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'नीतीश की छाती तोड़ूंगा', ये कहने वाले अरुण कुमार JDU आने ही वाले थे, रात में खेल हो गया

बिहार विधानसभा चुनाव करीब आते ही नेताओं के दल-बदल का सिलसिला शुरू हो चुका है. इसी कड़ी में जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार जदयू में घर वापसी करने वाले थे. लेकिन ऐन वक्त पर उनके एक पुराने साथी ने उनकी एंट्री पर वीटो लगा दिया है.

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अरुण कुमार नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी रहे हैं. (इंडिया टुडे, फेसबुक)

अरुण कुमार (Arun Kumar). जहानाबाद के पूर्व सांसद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पुराने सहयोगी. 4 सितंबर को जदयू में उनकी वापसी होनी थी. मिलन समारोह का निमंत्रण भेज दिया गया था. मीडिया वाले भी आमंत्रित थे. लेकिन अगले दिन एक और सूचना जारी हुई. बताया गया कि मिलन समारोह स्थगित है. यानी अरुण कुमार की एंट्री पर ब्रेक लग गई. अचानक हुए इस घटनाक्रम से सवाल उठने लगे हैं कि आखिरी वक्त में अरुण कुमार की जॉइनिंग किसने रोकी?

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कैसे टली अरुण कुमार की वापसी? 

3 सितंबर को दोपहर बाद करीब 4.30 बजे जदयू की ओर से मीडिया को आमंत्रण भेजा गया. आमंत्रण ऑफिस सेक्रेटरी संजय कुमार सिन्हा की तरफ से भेजा गया था. इसमें बताया गया कि 4 सितंबर को दोपहर एक बजे पार्टी के स्टेट हेडक्वार्टर में मिलन समारोह होगा.

बताया गया मिलन समारोह में अरुण कुमार जदयू में शामिल होंगे. 18 घंटे बाद 4 सितंबर की सुबह 11 बजे संजय कुमार सिन्हा ने एक और लेटर जारी किया. बताया गया मिलन समारोह स्थगित कर दिया गया.

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अरुण कुमार ने लल्लनटॉप से बातचीत में बताया कि 4 सितंबर को वो जदयू से जुड़ने वाले थे. लेकिन अचानक उनको बताया गया कि बिहार बंद के चलते मिलन समारोह रद्द कर दिया गया है. कुमार ने बताया कि आगे जॉइनिंग की नई डेट के बारे में अभी उनको कोई सूचना नहीं दी गई है.

अरुण कुमार के जॉइनिंग टलने की कहानी इतनी सीधी नहीं है, जितनी वो बता रहे हैं. जदयू से जुड़े एक बड़े नेता के बताया कि नीतीश कुमार के खासमखास और अरुण बाबू के स्वजातीय नेता ने ही उनकी वापसी पर वीटो कर दिया. नाम है राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह. वजह ईगो का टकराव और जाति के नेतृत्व की लड़ाई बताई जा रही है. ललन सिंह और अरुण कुमार की ये अदावत भी नई नहीं है. नीतीश कुमार के साथ बनते बिगड़ते उनके रिश्ते में ललन सिंह अहम फैक्टर रहे हैं.

जदयू नेता से पुरानी अदावत 

अरुण कुमार समता पार्टी के दिनों से नीतीश कुमार के साथी रहे हैं. वो उन चुनिंदा नेताओं में से थे जो जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार दोनों के गुडबुक में थे. साल 1999 से 2004 तक जदयू के टिकट पर जहानाबाद से सांसद रहे. साल 2009 में जॉर्ज जब नीतीश कुमार से अलग हुए. 

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उसके बाद से अरुण कुमार और नीतीश के बीच भी दूरी आने लगी. और इस दूरी को खाई बनाने में भूमिका रही नीतीश कुमार के एक और पुराने साथी ललन सिंह की. वजह बनी भूमिहार नेतृत्व की महत्वकांक्षा और ईगो का टकराव. वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन बताते हैं, 

अरुण कुमार पढ़े लिखे और तेजतर्रार नेता हैं. मगध क्षेत्र के भूमिहारों में उनकी अच्छी पकड़ भी है. ये बात ललन सिंह को असहज कर रही थी. अब जदयू में ललन सिंह के न चाहते किसी के लिए राजनीत कर पाना न आज आसान है, न तब आसान था. दूसरी तरफ अरुण कुमार ललन सिंह के राजनीतिक तौर तरीकों से भी सहमत नहीं थे. परिस्थितियां ऐसी बनी कि उनको जदयू से अपने रास्ते अलग करने पड़े.

इसके बाद अरुण कुमार उपेंद्र कुशवाहा के साथ गए. और साल 2014 में उनकी पार्टी RLSP से सांसद बने. फिर आया साल 2015. तब नीतीश कुमार राजद के सहयोग से सरकार चला रहे थे. उसी साल पुटुस उर्फ पवन कुमार यादव हत्याकांड हुआ. पुटुस मोकामा के लहरिया पोखर गांव का था. 

