पढ़ी है नमाज, पढ़ा है कुरआन, रोज़े भी रखे हैं, जानता हूं
आज बाग़ी कवि काज़ी नज़रुल इस्लाम का जन्मदिन है. पढ़िए उनकी ये कविता-

काज़ी नज़रुल इस्लाम- ये सिर्फ बांग्ला साहित्य का ही नही बल्कि विश्व साहित्य का एक मशहूर नाम है. नज़रुल सिर्फ कवि ही नहीं थे बल्कि उतने ही जरूरी दार्शनिक और ऐक्टिविस्ट भी थे. जिसे सही मायने में क्रांतिकारी कहा जा सके. ऐसा क्रांतिकारी जो हमेशा मानवाधिकारों के लिए खड़ा रहा, रूढ़ियों के खिलाफ लड़ता रहा. इन्होंने इस्लाम और बांग्ला साहित्य के बीच एक पुल की तरह काम किया.बांग्ला साहित्य को पुरातनपंथ से बाहर निकाल आधुनिकता का रास्ता दिया. कहा जा सकता है कि अपनी कविताओं से पूरे बंगाल को वैचारिक गुलामी से आज़ाद किया, खासकर मुस्लिम समुदाय को. तमाम तरह के विवाद भी जुड़े रहे उनसे. निजी भी और साहित्यिक भी. आरोप और आक्षेप लगे. आज इसी बाग़ी कवि का जन्मदिन है. पढ़िए ये कविता समझ जाएंगे कि उन्हें बाग़ी क्यों कहा जाता होगा-
किसानों की ईद
बिलाल ! बिलाल ! हिलाल निकला है पश्चिम के आसमान में, छुपे हुए हो लज्जा से किस मरुस्थल के क़ब्रिस्तान में देखो, ईदगाह जा रहे हैं किसान, जैसे हों प्रेत-कंकाल कसाईख़ाने जाते देखा है दुर्बल गायों का दल? रोज़ा इफ़्तार किया है किसानों ने आंसुओं के शर्बत से, हाय, बिलाल ! तुम्हारे कण्ठ में शायद अटकी जा रही है अजान। थाली, लोटा, कटोरी रखकर बन्धक देखो जा रहे हैं ईदगाह में, सीने में चुभा तीर, ऋण से बंधा सिर, लुटाने को ख़ुदा की राह में जीवन में जिन्हें हर रोज़ रोज़ा भूख से नहीं आती है नींद मुर्मुष उन किसानों के घर आज आई है क्या ईद? मर गया जिसका बच्चा नहीं पाकर दूध का महज एक बूंद भी क्या निकली है बन ईद का चांद उस बच्चे की पसली की हड्डी? काश आसमान में छाए काले कफ़न का आवरण टूट जाए एक टुकड़ा चांद खिला हुआ है, मृत शिशु के अधर-पुट में किसानों की ईद ! जाते हैं वह ईदगाह पढ़ने बच्चे का नमाज-ए-जनाज़ा, सुनते हैं जितनी तकबीर, सीने में उनके उतना ही मचता है हाहाकार मर गया बेटा, मर गई बेटी, आती है मौत की बाढ़ यज़ीद की सेना कर रही है गश्त मक्का मस्जिद के आसपास कहां हैं इमाम? कौनसा ख़ुत्बा पढ़ेंगे वह आज ईद में? चारों ओर है मुर्दों की लाश, उन्ही के बीच जो चुभता है आंखों में ज़री वाले पोशाकों से ढंक कर शरीर धनी लोग आए हैं वहां इस ईदगाह में आप इमाम, क्या आप हैं इन्हीं लोगों के नेता? निचोड़ते हैं कुरआन, हदीस और फिकह, इन मृतकों के मुंह में क्या अमृत कभी दिया आपने? सीने पर रखकर हाथ कहिए पढ़ी है नमाज, पढ़ा है कुरआन, रोज़े भी रखे हैं जानता हूं हाय रट्टू तोता ! क्या शक्ति दे पाए ज़रा-सी भी? ढोया है फल आपने, नहीं चखा रस, हाय री फल की टोकरी, लाखों बरस झरने के नीचे डूबकर भी रस नहीं पाता है बजरी अल्लाह - तत्व जान पाए क्या, जो हैं सर्वशक्तिमान? शक्ति जो नहीं पा सके जीवन में, वो नहीं हैं मुसलमान ईमान ! ईमान ! कहते हैं रात दिन, ईमान क्या है इतना आसान? ईमानदार होकर क्या कोई ढोता है शैतानी का बोझ? सुनो मिथ्यावादी ! इस दुनिया में है पूर्ण जिसका ईमान, शक्तिधर है वह, बदल सकता है इशारों में आसमान अल्लाह का नाम लिया है सिर्फ़, नहीं समझ पाए अल्लाह को जो ख़ुद ही अन्धा हो, वह क्या दूसरों को ला सकता है प्रकाश की ओर? जो ख़ुद ही न हो पाया हो स्वाधीन, वह स्वाधीनता देगा किसे? वह मनुष्य शहद क्या देगा, शहद नहीं है जिसके मधुमक्खियों के छत्ते में? कहां हैं वो शक्ति — सिद्ध इमाम, जिनके प्रति पदाघात से आबे जमजम बहता है बन शक्ति-स्रोत लगातार ? जिन्होंने प्राप्त नहीं की अपनी शक्ति, हाय वह शक्ति-हीन बने हैं इमाम, उन्हीं का ख़ुत्बा सुन रहा हूं निशिदिन दीन दरिद्र के घर-घर में आज करेंगे जो नई तागिद कहां हैं वह महा-साधक लाएंगे जो फिर से ईद? छीन कर ले आएंगे जो आसमान से ईद के चांद की हंसी, हंसी जो नहीं होगी ख़त्म आजीवन, कभी नहीं होगी बासी आएंगे वह कब, क़ब्र में गिन रहा हूं दिन? रोज़ा-इफ़्तार करेंगे सभी, ईद होगी उस दिन(बांग्ला से अनुवाद- सुलोचना वर्मा)(साभार-कविता कोश)
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