बिहार में करीब 18 फीसदी मुस्लिम आबादी है. लेकिन विधानसभा चुनाव 2025 में जीत कर आए हैं मात्र 11 विधायक. यानी एक प्रतिशत मुस्लिम आबादी पर 1 विधायक का भी हिसाब नहीं बन पा रहा है. साल 1951-52 में बिहार में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे. तब से अब तक कभी भी विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या इतनी कम नहीं रही है. 11 मुस्लिम विधायकों में से 5 असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से हैं. वहीं राजद से 3, कांग्रेस से 2 और जदयू से 1 मुस्लिम विधायक जीते हैं.
इस बार बिहार में सिर्फ 11 मुस्लिम विधायक, आज़ादी के बाद से इतने कम कभी नहीं हुए
Bihar Assembly Election 2025 के नतीजे आ गए हैं. NDA को प्रचंड बहुमत मिला है. वहीं महागठबंधन को करारी हार. इस विधानसभा चुनाव में चुन कर आने वाले मुस्लिम विधायकों की संख्या 11 रह गई है. जोकि साल 1951-52 से हो रहे विधानसभा चुनाव से अब तक सबसे कम है.


असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने अपना जलवा बरकरार रखा है. साल 2020 की तरह साल 2025 के विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी सीमांचल में पांच सीट जीतने में कामयाब रही है. जोकीहाट से AIMIM के मुरशिद आलम, बहादुरगंज से तौसीफ आलम, कोचाधामन से सरवर आलम, अमौर से अख्तरुल ईमान और बायसी से गुलाम सरवर जीते.
इसके साथ ही ओवैसी ने तेजस्वी यादव और राजद से अपना हिसाब भी बराबर कर लिया है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के पांच विधायक जीते थे. पांचों विधायक सीमांचल से जीते थे. जहां मुस्लिम वोटर्स निर्णायक संख्या में हैं. ये पांच सीटें थीं - अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन विधानसभा सीट. लेकिन चुनाव के कुछ महीनों बाद ही राजद ने उनके चार विधायक तोड़ लिए. ओवैसी की पार्टी के बिहार चीफ और अमौर विधानसभा सीट से पार्टी विधायक अख्तरुल ईमान ही उनके साथ रहे.
उस वक्त ओवैसी ने तेजस्वी पर उनकी पार्टी को खत्म करने का आरोप लगाया था. लेकिन अब AIMIM ने उन चार में से तीन सीटों पर कब्जा जमा लिया है जहां जीतने के बाद उनके विधायक राजद में शामिल हो गए थे. ये सीटें हैं जोकीहाट, कोचाधामन और बायसी.
राजद से गठबंधन की कोशिश, फिर तेजस्वी पर निशानाबिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अख्तरुल ईमान ने राजद सुप्रीमो लालू यादव को गठबंधन में शामिल करने के लिए पत्र भी लिखा. लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया. इसके बदले राजद नेताओं ने ओवैसी को हैदराबाद तक महदूद रहने की नसीहत दे दी. यही नहीं एक इंटरव्यू में तेजस्वी यादव ने ओवैसी को ‘एक्सट्रीमिस्ट’ करार दे दिया. इसके बाद से ओवैसी का चुनावी अभियान काफी एग्रेसिव रहा. उन्होंने आरोप लगाया कि वो टोपी पहनते हैं, दाढ़ी रखते हैं और नमाज पढ़ते हैं इसलिए तेजस्वी उनको ‘एक्सट्रीमिस्ट’ बता रहे हैं.
राजद के 18 में से 3 मुस्लिम विधायक जीतेराजद ने इस चुनाव में 18 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया था. जिसमें से मात्र तीन प्रत्याशी जीत पाए. सिवान की रघुनाथपुर सीट से बाहुबली नेता और राजद से सांसद रहे मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब ने जदयू के विकाश कुमार सिंह को 9 हजार 248 वोट से हरा कर जीत दर्ज की. शहाबुद्दीन के परिवार का कोई सदस्य आखिरी बार 21 साल पहले चुनाव जीता था.
ओसामा के अलावा पूर्वी चंपारण की ढाका सीट से राजद के फैसल रहमान ने जीत दर्ज की है. उन्होंने बीजेपी के पवन कुमार जायसवाल को 178 वोटों से हराया. वहीं मधुबनी जिले की बिस्फी सीट पर राजद के उम्मीदवार आसिफ अहमद ने बीजेपी उम्मीदवार हरिभूषण ठाकुर बचौल को 8 हजार 107 वोटों से हराया. आसिफ अहमद राजद के राज्यसभा सांसद फैयाज अहमद के बेटे हैं.
कांग्रेस के 6 में से 2 विधायक मुस्लिमकांग्रेस ने 61 में से 10 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया था. इनमें से 2 प्रत्याशी ही विधायक बन पाए हैं. ये दोनों सीटें सीमांचल की है. जिन पर पिछली बार भी पार्टी को जीत मिली थी. किशनगंज में उसके उम्मीदवार मोहम्मद कमरुल होदा और अररिया में आबिदुर रहमान ने जीत हासिल की. हालांकि कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी से 18 हजार 368 वोटों से हार गए.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें से कैमूर जिले की चैनपुर सीट से मोहम्मद जमा खान को ही जीत मिली है. साल 2020 में जमा खान बसपा के टिकट पर जीते थे. फिर जदयू में शामिल हो गए थे. नीतीश कुमार ने उनको अपनी कैबिनेट में शामिल किया था.
एनडीए के एक और घटक लोजपा (रामविलास) ने किशनगंज जिले की बहादुरगंज सीट से एक मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद कलीमुद्दीन को टिकट दिया था. इस सीट से AIMIM के मोहम्मद तौसीफ आलम से 28 हजार वोटों के अंतर से जीते. कांग्रेस के मोहम्मद मसव्वर आलम दूसरे और कलीमुद्दीन तीसरे स्थान पर रहे.
बिहार में मुस्लिम विधायकसाल 1951-52 के पहले विधानसभा चुनाव में 24 मुस्लिम विधायक बने थे. इसके बाद साल 1957 के चुनाव में 25 और 1962 के चुनाव में 21 मुस्लिम विधायक जीतकर पहुंचे थे. साल 1967 के चुनाव में 18 मुस्लिम जीते थे और साल 1969 के चुनाव में 19 मुस्लिम सदन पहुंचे थे.
वहीं साल 1972 और 1977 के चुनाव में 25-25 मुस्लिम विधायक जीते थे. साल 1980 के चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या में इजाफा हुआ और 28 मुस्लिम जीतकर विधानसभा पहुंचे, जबकि 1985 के चुनाव में 34 मुस्लिम जीतने में सफल रहे.
फिर साल 1990 में मुस्लिम विधायकों की संख्या गिरकर 20 रह गई. इसके बाद साल 1995 के चुनाव में 19 मुस्लिम ने जीत दर्ज की. और साल 2015 में लालू- नीतीश साथ आए तो मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ कर 24 हो गई. फिर साल 2020 के विधानसभा चुनाव में महज 19 मुस्लिम ही विधायक बन पाए.
वीडियो: बिहार चुनाव में कांग्रेस-RJD पर ऐसे भारी पड़ी ओवैसी की AIMIM














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