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कहानी सीट बेल्ट की, जिसे इस कार कंपनी बनाया और बांट दिया ताकी सबकी जान बच सके!

1959 में 3-प्वाइंट सीट बेल्ट लॉन्च हुआ था. वो सीट बेल्ट जो अब सभी कारों में मौजूद होता है. लेकिन इसको बनाने वाली कंपनी ने पेटेंट लेने से मना कर दिया था.

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Volvo ने 3-Point सीट बेल्ट लॉन्च की थी. (फोटो-Pexels)

कार पुरानी हो या फिर मॉर्डन, सेफ्टी फीचर्स तो जरूरी ही होते हैं. किसी में नॉर्मल सेफ्टी फीचर मिलते हैं तो किसी में एडवांस. लेकिन एक फीचर है , जिसका बेसिक, नॉर्मल या एडवांस से कोई लेना-देना नहीं है. क्योंकि ये कार में तो होगा ही. इसके बिना कार बनेगी ही नहीं. बिना इसके कार को कोई 'कैप' नहीं मिलेगी. फिर वो चाहे Global NCAP हो या फिर Bharat NCAP. हम बात कर रहे हैं सीट बेल्ट की.

लेकिन कभी आपके मन में ख्याल आया कि सीट बेल्ट आया कहां से? बता दें कि जब पहली कार बनी थी तब उसमें सीट बेल्ट जैसा कुछ नहीं था. अभी कारों में जो सीट बेल्ट होता है, उसके पीछे है Volvo और उसका एक इंजीनियर. बात करेंगे उस साल की जब Volvo ने सीट बेल्ट बनाकर करोड़ों का फीचर मुफ्त में बांट दिया.

सीट बेल्ट यानी सेफ्टी का वादा!

पहले बता देते हैं कि कार में सीट बेल्ट लगाने की कहानी कार से तो शुरू नहीं होती है. क्योंकि कार तो सड़कों पर चल ही रही थी. उस समय सेफ्टी फीचर्स में पैडेड डैशबोर्ड को ही सेफ मान लिया जाता था. लेकिन हवाई जहाज उड़ाते समय पायलट के गिरने या कहें कंट्रोल खोने का खतरा रहता था. ऐसे में इंजीनियर George Cayley ने 1800 के आस-पास ग्लाइडर (Monoplane Glider) के लिए सीट बेल्ट का डिजाइन तैयार किया था. ताकि पायलट अंदर सुरक्षित रह सके. वो बात अलग है कि ये सीट बेल्ट कारों के लिए बेकार थी. लेकिन कह सकते हैं कि पहली सीट बेल्ट तो एक हवाई जहाज के लिए बनाई गई थी.

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सीट बेल्ट का इस्तेमाल सेफ्टी के लिहाज से बहुत जरूरी है. (फोटो-Pexels)

कार के लिए पहली सीट बेल्ट Edward J Claghorn ने डिजाइन की थी.  उनकी सीट बेल्ट का इस्तेमाल न्यूयॉर्क की टैक्सी में भी हुआ. 1885 में Claghorn ने सीट बेल्ट बनाने के लिए पेटेंट कराया. लेकिन ये बेल्ट सेफ्टी के लिहाज से काफी नहीं था. ये सिर्फ एक साधारण पट्टा था. फिर 1946 में Dr C Hunter Shelden ने Retractable Seat Belt का आविष्कार किया. उनके हिस्से में एयरबैग और डोर लॉक बनाने का श्रेय भी जाता है. इसके बाद 1949 में Nash Motors Company भी अपनी कारों में सीट बेल्ट की सुविधा देने लगी. ऐसा करने वाली ये पहली कंपनी थी. लेकिन लोगों के बीच ये ज्यादा पॉपुलर नहीं रही.

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खैर, 1955 में Roger Griswold और Hugh de Haven ने कंधे और गोद सेफ्टी बेल्ट के लिए पेटेंट अप्लाई किया. 1958 में Glen Sheren नाम के एक्सपर्ट ने भी पेटेंट अप्लाई किया. मतलब सीट बेल्ट को सेफ बनाने में कई लोग कई सालों से लगे थे. लेकिन जिस सीट बेल्ट को कार में बैठे लोगों के लिए वाकई में सेफ माना गया और जो आज की मॉडर्न कारों में भी लगा होता है, उसे बनाया था Volvo के पहले चीफ सेफ्टी इंजीनियर Nils Bohlin ने. 1959 में उन्होंने 3-प्वाइंट सीट बेल्ट लॉन्च किया. 3-प्वाइंट मतलब ऊपर कंधे के पास से नीचे कमर तक और फिर कमर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक. मतलब अभी वाला सीट बेल्ट. 

seat belt history
Volvo कार ने सबसे पहले थ्री-पॉइंट सीट बेल्ट बनाई थी. (फोटो-Arnoldclark)

1959 में Volvo ने पहली 3-प्वाइंट सीट बेल्ट वाली कार Volvo Amazon और Volvo PV544 बाजार में उतारीं. कंपनी ने अपनी पहली सेफ्टी सीट बेल्ट वाली कार को सबसे पहले 13 अगस्त 1959 में बेचा था.

Nils Bohlin , Volvo के साथ काम करने से पहले एविएशन इंजीनियर थे. उन्होंने 1950 के दशक में साब (Saab) लड़ाकू विमानों के लिए इजेक्टर सीटें भी डिजाइन की थी. ऐसे में जब वह Volvo से जुड़े, तो उन्होंने ड्राइवरों की सुरक्षा के लिए 3-पॉइंट सीट बेल्ट का निर्माण किया था.

सेफ्टी बेल्ट तो सबने बनाई, फिर Vovlo ही क्यों छाई?

अब बताते हैं कि कैसे Volvo ने करोड़ों लोगों की जान बचाई.  सीट बेल्ट का निर्माण तो कई लोगों ने किया. लेकिन उन्होंने इसके साथ पेटेंट भी लिया. पेटेंट का मतलब है आपने कुछ बनाया और उसे कानूनी रूप से सुरक्षित कर लिया. ताकि कोई और व्यक्ति या कंपनी बिना आपकी परमिशन के उसका इस्तेमाल न कर सके. अब Volvo  को भी 3-प्वाइंट सीट बेल्ट सीट के आविष्कार के लिए पेटेंट दिया गया. लेकिन उन्होंने इसका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया. 

मतलब सभी कार निर्माता कंपनी अपनी कार में फ्री में Nils Bohlin की बनाई सीट बेल्ट का इस्तेमाल कर सकती थी. कंपनी का मानना था कि कोई व्यक्ति वोल्वो चलाता हों या नहीं, लेकिन गाड़ी चलाते समय वह सुरक्षित रहें. इसमें कोई शक नहीं कि कंपनी के इस फैसले से आज कई लोगों की जान बची है. ये ही वजह है कि सीट बेल्ट पहनने को भारत समेत दुनिया के हर देश में अनिवार्य बना दिया गया है.

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