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कैसे हुई थी लालू यादव की राबड़ी देवी से शादी? 5 एंबेसडर से जिला हिला दिया था

Rabri Devi के पिता Shiv Prasad Chaudhary उनके लिए रिश्ता तलाश रहे थे. सेलार कला और फुलवरिया के बीच पड़ने वाले मादीपुर गांव के मुखिया ने उनको पटना में पढ़ने वाले Lalu Yadav के बारे में बताया. लालू यादव उन दिनों छात्र राजनीति में एक्टिव थे. शिव प्रसाद चौधरी पटना में लालू यादव से मिले. और उनको पसंद कर लिया.

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लालू यादव और राबड़ी देवी की शादी साल 1973 में हुई थी. (इंडिया टुडे)
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आनंद कुमार
12 सितंबर 2025 (Published: 07:54 PM IST)
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गोपालगंज का सेलार कला गांव. 500 गाय और भैंसों के मालिक और सरकारी ठेकेदार शिव प्रसाद चौधरी अपनी बेटी के लिए दुल्हा ढूंढ रहे थे. पता चला एक लड़का है. पारिवारिक स्थिति कुछ खास नहीं. लेकिन पटना यूनिवर्सिटी का छात्र नेता है. राजनीतिक हलकों में चर्चा है. चौधरी जी लड़के से मिले और बात की. लड़का उनको जंच गया. परिवार वालों ने विरोध जताया. आर्थिक स्थिति पर चिंता जताई. लेकिन चौधरी जी फैसले से टस से मस नहीं हुए. और लड़के से अपनी बेटी की शादी की. उनका फैसला सही साबित हुआ. ये लड़का आगे चलकर बिहार का मुख्यमंत्री बना. यही नहीं उसने उनकी बेटी को भी सूबे का मुखिया बनवाया. लड़के का नाम है लालू यादव (Lalu Yadav). और लड़की राबड़ी देवी (Rabri Devi).

कभी घर के दरवाजे पर सोने की परत थी

इंडियन एक्सप्रेस के सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह ने अपनी किताब 'कितना राज कितना काज' किताब में राबड़ी देवी के मायके की हैसियत का जिक्र किया है. गोपालगंज के सेलार कला गांव और आसपास के इलाके के उनके परिवार का रुतबा था. लोग उनके पिता शिवकुमार  चौधरी का सम्मान करते थे. साल 1934 में उनके परिवार ने दो तल्ले का पक्का मकान बनवा लिया था. लालू यादव के साले साधु यादव के मुताबिक, गांव के 20 किलोमीटर के आसपास उनके जैसा घर किसी और का नहीं था. घर के दरवाजा लकड़ी का था. उस पर नक्काशी की गई थी. और एक वक्त उन दरवाजों पर सोने की परतें भी थीं. शिवप्रसाद चौधरी के घर के आगे सीमेंट के दो हाथी बने थे. जो सूंड़ से अभिवादन करने की मुद्रा में थे. वहीं चार सीमेंट के शेर भी थे. जो परिवार की ताकत की हैसियत को बयां करते.

शादी के वक्त पिता के पास 500 गाय और भैंस थीं

राबड़ी देवी की शादी के वक्त उनके परिवार के पास 500 गाय और भैंस थीं. और पश्चिम बंगाल के जगतदल में एक गोशाला भी थी. वहीं उनके पिता शिव कुमार चौधरी एक सरकारी ठेकेदार थे, जो पश्चिमी चंपारण के बेतिया और भैंसालोटन में पुल बनाने का ठेका लेते थे. बिहार में जन वितरण प्रणाली लागू होने के समय से ही उनकी राशन की दुकान थी. चौधरी अपने गांव सेलार कला के आसपास के 38 गांवों में राशन का अनाज, शक्कर और घासलेट का वितरण करते थे.

लालू यादव से कैसे तय हुई शादी?

राबड़ी देवी की ज्यादा पढ़ाई लिखाई नहीं हुई है. वो सिर्फ पांचवीं पास हैं. वो इसके आगे नहीं पढ़ पाईं क्योंकि घर से सबसे नजदीकी स्कूल चार किलोमीटर दूर था. राबड़ी देवी अपने पिता की सात संतानों में तीसरे नंबर पर थीं. जलेबा देवी और पाना देवी पहले और दूसरे नंबर पर थीं. राबड़ी के बाद प्रभुनाथ सिंह यादव थे. अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव पांचवें और गिरिजा देवी छठे नंबर पर थीं. सबसे छोटे सुभाष यादव थे.