18 जून, 2015 को एक लड़की से बदसलूकी के विवाद में उसकी हत्या कर दी गई. आरोप मोकामा विधायक अनंत सिंह पर लगे. उनकी गिरफ्तारी हुई. अफवाह चली एनकाउंटर हो सकता है. इस घटना की भूमिहारों की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई. अरुण कुमार भी इस जाति से आते हैं. उन्होंने नीतीश कुमार को धमकी दे डाली. अगर ऐसा हुआ तो वो पटककर नीतीश कुमार की छाती तोड़ देंगे.

विवादित बयान का मामला कोर्ट तक पहुंचा. और अरुण कुमार को 3 साल की सजा हुई. हालांकि बाद में कोर्ट से बरी हो गए. इसके बाद से अरुण कुमार और नीतीश कुमार की तल्खियां बढ़ गईं. बाद में उपेंद्र कुशवाहा से अलग होकर अरुण कुमार चिराग पासवान के साथ गए. तब चिराग एनडीए गठबंधन से अलग ताल ठोंक रहे थे. उस दौरान अरुण कुमार ने आरोप लगाया कि जदयू अध्यक्ष ललन सिंह नीतीश कुमार को खाने या दवा में कुछ मिलाकर दे रहे हैं, जिससे मुख्यमंत्री को मेमोरी लॉस हो रहा है.

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अरुण कुमार ने साल 2023 में ललन सिंह पर गंभीर आरोप लगाए थे

चिराग पासवान और अरुण कुमार का साथ भी ज्यादा वक्त नहीं चल पाया. लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज अरुण कुमार ने अपने रास्ते अलग कर लिए. इसके बाद से अरुण कुमार राजनीतिक वनवास में हैं. इस दौरान उन्होंने एक बार फिर से एनडीए से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की. अपने बयानों पर सफाई दी. साथ ही कुछ महीनों से चुप्पी भी साध रखी है.

पिछले छह महीने से जदयू के साथ आने की कोशिश

अरुण कुमार पिछले छह महीने से जदयू में वापसी की कोशिश में जुटे हैं. और वो लगातार जदयू के नेताओं के संपर्क में हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नीतीश कुमार के एक करीबी मंत्री और अरुण कुमार की मीटिंग भी हो चुकी है. ये मीटिंग अरुण कुमार के भाई और टेकारी से हम पार्टी (सेकुलर) के विधायक अनिल कुमार के घर पर हुई थी. जून महीने में ही उनके जॉइनिंग की तैयारी थी. लेकिन आखिरी वक्त में चीजें रुक गई. 

तीन महीने बाद फिर से अरुण कुमार को पार्टी में लाने की कोशिश हुई. इस बार उनके लिए बैटिंग कर रहे थे. सीनियर जदयू नेता वशिष्ठ नारायण सिंह, विजय चौधरी और आनंद मोहन. लेकिन एक फोन कॉल ने इनकी मेहनत पर पानी फेर दिया. बताया जा रहा है कि ललन बाबू ने अरुण कुमार की गाड़ी डिरेल कर दी.

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जदयू के लिए क्यों जरूरी अरुण कुमार

जदयू और एनडीए के पास मगध बेल्ट खासकर जहानाबाद बेल्ट में कभी दो कद्दावर भूमिहार चेहरा हुआ करते थे. जगदीश शर्मा और अरुण कुमार. जगदीश शर्मा जहानाबाद के घोसी सीट से 7 बार के विधायक रहे हैं. उनके बेटे राहुल शर्मा फिलहाल जदयू में है. पिछली बार घोसी से विधानसभा चुनाव भी लड़े. मगर हार गए. खबर है कि राहुल अब राजद के पाले में जाने की तैयारी कर रहे हैं. 

अरुण कुमार पहले ही दूर हो चुके हैं. ऐसे में जदयू के पास कोई ऐसा भूमिहार चेहरा नहीं है जो भूमिहारों को पार्टी के पाले में गोलबंद कर सके. पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. पार्टी के उम्मीदवार चंद्रेश्वर चंद्रवंशी बुरी तरह से हारे. इस चुनाव में अरुण कुमार भी बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में थे. उन्होंने लगभग 85 हजार वोट लाकर जदयू प्रत्याशी की राह मुश्किल कर दी.

जगदीश शर्मा फिलहाल जदयू से नाराज चल रहे हैं. चुनाव में किस करवट जाएंगे कुछ कहा नहीं जा सकता. ऐसे में अरुण कुमार जदयू के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं. जहानाबाद क्षेत्र मगध में आता है. यहां पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. मगध के अरवल, जहानाबाद, गया और नवादा में कुल 26 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से महागठबंधन के पास 20 सीटें हैं. वहीं एनडीए के पास केवल 6 सीट.

मगध में जदयू अपनी खोई हुई जमीन वापस करने की कोशिश में जुटी है. ऐसे में पार्टी अलग-अलग दांव आजमा रही है. ऐसा लगता है कि पार्टी का एक धड़ा अरुण कुमार को वापस लाकर भूमिहारों को साधना चाहता है. मगर वीटो दूसरे धड़े के पास है. 

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