव से होकर गुजरना होगा. इन सबसे तेजस्वी का खुद का परिवार भी अछूता नहीं रहा.

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तेजस्वी की हार के बाद संजय यादव भी लोगों के निशाने पर हैं (india today)

‘तेजस्वी के शपथ ग्रहण में पीएम मोदी को बुलाना है या नहीं?’ इस सवाल की बिहार चुनाव के नतीजों ने धज्जिया उड़ा दी हैं. मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब संजोए राजद नेता तेजस्वी यादव को जितनी सीटें मिली हैं, उतने से तो वह नेता विपक्ष भी नहीं बन सकते लेकिन ‘आत्मविश्वास से लबरेज’ यह सवाल करने वाले संजय यादव लोगों के निशाने पर आ गए हैं. ये संजय यादव वही हैं, जिन्हें ‘तेजस्वी का चाणक्य’ कहा जा रहा था. लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप जिन्हें ‘जयचंद’ कहते थे. तेजस्वी की बहनें रोहिणी आचार्य और मीसा भारती भी दबी जुबान से जिस पर ताने बरसाती थीं और कहती थीं कि उन्होंने ‘तेजस्वी पर कब्जा’ कर लिया है. 

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कौन हैं ये संजय यादव? और क्यों बिहार में राजद की हार में उनको दोषी ठहराया जा रहा है? इसके पीछे एक लंबी कहानी है. शुरू से शुरू करते हैं और जानते हैं कि अपने बारे में संजय यादव ने चुनाव आयोग को क्या बताया है.   

बिहार से RJD के राज्यसभा सांसद संजय यादव ने चुनाव आयोग को दिए अपने एफिडेविट में बताया है कि वह दिल्ली के नजफगढ़ में टोडरमल कॉलोनी के रहने वाले हैं. उनके पिता प्रभाती लाल यादव हैं. पत्नी का नाम सुनिष्ठा है. दो बच्चे हैं. लड़के का नाम मिराया राव और लड़की का नाम तान्या राव है. वह नजफगढ़ विधानसभा क्षेत्र से वोटर हैं. 

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पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो साल 2007 में उन्होंने भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में मास्टर ऑफ साइंस (एम.एससी.) की डिग्री हासिल की है. इससे पहले साल 2004 में इसी विश्वविद्यालय से वह कंप्यूटर एप्लीकेशन में बैचलर (BCA) हैं. संजय ने 2001 में हरियाणा बोर्ड से 12वीं और इसी बोर्ड से 1999 में 10वीं की परीक्षा पास की है.

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संजय यादव तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार हैं (india today)
संपत्ति कितनी है?

एफिडेविट में दर्ज संजय यादव के इनकम टैक्स रिटर्न के मुताबिक, 2022-23 के वित्तीय वर्ष में उनकी सैलरी 10 लाख 13 हजार 795 रुपये है. उनकी पत्नी सुनिष्ठा की सैलरी 6 लाख 18 हजार 521 है. चल और अचल मिलाकर उनके पास कुल लगभग 1 करोड़ 39 लाख रुपये की संपत्ति है. पटना, गुरुग्राम और नजफगढ़ के बैंक खातों में कुल 36.86 लाख रुपये जमा हैं. एफिडेविट के मुताबिक, उन पर कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है. 

ये तो हुई संजय यादव की बात. अब जानते हैं कि बिहार में हारे तो तेजस्वी लेकिन निशाने पर संजय क्यों हैं?