राबड़ी देवी के पिता शिव प्रसाद चौधरी उनके लिए रिश्ता तलाश रहे थे. सेलार कला और फुलवरिया के बीच पड़ने वाले मादीपुर गांव के मुखिया ने उनको पटना में पढ़ने वाले लालू यादव के बारे में बताया. लालू यादव उन दिनों छात्र राजनीति में एक्टिव थे. और पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ के महासचिव चुने जा चुके थे. शिव प्रसाद चौधरी पटना में लालू यादव से मिले. वह लालू की बुद्धि, कद काठी और पटना में पढ़ाई से काफी प्रभावित हुए. और शादी के लिए हामी भर दी.

राबड़ी देवी के पिता पटना से लौटकर घर आए. और परिवार वालों को राबड़ी देवी की शादी तय करने की बात बताई. घर में इसको लेकर विवाद हो गया. राबड़ी देवी के चाचा इस शादी से सहमत नहीं थे. राबड़ी देवी के छोटे भाई प्रभुनाथ यादव ने बताया, 

हमारे पिताजी ठेकेदारी करते थे. उन्होंने लड़का पसंद कर लिया था. लेकिन चाचा को लड़का पसंद नहीं था. उनका कहना था कि लड़का के पास न तो पटना में अपना घर है ना ही सरकारी नौकरी है. किस आधार पर उससे हम अपनी बेटी ब्याहेंगे.

लेकिन शिव प्रसाद चौधरी जिद पर अड़ गए. उन्होंने कहा कि शादी तो वो उसी लड़के से करेंगे. जीटीवी पर साल 2002 में एक टॉक शो आया था. ‘जीना इसी का नाम है’. इसके छठे एपिसोड में लालू और राबड़ी का परिवार शामिल हुआ था. फिल्म अभिनेता फारूख शेख इस कार्यक्रम को होस्ट करते थे. इस दौरान फारुख ने राबड़ी देवी के पिता से बेटी की शादी के बारे में कुछ सवाल पूछा. शिव प्रसाद चौधरी ने बताया,

 लड़का तो मुझे पहली बार में ही पसंद आ गया था. लोग इधर-उधर की बात बताए कि लालू यादव का मिट्टी का घर है और जमीन भी कम है. लेकिन हमने कहा कि शादी जमीन से नहीं लड़के से होती है.

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क्रेडिट - (राजद वेब)

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लालू यादव ने लड़की देखने के लिए दूत भेजा

लालू यादव और राबड़ी यादव की शादी तय हो गई. उस समय लड़की देखने का रिवाज नहीं था. यानी लड़का और लड़की शादी से पहले एक दूसरे को शादी के वक्त ही देख पाते थे. लेकिन लालू यादव पटना रहते थे. बीएन कॉलेज के स्टूडेंट थे. यानी उस जमाने के हिसाब से ठीक-ठाक एडवांस. इसलिए उन्होंने तय किया कि वो लड़की देखने के लिए अपना एक दूत भेजेंगे.

उनके बड़े साल प्रभुनाथ यादव बताते हैं कि लालू यादव की ओर से तत्कालीन पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नागेश्वर शर्मा और कुछ लोग मेरी बहन को देखने आए थे. उन लोगों ने आकर लालू यादव को बताया कि लड़की अच्छी है. उसके बाद लालू यादव शादी के लिए तैयार हो गए.

एक जून 1973 को लालू यादव और राबड़ी देवी की शादी हुई. लालू पीला कुर्ता-पाजामा और टोपी पहनकर दुल्हा बनकर पहुंचे. काफी धूमधाम से शादी हुई. शिव प्रसाद चौधरी ने दहेज में अपनी बेटी को पांच बीघा जमीन, 20 हजार रुपये नकद और पांच गाय दी थी. शादी के वक्त राबड़ी देवी की उम्र 14 साल थी, जबकि लालू यादव 25 साल के थे. 

