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दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िता को दी 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी खत्म करने की मंज़ूरी

कोर्ट ने कहा, "घटना ने सर्वाइवर पर ऐसे निशान छोड़े होंगे जिन्हें ठीक होने में सालों लग जाएंगे."

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delhi high court
घटना 25 दिसंबर 2021 की है. (फोटो - फाइल)
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सोम शेखर
21 जुलाई 2022 (Updated: 21 जुलाई 2022, 01:48 PM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न की एक पीड़िता को अपनी 25 हफ़्ते की प्रेगनेंसी ख़त्म करने की मंज़ूरी दे दी है. कोर्ट ने कहा कि अगर पीड़िता को इतनी कम उम्र में मां बनने के लिए मजबूर किया गया, तो उसकी पीड़ा और बढ़ जाएगी.

जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच ने 20 जुलाई को जारी आदेश में कहा,

"पेटिशनर बलात्कार की सर्वाइवर है. उसकी उम्र करीब 13 से 17 साल बताई जा रही है. उस पर हुए हमले ने बिला शक उस पर ऐसे निशान छोड़े होंगे जिन्हें ठीक होने में कई साल लग जाएंगे. अदालत उस निराशा की स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकती, जो उसपर गुज़र रही है. अगर उसे मातृत्व के कर्तव्यों को निभाने के लिए मजबूर किया जाए, तो उसे एक ऐसे मानसिक और शारीरिक सदमे से गुज़रना होगा, जो हमेशा उसके साथ जुड़े रहेंगे."

मामला क्या है?

लाइव लॉ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 17 साल की पीड़िता के पिता हाईकोर्ट गए थे. पीड़िता की ओर से दायर याचिका के मुताबिक़, घटना 25 दिसंबर, 2021 की है. पीड़िता के गांव की. दिल्ली के सफदरजंग एन्क्लेव थाने में मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद पीड़िता सफ़दरजंग अस्पताल गई. रेप से हुई प्रेगनेंसी को अबॉर्ट करवाने. अस्पताल ने कोर्ट से परमिशन लेने की बात कही. इसके बाद पीड़िता ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की.

केस के अदालत में जाने के बाद सफ़दरजंग अस्पताल ने अपने तई चार सदस्यों का एक मेडिकल बोर्ड गठित किया. बोर्ड ने 16 जुलाई, 2022 को एक रिपोर्ट तैयार की. मेडिकल टेस्ट्स और अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रेगनेंसी 25 हफ़्ते और 6 दिन की थी. भारत के अबॉर्शन क़ानून के हिसाब से अगर प्रेग्नेंसी 20 हफ़्ते से ज़्यादा हो जाए, तो फ़ीटस में कॉम्पलिकेशन के केस में ही अबॉर्शन किया जा सकता है. ये केस 25 हफ़्ते का था, तो मेडिकल बोर्ड प्रोसीड नहीं कर सकता था. अब मामले में हाईकोर्ट ने सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को इस संबंध में आगे की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दे दिए हैं.

इस मामले में कोर्ट ने कहा कि बोर्ड ने 2021 में हुए संशोधनों को संज्ञान में नहीं लिया. कोर्ट ने बताया कि अबॉर्शन ऐक्ट की धारा 3-(2)(बी) में हुए संशोधन के मुताबिक़, अगर कोई प्रेगनेंट महिला ये कहती है कि रेप या सेक्शुअल ऐक्ट की वजह से वो प्रेगनेंट हुई है तो तो ये उसके मेंटल हेल्थ पर गंभीर चोट माना जाता है.

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