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सितंबर 2025. बिहार में चुनाव की सरगर्मियां बढ़ रही थीं और तेजस्वी यादव बिहार अधिकार यात्रा निकाल रहे थे. एक बस थी, जिसकी अगली सीट पर तेजस्वी बैठते थे. एक दिन सोशल मीडिया पर एक फोटो दिखी. बस में जो तेजस्वी की सीट थी, वहां संजय यादव बैठे थे. आम लगने वाली इस बात पर उस वक्त हंगामा मच गया जब तेजस्वी की बहन रोहिणी आचार्य ने इस फोटो वाली एक पोस्ट शेयर करते हुए नाम लिए बिना संजय यादव को खरी-खोटी सुना दी. इस पोस्ट में संजय को ‘अपने आपको शीर्ष नेतृत्व से भी ऊपर समझने’ वाला बताया गया था और नसीहत दी गई थी कि ‘फ्रंट सीट नेतृत्व करने वालों के लिए होती है और उनकी अनुपस्थिति में भी किसी को इस सीट पर नहीं बैठना चाहिए.’

मामला गर्मा गया और सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगीं तो रोहिणी ने सफाई दे दी कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. हालांकि, इस मामले में उन्हें भाई तेज प्रताप का साथ जरूर मिला. तेज प्रताप ने 20 सितंबर को संजय का नाम लिए बिना उन्हें ‘जयचंद’ कह दिया और आरोप लगाया कि वह ‘तेजस्वी की कुर्सी हथियाना चाहते हैं’.

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तेज प्रताप यादव संजय यादव को ‘जयचंद’ बुलाते हैं (india today)

इस खीझ से अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार चुनाव से पहले तेजस्वी की आरजेडी में संजय क्या भूमिका निभा रहे थे.

बिहार में ये शायद पहला चुनाव रहा होगा, जब तेजस्वी को छोड़ पूरा लालू परिवार RJD के केंद्रीय घेरे से बाहर था. न रोहिणी चुनाव लड़ रही थीं, न राबड़ी देवी. न लालू प्रसाद यादव ही चुनाव में ऐक्टिव दिखे. तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से बेदखल कर ही दिया गया था. 

आरजेडी के भीतर इस 'संपूर्ण क्रांति' का आरोप गया संजय यादव पर. उन पर लालू परिवार को तोड़ने के आरोप लगे तो इस बात का क्रेडिट भी मिला कि संजय यादव ने आरजेडी को पूरी तरह से बदल दिया. उसे ‘आधुनिक’ बना दिया. परंपरागत जड़ता से निकालकर उसे युवा जोश से जोड़ने की कोशिश की. परिवारवाद के आरोपों के दलदल से निकालकर बिहार में बदलाव के एक विकल्प के रूप में खड़ा करने का प्रयास किया. 

ये अलग बात है कि 14 नवंबर को आए बिहार चुनाव के नतीजों ने उनकी सारी रणनीति की कलई खोलकर रख दी है.

अब सवाल है कि आरजेडी में संजय यादव की कहानी शुरू कहां से होती है. 

पुरानी बात है. साल है 2013. लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव तब नेता नहीं क्रिकेटर बनने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे. कोशिश कामयाब नहीं हो रही थी. रणजी के 7 मैचों में सिर्फ 37 रन. विकेट भी मिला तो सिर्फ एक. IPL में तो तीन साल टीम में रहने के बावजूद प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं मिली. तभी बिहार में एक बड़ी घटना घटी. पिता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला केस में जेल हो गई. पार्टी और परिवार दोनों की हालत खराब. परेशान मां राबड़ी देवी ने बेटे तेजस्वी को वापस बुला लिया.

मां और पार्टी दोनों की पुकार थी. तेजस्वी ने क्रिकेट को हमेशा के लिए अलविदा कहा और राजनीति की नई पारी खेलने के लिए वापस पटना लौट आए. लेकिन वह अकेले नहीं आए. पटना पहुंचते ही अपने एक हरियाणवी दोस्त को भी फोन करके बुला लिया. दोस्त, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर था. और जिससे उनकी मुलाकात क्रिकेट ग्राउंड पर प्रैक्टिस के दौरान हुई थी.

ये दोस्त संजय यादव थे, जो धीरे-धीरे तेजस्वी यादव के इतने ज्यादा करीबी हो गए कि उनका खुद का परिवार ‘इनसिक्योर’ हो गया. 

