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मुज़फ्फ़रनगर दंगा : तीन गवाह पलटे, लूट और आगजनी के आरोपी बरी हो गए

अखिलेश सरकार में हुए इस दंगे में 60 लोग मारे गए थे.

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मुज़फ्फ़रनगर में 2013 में हुई हिंसा में नामजद लोगों के खिलाफ मुकदमा लेने के लिए योगी सरकार ने इस साल संस्तुति भी की थी.
मुज़फ्फ़रनगर की निचली अदालत ने 2013 के दंगों के 12 आरोपियों को 29 मई, 2019 को आरोपों से बरी कर दिया. इन सभी पर 2013 के मुज़फ्फ़रनगर दंगों के दौरान लिसाढ़ गांव में आगजनी करने, लूटपाट करने और हिंसा फैलाने के आरोप लगे थे. अभियोजन पक्ष आरोपियों पर गवाहों के अभाव में आरोप सिद्ध कर पाने में असफल साबित रहा. इस मामले के तीन गवाह कोर्ट में पलट गए. कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी 12 लोगों को बरी कर दिया है. मामले की सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजीव कुमार तिवारी कर रहे थे.
क्या था मामला?
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मुजफ्फरनगर दंगों में 40,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे.

7 सितम्बर 2013 को मुज़फ्फ़रनगर के नंगला मंदौड़ गांव में एक महापंचायत हुई थी. इस महापंचायत के बाद लिसाढ़ गांव में हिंसा हुई थी. आरोप है कि इस हिंसा के बाद गांव से मुस्लिमों की आबादी गांव छोड़कर पलायन कर गयी थी. इसके बाद 16 सितम्बर, 2013 को गांव से पलायन करने वाले सुलेमान ने फुगाना थाने में तहरीर दी. इस तहरीर में सुलेमान ने अपने घर पर भीड़ द्वारा आगजनी, हिंसा और लूटपाट का आरोप लगाया गया था. सुलेमान ने कुल 25 नामजद और 15-20 नामजद लोगों के खिलाफ तहरीर दी थी.
तहरीर के खिलाफ हुए थे विरोध प्रदर्शन
इस तहरीर में गठवाला खाप के मुखिया बाबा हरिकिशन और उनके बेटे राजेन्द्र का नाम आया तो गांव में विरोध प्रदर्शन होने लगे. यह भी आरोप लगते हैं कि गांववालों ने मामले को फर्जी बताने लगे. दंगा नियंत्रण के लिए भेजे गये आईजी आशुतोष पाण्डेय ने मामले की एसआईटी से जांच कराने की संस्तुति की. मामले की जांच के बाद एसआईटी ने बाबा हरिकिशन और उनके बेटे राजेन्द्र समेत 14 लोगों को क्लीन चिट दे दी थी. दो अन्य आरोपियों का नाम जांच में सामने आया. कुल 13 लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 495 (आगजनी) और 436 (घर को नष्ट करने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ का प्रयोग) के तहत FIR दर्ज की गयी थी. जिन कुल 13 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गयी, उनके नाम हैं : ऋषिदेव, बिट्टू उर्फ़ अरुण, शौकेंद्र, नरेंद्र उर्फ़ लाला, धर्मेन्द्र उर्फ़ काला, विजेंद्र, राजेन्द्र, अनुज, अमित, ब्रम्हा, सुरेन्द्र उर्फ़ बाबू, कृष्णा और नीशू. इसमें से ऋषिदेव की मामले की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गयी. और बिट्टू उर्फ़ अरुण और शौकेंद्र के नाम एसआईटी की जांच में सामने आए थे. कोर्ट में चार्जशीट भी फ़ाइल की गयी. लेकिन स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि 29 मई को सुनवाई के समय मुख्य शिकायतकर्ता सुलेमान भी अदालत में अपने बयान से मुकर गया था. तीन गवाह भी मुकर गए. और किसी ने आरोपियों के खिलाफ बयान नहीं दिया.
दंगों में हुई थी 60 से ज्यादा लोगों की मौत
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इन दंगों में 60 लोगों की मौत हो गई थी.

2013 के अगस्त और सितम्बर महीने में हुई मुज़फ्फ़रनगर में दो समुदायों के बीच हिंसा हुई थी. इस हिंसा के बाद लगभग 60 लोगों की मौत हुई थी. और लगभग 40 हज़ार लोगों को पलायन करना पड़ा था. चुनाव के मौसम में मुज़फ्फ़रनगर दंगे का मुद्दा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसी न किसी तरीके से बातचीत में आ ही जाता है. तमाम राजनीतिक दलों पर आरोप लगते हैं कि जाट व मुस्लिम समुदाय के बीच हुई इस हिंसा का वे राजनीतिक फायदा उठाते हैं.
मुज़फ्फ़रनगर दंगे में लगभग सौ से ज्यादा आरोपियों के खिलाफ कई धाराओं में मुक़दमे दायर किये गए हैं. फरवरी, 2019 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन आरोपियों के खिलाफ मुक़दमे वापिस लेने की सिफारिश भी की थी. जिन तीन हत्याओं की वजह से मुज़फ्फ़रनगर में दंगा भड़का था, उस मामले में इसी साल 6 फरवरी, 2019 को कोर्ट का फैसला आया था. बाइक लड़ने के विवाद में शाहनवाज़, सचिन और गौरव की हत्या हो गयी थी. इस मामले में गौरव के पिता रवीन्द्र ने जानसठ कोतवाली में कवाल के ही रहने वाले मुजस्सिम, मुजम्मिल, फुरकान, नदीम, जहांगीर, शाहनवाज, इकबाल और अफजाल के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करवाया था. इनमें से शाहनवाज़ की हत्या मौके पर ही हो गयी थी. 6 फरवरी को एडीजे हिमांशु भटनागर ने सभी सात लोगों को सचिन और गौरव की हत्या का दोषी करार दिया.


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