बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) से पहले छोटी पार्टियों के बड़े दावों ने महागठबंधन और NDA के बड़े घटक दलों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. NDA में जहां चिराग पासवान (Chirag Paswan), उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) और जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) ज्यादा से ज्यादा सीट पाने की कवायद में जुटे हैं. वहीं महागठबंधन में कांग्रेस के बाद अब वाम दलों (Left Parties) की दावेदारी ने राजद की टेंशन बढ़ा दी है.
इस बार पहले से दोगुनी सीटें मांग रहे... कांग्रेस के बाद अब लेफ्ट से कैसे निपटेगी RJD?
Bihar में लेफ्ट पार्टियां पिछले विधानसभा चुनाव की सफलता को ध्यान में रखकर उत्साहित हैं. और इस बार ज्यादा सीटों पर दावेदारी कर रही हैं. CPI ML(L) ने जहां RJD को लिस्ट सौंपी है. वहीं CPI भी इस बार सीटों की संख्या दहाई के आंकड़े तक पहुंचने की कवायद में जुटी है.


बिहार में लेफ्ट पार्टियां पिछले विधानसभा चुनाव की सफलता को ध्यान में रखकर उत्साहित हैं. और इस बार ज्यादा सीटों पर दावेदारी कर रही हैं. CPI ML(L) (माले) ने जहां राजद को 40 सीटों की लिस्ट सौंपी है. वहीं CPI भी इस बार सीटों की संख्या दहाई के आंकड़े तक पहुंचने की कवायद में जुटी है. 8 सितंबर से शुरू हुए CPI के राज्य सम्मेलन में भी पार्टी नेताओं ने मजबूत दावेदारी पेश करने की पुरजोर वकालत की. लेकिन क्या वाम दलों के लिए उनके मन मुताबिक सीट मिल पाना संभव है?
2020 विधानसभा में शानदार प्रदर्शनसाल 2020 के विधानसभा चुनाव में वाम दलों का प्रदर्शन शानदार रहा था. तीनों दलों को मिलाकर 16 सीटों पर जीत मिली थी. इसमें माले ने 19 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 सीटें जीतीं, वहीं CPI ने 6 और CPI(M) ने 4 सीटों पर लड़कर 2-2 सीटों पर जीत दर्ज किया. बछवाड़ा विधानसभा सीट से CPI प्रत्याशी अवधेश राय मात्र 484 वोट से पिछड़ गए, नहीं तो ये आंकड़ा और बेहतर होता. पिछले चुनाव में बेहतर प्रदर्शन को आधार बनाकर ही वाम दल इस बार ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं.
माले ने 1989 में पहली बार चुनावी राजनीति में हिस्सा लिया था. उसके पहले पार्टी भूमिगत आंदोलन चलाती थी. सोन नद के आसापास के इलाकों में इसकी काफी मजबूत पकड़ रही है. इसमें मगध और शाहाबाद के अंतर्गत आने वाले इलाके आरा, पटना, सासाराम, बक्सर, जहानाबाद और अरवल जिले शामिल हैं. पिछली बार पार्टी ने इस इलाके में 10 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जिन दो सीटों पर पार्टी हारी उनमें दीघा और आरा की शहरी सीट शामिल है. इसके अलावा सीवान, गोपालगंज, कटिहार और मुजफ्फरपुर के कुछ इलाकों में भी माले की मजबूत पकड़ है.
वहीं एक समय पूरे बिहार में संगठन के तौर पर मजबूत CPI और CPI(M) का आधार अब बेगूसराय, सारण और मिथिलांचल के जिलों में ज्यादा मजबूत दिखता है. पिछले चुनाव में CPI(M) ने मधुबनी के हरलाखी और झंझारपुर विधानसभा से उम्मीदवार खड़े किए थे. वहीं बेगूसराय के तेघड़ा, बखरी और बछवाड़ा सीट भी पार्टी के हिस्से में आईं थीं. बेगूसराय पार्टी का पुराना गढ़ माना जाता है. आजादी के बाद लेफ्ट का पहला विधायक बेगूसराय के तेघड़ा विधानसभा से ही चुना गया था. साल 1956 के उपचुनाव में तेघड़ा विधानसभा से सीपीआई के चंद्रशेखर सिंह ने जीत दर्ज की थी.
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पिछले चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टियों का प्रदर्शन तो बेहतर रहा था ही इनके प्रभाव वाले इलाकों में वाम खेमे का वोट पूरी तरह से महागठबंधन के खेमे में ट्रांसफर हुआ था. जिसका फायदा राजद को भी हुआ था. अपने पिछले प्रदर्शन और वोट ट्रांसफर की ताकत के दम पर ही वाम दल इस बार ज्यादा सीटों की डिमांड कर रहे हैं.
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