संजय यादव तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार बने. कहा जाता है कि राजनीति ही नहीं, तेजस्वी के निजी फैसलों में भी संजय शामिल रहते हैं. इस चुनाव में जो ‘नए तेजस्वी’ दिखे, उसके शिल्प में उनकी बड़ी भूमिका रही.

मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले संजय से तेजस्वी की पहली मुलाकात 2012 में हुई थी. वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह बताते हैं,

ये बात सच है कि संजय यादव की तेजस्वी से मुलाकात क्रिकेट खेलने के दौरान हुई थी. लेकिन एक बड़े परिवार के नेता के पुत्र ने दोनों को एक-दूसरे से इंट्रोड्यूस करवाया था. इसके अलावा, संजय सपा मुखिया अखिलेश यादव के पास बहुत जाया करते थे. सोशलिस्ट लिटरेचर सब पढ़ते थे. वहां इन दोनों की दोस्ती हुई. फिर दिल्ली के तुगलक रोड पर लालू जी के निवास पर भी दोनों की मुलाकातें होती रहती थीं.

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संजय यादव (बायें) और तेजस्वी यादव (India Today)

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं,  

संजय यादव पहले सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करते थे. तेजस्वी ने कई बार उन्हें अपने पास लाने की कोशिश की. लेकिन शुरुआत में संजय नहीं आते थे. फिर भी, जब तेजस्वी दिल्ली जाते तो उनसे जरूर मुलाकात करते. धीरे-धीरे यह सब चलता रहा और संजय तेजस्वी के लिए बाहर-बाहर से काम करते रहे. लेकिन एक समय बाद तेजस्वी ने कहा कि आपको आना ही पड़ेगा.

बिहार आते ही संजय ने तेजस्वी को सुझाव दिया कि अगर आप अपने काम के तौर-तरीके बदलें और उनके बताए रास्ते पर चलें तो आरजेडी बिहार में रिवाइव (Revive) कर सकती है. तेजस्वी की हरी झंडी मिली तो संजय यादव भी RJD को रिवाइव करने के काम पर लग गए. सबसे पहले उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के सोशल मीडिया का काम ठीक किया. ‘वॉर रूम’ वगैरह ठीक करने लगे. खुद पटना में ही रहने लगे. तेजस्वी उन पर ऐसे आश्रित हो गए कि अगर वह किसी को ‘वन-टू-वन’ इंटरव्यू भी देते थे तो संजय यादव उनके साथ रहते थे. संतोष सिंह के मुताबिक,

"बड़े चैनल हों या अखबार, कहीं भी इंटरव्यू देने जाने से पहले वह तेजस्वी का मॉक इंटरव्यू करवाते थे. बड़े-बड़े नेताओं के, खासतौर पर सारे सोशलिस्ट नेताओं के स्पीच पढ़वाते थे. अगर उनका ऑडियो मौजूद है तो वो सुनाया करते थे. इनमें विपक्षी दलों के जॉर्ज फर्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेई जैसे बड़े नेताओं के भाषण शामिल होते थे. इस तरह से संजय यादव ने तेजस्वी की ‘ग्रूमिंग’ में बहुत मदद की. बाद में जाकर वह तेजस्वी के पॉलिटिकल एडवाइजर बने."

पुष्यमित्र का मानना है कि संजय यादव के आने से राजद को कई फायदे हुए. जैसे-

- सबसे पहला तो पार्टी में प्रवक्ताओं की नई फौज आई, जो आक्रामक तरीके से अपनी बात रखती है. पार्टी की सोशल मीडिया पर उपस्थिति बढ़ी. भाषा में बदलाव हुआ. पहले राजद की भाषा लालू की भाषा होती थी, लेकिन अब ट्वीट और पोस्ट ज्यादा व्यवस्थित और प्रभावी होने लगे हैं. इस बदलाव के साथ-साथ पार्टी में प्रफेशनलिज्म भी बढ़ा.

