CCI चुनाव के बाद राजीव प्रताप रूडी का 'राजपूत अवतार', वजह बिहार चुनाव तो नहीं?
Rajiv Pratap Rudy की छवि एक एलीट किस्म के राजनेता की रही है जिसका जाति की राजनीति पर ज्यादा जोर नहीं रहा है. हालांकि अब वो कह रहे हैं कि जब वह जाति से ऊपर उठकर बात करते थे तो चुनाव हार जाते थे. लेकिन जब से उन्होंने लोगों को अपनी जाति बतानी शुरू की, वह चुनाव जीतने लगे.

‘बिहार में राजपूत 70 सीटों पर हराने या जिताने की क्षमता रखते हैं.’ ये एक नेता का बयान है. जो इन दिनों मीडिया के स्पॉटलाइट में है. वजह दिल्ली की एक संस्था का चुनाव. जिसमें गृह मंत्री अमित शाह की भी दिलचस्पी थी. कुछ लोग तो इस चुनाव के नतीजे को ‘अमित शाह की हार’ बता रहे हैं. वहीं कुछ इसे उनका ‘मास्टरस्ट्रोक’ बता रहे, जिसने एक नेता की राजनीति को फिर से जिंदा कर दिया. और अब वह बिहार में राजपूत वोटों की गोलबंदी में जुटा है.
नेता का नाम है राजीव प्रताप रूडी (Rajiv Pratap Rudy) और संस्था है कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया (Constitution Club Of India). इस चुनाव में हारने वाले नेता का नाम है संजीव बालियान (Sanjeev Balyan). दोनों पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता है. रूडी छपरा से सांसद है. बालियान मुजफ्फरनगर से पूर्व सांसद.
CCI चुनाव को बीजेपी के अंदरूनी टकराव के तौर पर प्रचारित किया गया. चुनाव के दौरान बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे खुलेआम रूडी के खिलाफ मोर्चा लेते दिखे. वहीं मीडिया रिपोर्ट्स में दावे किए गए कि बालियान गुट को गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का समर्थन है. जबकि सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत विपक्ष के अधिकतर नेताओं ने रूडी का समर्थन किया. वो चुनाव जीत गए और एक बार फिर लाइमलाइट में आ गए.
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी में हाशिए पर चल रहे राजीव प्रताप रूडी ने इस अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया. चुनाव परिणाम आने के कुछ हफ्ते बाद उनके कुछ इंटरव्यू काफी चर्चा में हैं. इन इंटरव्यू में रूडी ने जो कहा उसके ‘बिटविन द लाइन’ कई मतलब निकाले जा रहे हैं.
राजीव प्रताप रूडी बिहार के राजपूत नेता है. सारण सीट से चार बार के सांसद हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी, दोनों की कैबिनेट में मंत्री रहे. लेकिन साल 2017 के बाद से कुछ गुमनाम हो गए. 2024 लोकसभा चुनावों में टिकट कटने की बात भी चल रही थी. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. अभी पार्टी प्रवक्ता की जिम्मेदारी है. लेकिन ज्यादा सक्रियता नहीं रही है. लेकिन कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव में मिली जीत के बाद रूडी के तेवर देखने लायक हैं. वो खुद को राजपूत समाज के गारंटर के तौर पर पेश करते दिख रहे हैं.
पिछले तीन साल से बिहार में 'सांगा यात्रा' निकाली जा रही है. इसकी प्रेरणा हैं राजपूत राजा महाराणा सांगा जिन्होंने मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर को चुनौती दी थी. इस यात्रा को लेकर रूडी मीडिया पर तंज करते भी नजर आए. उन्होंने राजपूतों को ‘उपेक्षित समुदाय’ बताते हुए कहा कि वो राजपूत समाज के गारंटर बनना चाहते हैं, जैसे यादव समुदाय के लिए लालू यादव, कुर्मी के लिए नीतीश कुमार और पासवान समुदाय के लिए चिराग पासवान हैं. लगे हाथ रूडी ने ये दावा भी कर दिया कि राजपूत समुदाय बिहार की 70 सीटों पर खुद जीतने या नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है.
राजीव प्रताप रूडी की इस सक्रियता पर लल्लनटॉप के पॉलिटिकल एडिटर पंकज झा ने बताया,
अब तक राजीव प्रताप रूडी की इमेज एक सर्व समाज के नेता की रही है. लेकिन यह पहचान अब उनको राजनीतिक रूप से फायदा नहीं पहुंचा रही है. एक वक्त केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय महासचिव रहे रूडी की भूमिका अब सांसद और पार्टी प्रवक्ता की रह गई है. कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनाव परिणामों ने उनको खुद को राजपूत समाज के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने का मौका दिया है. और रूडी इस मौके को भुनाकर खुद को राजपूत समाज के गारंटर के तौर पर प्रोजेक्ट करने में जुट गए हैं.
