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राजस्थान चुनाव 2018 का नतीजा : ये कांग्रेस की हार है

फिनिश लाइन को पार करने की इस लड़ाई में कांग्रेस ने एक बड़ा मौका गंवा दिया.

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अशोक गहलोत-सचिन पायलट की बदौलत कांग्रेस को राजस्थान में भाजपा पर बढ़त हासिल हुई थी. (फोटोः FB)

सितंबर 2017. दी लल्लनटॉप राजस्थान के सीकर में किसान आंदोलन कवर करने पहुंचा हुआ था. यहां किसानों से बातचीत के दौरान रशीदपुरा के सत्यजीत ने हमसे कहा था कि आने वाले चुनाव में बीजेपी की कांग्रेस से भी बुरी गत होने जा रही है. सत्यजीत 2013 के विधानसभा चुनाव के नतीजों का हवाला दे रहे थे. इस चुनाव में कांग्रेस 200 सीटों वाली विधानसभा में महज 21 की गिनती पर सिमट गई थी.

2017 का साल वसुंधरा राजे के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा था. जून 2017 में कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजपूत समाज के एक हिस्से में उबाल आ गया था. एनकाउंटर के बाद आनंदपाल की लाश को 19 दिन रखकर राजपूत समाज प्रदर्शन कर रहा था  और एनकाउंटर को फर्जी बताकर सीबीआई जांच की मांग कर रहा था. आनंदपाल के गांव सांवराद में राजपूतों के प्रदर्शन को सरकार ने सख्ती के साथ कुचला. यहां से राजपूत समाज और सरकार के बीच तकरार की शुरुआत हुई. 'पद्मावत' फिल्म विवाद हो या जोधपुर के सामराऊ में हुई जातिगत हिंसा सरकार और राजपूत समाज में ठनी ही रही. ऐसे में माना यह जा रहा था कि परम्परागत तौर पर बीजेपी को वोट देने वाला राजपूत समाज इस बार अपना रुख बदल सकता है.


सीकर किसान प्रदर्शन और पद्मावत विवाद के दौरान की झलकियां.
सीकर किसान प्रदर्शन और पद्मावत विवाद के दौरान की झलकियां.

सितंबर 2017 में राजस्थान के सीकर जिले में किसानों ने ऑल इंडिया किसान सभा के नेतृत्व में 17 दिन लम्बा आंदोलन किया. देखते ही देखते यह आंदोलन 14 दूसरे जिलों में फैल गया. समर्थन मूल्य बढ़ाने, फसल खरीद और कर्जा माफ़ी की मांग पर किसान आंदोलन कर रहे थे. वसुंधरा राजे सरकार ने आन्दोलनकारियों के साथ किए समझौते में राज्य के किसानों का कर्जा माफ़ करने की बात मानी थी. लेकिन सरकार ने यह वायदा पूरी तरफ से निभाया नहीं. सरकार ने सहकारी समिति का 50 हजार का कर्जा माफ़ करने की घोषणा की. दिक्कत यह थी कि किसानों के एक बड़े तबके के पास सहकारी समिति का कोई कर्जा नहीं था. जिसके पास था भी वो 50 हजार से कम था. ऐसे में इस कर्ज माफ़ी का किसानों को कोई खास फायदा हुआ नहीं. सरकार के इस कदम ने किसानों की नाराजगी कम करने की बजाए ज्यादा बढ़ा दी.

2017 में घटनाओं की इस श्रंखला ने वसुंधरा राजे के खिलाफ नाराजगी का माहौल बनाना शुरू किया. इसके अलावा उनके खिलाफ बड़ी शिकायत यह थी कि उन्होंने युवाओं के लिए रोजगार पैदा नहीं किए. राज्य सरकार ने 1.4 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था. लेकिन उनके कार्यकाल में स्कूल टीचर के 77,100 पद, पुलिस विभाग के 18000 पद और हेल्थ डिपार्टमेंट के 6,758 पद खाली रहे. वसुंधरा राजे के पूरे कार्यकाल में युवा लोग रोजगार के लिए तरसते रहे. इससे युवाओं में सरकार को लेकर काफी नाराजगी थी.


वसुंधरा राजे, अमित शाह और मदनलाल सैनी.
वसुंधरा राजे, अमित शाह और मदनलाल सैनी.

BJP की आपसी गुटबाजी

14 अप्रैल 2018 को बीजेपी आलाकमान ने चुनावी राज्यों में चूड़ी कसना शुरू कर दिया. इसके तहत मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीजेपी अध्यक्षों से इस्तीफा ले लिया गया. मध्य प्रदेश में नए अध्यक्ष की नियुक्ति में किसी तरह की अड़चन नहीं आई. राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति वसुंधरा राजे और अमित शाह के बीच नाक का सवाल बन गई. आखिरकार संघ को दखल देना पड़ा. संघ ने अमित शाह को चेताया कि वो एक और येद्दियुरप्पा नहीं चाहते. आखिरकार मदन लाल सैनी के नाम पर सहमति बनी. इस गतिरोध को खत्म करने में डेढ़ महीने का वक़्त लग गया. टिकट वितरण में भी बीजेपी में गुटबाजी भारी रही. वसुंधरा 130 टिकट पर अड़ी हुई थीं. जबकि अमित शाह सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए उम्मीदवार बदलना चाहते थे. आखिरकार यहां भी आलाकमान को पीछे हटना पड़ा.