- दूसरी बात. पार्टी को फंडिंग मिलने लगी. जैसे RJD को इलेक्टॉरल बॉन्ड्स जेडीयू से ज्यादा मिलने लगे. संजय यादव ने ही तेजस्वी को सजेस्ट किया कि उन्हें नीतीश के साथ जाना चाहिए. नीतीश को लेकर उनके मन में सॉफ्ट कॉर्नर है. यही वजह है कि तेजस्वी अलग होने पर भी नीतीश के प्रति बहुत ज्यादा हमलावर नहीं होते. इसके पीछे संजय यादव हैं. इसका फायदा भी हुआ और पार्टी डगमगाने के बाद एक अच्छी स्थिति में आ गई.

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तेजस्वी यादव की अगुआई वाले महागठबंधन को करारी हार मिली है (india today)
भागवत के बयान पर 'खेल'

साल 2015 के बिहार चुनाव के दौरान आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने ‘आरक्षण की समीक्षा’ को लेकर बहुचर्चित बयान दिया था. तब RJD ने चुनाव में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. नतीजा ये हुआ कि भाजपा का चुनाव में प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा और RJD को इसका फायदा मिला.

संतोष सिंह कहते हैं, “मोहन भागवत का रिमार्क कि ‘रिजर्वेशन का रिव्यू होना चाहिए’, सबने एक दिन लेट देखा था. भागवत बोल चुके थे और बात आई-गई हो गई थी. किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया था, लेकिन एक दिन बाद यह संजय यादव को दिखा. वह तुरंत इसे लपककर लालू प्रसाद के पास लेकर गए. लालू प्रसाद यह देखकर उछल पड़े. उसके बाद जो हुआ, वो सबने देखा. बिहार चुनाव का जो आखिरी यानी पांचवां फेज था, उसका रुख ही मुड़ गया.”

प्रशांत किशोर ने इस मुद्दे का फॉलोअप किया और बहुत सारे पैंफलेट छपवाए कि कैसे दलित-पिछड़ों का रिजर्वेशन लेने की साजिश हो रही है. इसका रिजल्ट ये रहा कि बीजेपी के लाख डैमेज कंट्रोल करने के बाद भी उसे मुंह की खानी पड़ी. संतोष सिंह का मानना है कि कहीं न कहीं ये संजय यादव का कंट्रीब्यूशन था, जो इन सब में ‘बिहाइंड द सीन’ थे.

तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल के पुनरुद्धार में संजय यादव की भूमिका पर पुष्यमित्र कहते हैं,

तेजस्वी व्यक्तिगत रूप से एक असफल क्रिकेटर थे और राजद एक खत्म हो रही पार्टी थी. लेकिन संजय यादव के आने के बाद चीजें बदलीं. RJD की सीटें भी बढ़ीं. तेजस्वी दो बार डिप्टी सीएम बने. उन्हें लालू का उत्तराधिकारी माना गया. इन सबके पीछे एक ही आदमी है- संजय यादव. यही वजह है कि उन्हें तेजस्वी बहुत पसंद करते हैं. लेकिन इसका असर ये हुआ कि संजय ने तेजस्वी पर एकाधिकार कर लिया. इससे लालू परिवार के कुछ लोग असहज और असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि सत्ता और ध्यान तेजस्वी के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गया.

लालू परिवार में 'कलह' के कारण

पुष्यमित्र के मुताबिक, तेज प्रताप जो बार-बार हमलावर होते हैं, उन्हें कमजोर करने और बदनाम करने में संजय यादव की बड़ी भूमिका है. जैसा राजघरानों में होता था कि राजा या राजकुमार का एक विश्वस्त सहयोगी होता है, जो बाकी सभी गद्दी के दावेदारों को काटकर अलग करता रहता है. कुछ जानकार संजय यादव को इसी रोल में देखते हैं.

