एक कविता रोज़: खिलते हैं एक ही मौसम में गुलमोहर और अमलतास
पढ़िए एक गणितज्ञ की कविता.
Advertisement

फोटो - thelallantop
सुधांशु फिरदौस हिंदी में कइयों के महबूब कवि हैं. गणित के छात्र और अध्यापक हैं, लेकिन जीवन के गणित में कमजोर हैं. दोस्तों पर जान छिड़कते हैं. रात-बिरात भी पुकारों तो चले आते हैं. मीर के भक्त हैं और कालिदास के भी. ‘बादल डाकिए’ शीर्षक से कविताओं की एक किताब बहुत दिन से तैयार है, लेकिन उसके आने की खबरें हवाओं में हैं, वह नहीं. खैर, सुधांशु साल के दूसरे दिन अपना जन्मदिन मनाते हैं. आज दूसरा ही दिन है, इसलिए उन्हें शुभकामनाएं देते हुए आज एक कविता रोज़ में पेश है उनकी : एक कविता या नौ शीर्षकहीनताएं...
रात भर मोर और कोयल में दुबोला होता रहा मैं उसके बारे में वो मेरे बारे मे दूसरों से पूछता रहा * लौट आई है एक तितली फूल पर बैठने से पहले लौट आया है एक पतंगा आग में जलने से पहले इन दिनों दोनों मिल कर गढ़ रहे हैं प्रेम की नई परिभाषा * मेरी जिंदगी की सारी नेमतें बंद हैं तुम्हारे एक पेंचोखम भरे दस्तखत से जिसकी जालसाजी मैं अब तक न कर सका और तुम खुद ही बंद हो किसी और की तिजोरी में * बादलों के पीछे छिपा है एक धुनिया धुन रहा है अनवरत रुई दूर-दूर तक फैले हैं सूरजमुखी के खेत बीच से एक साइकिल दूर जाती हुई जाड़े की खिली धूप में उनका मुरझाया हुआ चेहरा लगता है लंबा खिंचेगा ये इंतजार एकतरफा प्यार * वसंत की पहली बारिश ले जाएगी बची-खुची ठंड दोपहर की धूप में सूखेगा रात का भीगा कंबल * जीवन एक घर है जिसमें बेघर हूं मैं दरख्त किसके ध्यान में पत्ते किसके ये अकेलापन मुझे वहशी किए जा रहा है निगल जाना चाहता हूं पत्तियां, टहनियां पूरा का पूरा दरख्त * खिलते हैं एक ही मौसम में गुलमोहर और अमलतास भंवरा किस फूल पर बैठे इस फिक्र में रहता है उदास अकेले खाली छत पर चटाई डाल बियर से भरे हुए जग के साथ पैदा होने से अब तक के सारे दुःख को चांद से बांट जब मैं थक कर सो जाऊंगा मेरी कविता तुम भी सो जाना * परछाइयां धूप की हमसफर हैं अंधेरा जुगनुओं का यार रात सबकी है... लेकिन चांद सिर्फ उनका जो उसे हसरत से देख रहे हैं * दुःख के देवदार पर तुम्हारी यादों की बर्फबारी मैं टूट कर अब गिरा तब गिरा आज की रात आकाश में तारे लिख रहे हैं मेरे लिए कविता ये मीठा-मीठा दर्द ही मेरा सरमाया है