कांग्रेस को क्यों मिला सतमासा जनादेश

चुनाव के शुरुआती दौर में कांग्रेस सूबे में मजबूत दिखाई दे रही थी. राजस्थान में उसकी एकतरफा जीत के अनुमान लगाए जा रहे थे. आखिर ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस घिसटते-घिसटते बहुमत के आंकड़े को छू पाई? दरअसल टिकट वितरण ऐसा नुक्ता था जहां से कांग्रेस की मिट्टी पलीद होना शुरू हुई. कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली लिस्ट 4 नवंबर को आने वाली थी. ऐसा हुआ नहीं. फिर यह कहा गया कि दीपावली की वजह से लिस्ट को तीन दिन के लिए टाला गया है. 8 तारीख को लिस्ट का आना लोहे की लकीर है. इसके बाद हर ढलते दिन 'कल शाम पक्का' की खबर लीक की जाने लगी. आखिरकार 16 नवंबर को पहली सूची जारी की गई. तब तक सोशल मीडिया पर कांग्रेस की आधा दर्जन फर्जी सूची वाइरल हो चुकी थीं. दर्जनों चुटकुले बनाए जा चुके थे.


आपसी खींचतान और खराब टिकट वितरण के चलते कांग्रेस की ऐसी भद्द पिटी है
राहुल गांधी, जीतेंद्र सिंह और सचिन पायलट एक रैली के दौरान.

19 नवंबर को नामांकन भरने की आखिरी तारीख थी. कांग्रेस के उम्मीदवारों के पास महज दो दिन का समय बचा हुआ था. नामांकन किसी भी उम्मीदवार के लिए मोमेंटम हासिल करने का पहला मौका होता है. इस दिन उम्मीदवार भीड़ जुटाता है, शक्ति प्रदर्शन करता है, माहौल बनाता है. कांग्रेस के उम्मीदवारों के पास इसकी तैयारी का मौका नहीं था. लिहाजा जिले के सभी उम्मीदवारों को एक साथ नामांकन डालने के लिए कह दिया गया. ऐसे में कई जिलों में कांग्रेस का नामांकन एक बारात में कई दूल्हे की तरह का हो गया.

दूसरी बड़ी समस्या कांग्रेस की गुटबाजी रही. उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने में भी इसी वजह से देरी हुई. अशोक गहलोत और सचिन पायलट की खेमेबाजी ने कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया. पूरी पार्टी दो धड़ो में बंटी हुई थी. परम्परा के अनुसार प्रदेश कांग्रेस कमिटी का चीफ चुनाव नहीं लड़ता है. सचिन भी नहीं लड़ने वाले थे. उनकी कोशिश थी कि वो गहलोत को भी चुनाव ना लड़ने दें. लेकिन गहलोत चुनाव लड़ने पर अड़े रहे. सचिन को इस डर में चुनाव में उतरना पड़ा कि कल को विधायक ना होने की वजह से उनका मुख्यमंत्री पद पर दावा कमजोर पड़ जाएगा. अब वो अपने लिए सुरक्षित सीट खोजने लगे. पायलट नहीं चाहते थे कि उनके साथ सीपी जोशी कांड दोहराया जाए. उन्हें तीन में से एक विकल्प चुनना था. पहला किशनपोल, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. दूसरा नसीराबाद, जहां गुर्जर मतदाता निर्णायक भूमिका हैं. तीसरा टोंक, जहां मुस्लिम और गुर्जर मतदाताओं का बाहुल्य है. उन्होंने अपने लिए टोंक को चुना. इस चुनाव में वक़्त लग गया और कांग्रेस की लिस्ट आने में देरी हुई.


अशोक गहलोत, राहुल गांधी और सचिन पायलट एक रैली के दौरान.
अशोक गहलोत, राहुल गांधी और सचिन पायलट एक रैली के दौरान.

बीजेपी के आक्रामक प्रचार का तोड़ नहीं

26 नवंबर को मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार की आखिरी तारीख थी. 27 तारीख से बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत राजस्थान में झोंक दी. नरेंद्र मोदी 6 दिन तक राजस्थान में टिके रहे. उन्होंने यहां 12 रैली की. 200 में से 106 सीटों को छुआ. कुल 499 मिनट भाषण दिया. अमित शाह ने 15 जिलों में 20 की. हिंदुत्व के एजेंडे को भुनाने के लिए योगी आदित्यनाथ को राजस्थान में खूब घुमाया गया. 27 जिलों में उन्होंने 65 रैली की. कैबिनेट से लेकर फ़िल्मी सितारों तक बीजेपी ने अपने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी. आखिरी के 7 दिन में चुनाव कांग्रेस की पकड़ से बुरी तरह फिसलता नजर आया. एक हद्द तक बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर को भी शांत करने में कामयाबी हासिल की.

इस चुनाव के नतीजे भले ही कांग्रेस के पक्ष में रहे हों लेकिन इसे कांग्रेस की जीत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. एक आसान से माने जा रहे मुकाबले को कांग्रेस में कांटे की टक्कर में तब्दील कर दिया है. इस चुनाव ने संगठन के स्तर पर कांग्रेस की कमजोरी को सतह पर ला दिया. आने वाले समय में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं. अमित शाह ने पिछले पांच साल में बीजेपी संगठन को रोमन सेना में तब्दील करने में कामयाबी हासिल की है. कांग्रेस की तैयारी इस बड़ी जंग के हिसाब से बहुत अपरिपक्व नजर आ रही है.