साल 2021 की बात है. तेज प्रताप और पार्टी के नेता जगदानंद सिंह के बीच युद्ध जैसा माहौल था. इस मुद्दे पर बात करने के लिए तेज प्रताप राबड़ी देवी के घर गए. यहां पर तेजस्वी से मुलाकात होनी थी. थोड़ी देर बाद तेज प्रताप तमतमाए हुए आवास से बाहर आए. सामने मीडियाकर्मी पड़ गए तो वहीं उनके सामने ही बरस पड़े. तेज प्रताप ने बताया कि तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव ने उन्हें उनके भाई से बात करने से रोक दिया और तेजस्वी को साथ लेकर अंदर चले गए. भड़के तेज प्रताप बोले, “ये संजय यादव कौन होता है दो भाइयों के बीच होने वाली बातचीत को रोकने वाला.”

संजय को लेकर आरोप लगते हैं कि वह लोगों के लिए तेजस्वी की उपलब्धता के बीच दीवार बनकर खड़े हैं. जब तक पार्टी में लालू इस पोजिशन पर थे, उनसे मिलना कभी किसी के लिए मुश्किल नहीं रहा. आज भी लालू प्रसाद से मिल पाना आसान है, लेकिन तेजस्वी से मिलने के लिए किसी को भी संजय यादव से होकर गुजरना होगा.

इन सबसे तेजस्वी का खुद का परिवार भी अछूता नहीं रहा. लालू के कुनबे में इसे लेकर खूब बेचैनी है.

पहले तेज प्रताप का ‘जयचंद-राग’ और अब रोहिणी आचार्य को भी ये लग रहा है कि संजय खुद को ‘शीर्ष नेतृत्व’ समझने लगे हैं. तो क्या मामला अब लालू प्रसाद यादव के हाथ से भी निकल गया है?

पुष्यमित्र कहते हैं कि रोहिणी आचार्य अपनी बात लालू यादव से मनवाती थीं. वह लालू के बहुत करीब हैं. उन्होंने पिता को किडनी दी है. वह कई मौकों पर तेजस्वी के पक्ष में भी खड़ी रहीं, लेकिन अब अगर वो शिकायत कर रही हैं तो इसका मतलब है कि लालू यादव के कंट्रोल में भी कुछ नहीं है. रोहिणी के अलावा मीसा भारती भी संजय यादव को लेकर असंतोष जता चुकी हैं.

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रोहिणी आचार्य ने अपने पिता लालू को किडनी दी है (india today) 

कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तेजस्वी चाहते थे कि आने वाले चुनाव में उनके परिवार के किसी सदस्य को टिकट न मिले. यह रणनीति राजद पर लगते परिवारवाद के आरोप और खुद तेजस्वी के नीतीश सरकार के खिलाफ ‘दामाद आयोग’ के दांव के अनुकूल नहीं थी.  

इसकी एक बानगी बिहार अधिकार यात्रा में दिखी कि कैसे तेजस्वी के कार्यक्रमों से उनके परिवार की ‘विजिबिलिटी’ गायब हो गई. लालू यादव के बड़े दामाद हैं, शैलेश. वह मीसा भारती के पति हैं. चुनाव लड़ने की इच्छा भी थी. लंबे समय के बाद वह बिहार अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी के साथ दिखे. लेकिन साथ होते हुए भी 'अदृश्य' हालत में रहे.

शैलेश की स्थिति को लेकर दी लल्लनटॉप में पॉलिटिकल एडिटर पंकज झा कहते हैं, “लालू यादव के दामाद जी इस तरह से तेजस्वी के साथ रहते हैं कि उनकी एक भी फोटो नहीं आती.”

राजद के लोग इन सबके पीछे संजय यादव को ही देखते हैं. लेकिन पार्टी के भीतर उनके खिलाफ खुलकर बोलने वाले लोग नहीं थे. जो भी बोलता, इशारों में बोलता था. यह भी राजद में संजय की हैसियत बताने के लिए काफी है. चूंकि, वह राजद में आमूल-चूल बदलाव के हरकारे थे, इसलिए अब जब इतनी बड़ी हार मिली है तो इसका ठीकरा भी अगर उन पर फोड़ा जा रहा है तो हैरत नहीं है.

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