रंजन यादव बारात में पांच एंबेसडर लेकर आए थे

पटना छात्र संघ चुनाव से ठीक पहले लालू यादव की शादी की डेट फाइनल हुई थी. और शादी के वक्त वो अध्यक्ष चुन लिए गए थे. उससे पहले वो एक बार अध्यक्ष का चुनाव हार चुके थे. और एक बार महासचिव भी रहे थे. लालू यादव आर्थिक तौर पर इतने मजबूत नहीं थे कि शादी में रुतबा जमाने के लिए कार का इंतजाम कर सके. उन्होंने ये जिम्मा पटना के अपने दोस्त रंजन यादव को सौंपी. रंजन यादव का घर पटना के नाला रोड में हैं. वो आर्थिक रूप से संपन्न परिवार से थे.

लालू यादव का रुतबा जमाने के लिए रंजन यादव पटना से पांच एंबेसडर कार लेकर बारात में पहुंचे. इन्हीं में से एक एंबेसडर कार पर लालू यादव भी सवार हुए थे. सेलार कला में इस बारात की खूब चर्चा हुई. क्योंकि उस जमाने में शादियों में कार का होना बड़ी बात मानी जाती थी.

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इंडिया टुडे आर्काइव
शादी के वक्त भी दुल्हन को नहीं देख पाए

लालू यादव बताते हैं कि जब शादी हुई उस वक्त भी वो राबड़ी को नहीं देख पाए. क्योंकि शादी के समय राबड़ी देवी लंबा सा घूंघट काढ़ रखी थीं. यादव ने घूंघट के भीतर हाथ डालकर ही सिंदूर दान किया. लालू यादव की आत्मकथा ‘फ्रॉम गोपालगंज टू रायसीना’ किताब में नलिन वर्मा लिखते हैं कि शादी के तुरंत बाद लालू और राबड़ी नहीं मिले. उस वक्त गांव में गौना की प्रथा चलती थी. गौना होने के बाद ही पत्नी को पति के घर भेजा जाता था. लालू यादव बताते हैं कि मार्च 1974 में घर आने के पहले उन्होंने राबड़ी देवी को नहीं देखा था.

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पहली मुलाकात में जेपी आंदोलन के बारे में बताया

लालू यादव जब पहली बार राबड़ी देवी से मिले उस वक्त वो एक साधारण सी साड़ी पहनी हुई थीं. लालू उनके पास जाकर कहते हैं कि बिहार में जो विराट आंदोलन चल रहा है, वो उसके एक नेता हैं और जय प्रकाश नारायण उनका नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने राबड़ी देवी को बताया,

 मुझे 18 मार्च से पहले पटना पहुंचना है. अगर मैं समय से नहीं पहुंचा तो मुझे भगोड़ा घोषित कर दिया जाएगा. लोग कहते हैं कि मुझे कुछ भी हो सकता है. मुझे गिरफ्तार करके जेल भेजा जा सकता है. मैं तुम्हारा सहयोग चाहता हूं.

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इंडिया टुडे आर्काईव

इस पूरी बातचीत के दौरान राबड़ी देवी चुप रहीं. उन्होंने कुछ नहीं कहा. इसके बाद लालू यादव अपने कार्यकर्ता साथियों के साथ खड़े होने के लिए पटना चले जाते हैं. पटना में लालू यादव वेटनरी कॉलेज के चपरासी क्वार्टर में रहते थे. यहां उन्होंने कुछ दिन संविदा पर कर्मचारी की नौकरी की थी. और यहीं पर उनके बड़े भाई चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे. यहां पहुंचने के बाद उन्होंने अपने भाई सुखदेव को समझाया कि राबड़ी देवी को भी उनके साथ रहना चाहिए. लालू यादव के भाई मान जाते हैं. और राबड़ी देवी को पटना बुला लिया जाता है. 

शादी के बाद से लालू यादव तेजी से सियासत की सीढ़ियां चढ़ते गए और एक दिन सूबे के मुख्यमंत्री बने. फिर चारा घोटाला मे जेल भी जाना पड़ा. जेल जाने से पहले लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया. और सबको चौंकाते हुए अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी संभाल रहीं राबड़ी देवी को राज्य की जिम्मेदारी दे दी. यानी उनको मुख्यमंत्री बना दिया. 

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