राजीव प्रताप रूडी की छवि एक एलीट किस्म के राजनेता की रही है जिसका जाति की राजनीति पर ज्यादा जोर नहीं रहा है. लेकिन हालिया इंटरव्यू में रूडी अपनी राजपूत पहचान पर जोर देते दिखे. उन्होंने यहां तक दावा किया कि जब वह जाति से ऊपर उठकर बात करते थे तो चुनाव हार जाते थे. लेकिन जब से उन्होंने लोगों को अपनी जाति बतानी शुरू की, वह चुनाव जीतने लगे.
इंटरव्यू में रूडी ने नीतीश कुमार और लालू यादव की खूब तारीफ की. ये भी बताया कि अब लालू यादव भी उनको पसंद करने लगे हैं. ये उनकी खुद को पैन बिहार राजपूत नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश लगती है.
लोकसभा चुनाव 2024 में एक नैरेटिव चला कि राजपूत समुदाय बीजेपी से नाराज है. वजह बताई गई टिकट बंटवारे में उपेक्षा. और गुजरात से आने वाले बीजेपी के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला का एक बयान. इसमें उन पर राजपूत समुदाय का अपमान करने का आरोप लगा.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में बड़ा झटका लगा. जिस संजीव बालियान ने कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव में रूडी को चुनौती दी, उनकी हार के पीछे भी पश्चिमी यूपी के एक नेता संगीत सोम की नाराजगी बताई गई. संगीत सोम राजपूत समुदाय से हैं. योगी आदित्यनाथ बनाम अमित शाह का एंगल भी सामने आया. राजीव प्रताप रूडी अगर बीजेपी को ये मैसेज देने में कामयाब रहते हैं कि बिहार के राजपूत उनके पीछे गोलबंद हो सकते हैं तो उनका सियासी भाव बढ़ सकता है. ऐसे में बीजेपी के लिए उनको बैक सीट पर रखना मुश्किल हो जाएगा.
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रूडी को आगे करना बीजेपी की रणनीति तो नहीं?कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव में अमित शाह के करीबी माने जाने वाले निशिकांत दुबे रूडी की मुखालफत करते नजर आए. जबकि विपक्ष रूडी के पक्ष में लामबंद दिखा. कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे पार्टी में आंतरिक कलह के तौर पर देखा. पर सवाल है कि क्या पीएम मोदी और अमित शाह के खिलाफ जाकर बीजेपी में राजनीति कर पाना आसान है?
बिहार बीजेपी के तमाम नेता इस चुनाव में रूडी के पक्ष में गोलबंद दिखे. लेकिन ये बात हजम नहीं होती कि रूडी का समर्थन करने के लिए वे अमित शाह की नाराजगी मोल लेंगे. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा CCI चुनाव के बाद पैदा हुई कई अटकलों को खारिज करते हुए कहते हैं,
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में रूडी की जीत बालियान की रणनीतिक चूक है. इस जीत के बाद से रूडी की महत्वकांक्षा बढ़ी है. वहीं लोकसभा चुनाव के बाद से हाशिए पर चल रही राजपूत लॉबी का भी मनोबल बढ़ा है. एक समय राजनाथ सिंह राजपूतों के सबसे बड़े नेता के तौर पर देखे जाते थे. अब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का चेहरा है. इस जीत के बाद उनको बिहार में रूडी में उम्मीद नजर आने लगी है. और रूडी इसको भुनाने में जुटे हैं.
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बिहार में राजपूत फेस बनने की कवायदबिहार में राजपूत समुदाय की आबादी करीब साढ़े तीन फीसदी है. राज्य में 28 राजपूत विधायक हैं. बिहार में बीजेपी के साथ-साथ लालू यादव को भी राजपूतों का समर्थन मिलता रहा है. राजद की ओर से जगदानंद सिंह और दिवंगत रघुवंश प्रसाद सिंह बड़े राजपूत चेहरे रहे हैं.
लेकिन पिछले कुछ चुनावों से ये ट्रेंड बदला है. राजपूतों का झुकाव बीजेपी की ओर बढ़ा है. हालांकि पार्टी में उनको बड़ी हिस्सेदारी नहीं मिली है. बीजेपी के दो डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा, कुशवाहा और भूमिहार जाति से आते हैं. केंद्र में भी बिहार से कोई राजपूत मंत्री नहीं है.
लोकसभा चुनाव में राजपूत जाति से आने वाले पवन सिंह ने आसनसोल से बीजेपी का टिकट कटने के बाद निर्दलीय ताल ठोकी थी. इससे बीजेपी को मगध शाहाबाद में कई सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. जाहिर है बीजेपी इस बार राजपूत वोटों को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतेगी.
वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल का मानना है कि राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी राजीव प्रताप रूडी ने इस चीज को भांप लिया है. और इसी हिसाब से अपने दांव चल रहे हैं. कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव के बाद बनी परिस्थितियों ने उनको बिहार में राजपूतों का स्वाभाविक लीडर बना दिया है. अब रूडी हाथ आए इस अवसर को भुनाना चाहते हैं. और बीजेपी नेतृत्व को संकेत दे रहे हैं कि वो उनके कोई बड़ी भूमिका तलाशे.
वीडियो: राजीव प्रताप रूडी ने फिर जीता कॉन्स्टिट्यूशन क्लब का चुनाव, संजीव बालियान की हार इतनी चर्चा में क्यों?