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बीना दास: 21 साल की वो स्वतंत्रता सेनानी, जो डिग्री लेने पहुंचीं और चीफ गेस्ट पर गोलियां दाग दीं

आज के ही दिन कलकत्ता यूनिवर्सिटी को थर्राया था बीना दास ने.

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बायीं तरफ बीना दास, दायीं तरफ रीडिंग ईगल अख़बार में छपी उनकी सज़ा की ख़बर जो उन्हें बंगाल के गवर्नर पर गोली चलाने के अपराध में मिली थी.
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प्रेरणा
6 फ़रवरी 2020 (Updated: 6 फ़रवरी 2020, 11:45 AM IST) कॉमेंट्स
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6 फरवरी, 1932.
यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता का सीनेट हाउस.
कन्वोकेशन था. यानी ग्रेजुएट हो रहे छात्रों को उनकी डिग्री मिल रही थी. हॉल खचाखच भरा हुआ था. मुख्य अतिथि थे सर स्टैनली जैकसन. उर्फ़ जैकर्स. बंगाल के गवर्नर. ऑल इंग्लैण्ड क्रिकेट टीम के कप्तान हुआ करते थे. मुख्य भाषण उन्हीं का होना था.
जैकसन मंच पर पहुंचे. भाषण देना शुरू किया. तभी ठांय-ठांय दो गोलियां चलीं. जैकसन फ़ौरन झुक गए. सभी की नज़रें आवाज़ की दिशा में मुड़ीं. एक लड़की हाथ में रिवाल्वर ताने मंच के बिलकुल पास खड़ी थी. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल हसन सुहरावर्दी उस लड़की को रोकने के लिए लपके. जब तक उस लड़की को संभालते, उसने पूरा रिवाल्वर खाली कर दिया. हॉल में अफरा-तफरी मच गई.
लड़की का नाम बीना दास था.
Bina Das 3 700 बीना ने बचपन में ही ठान लिया था कि वो अंग्रेज सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगी (तस्वीर: ट्विटर)

पुण्य आश्रम से निकली 'अग्नि कन्या'
24 अगस्त, 1911 को पश्चिम बंगाल के नादिया में जन्मीं. बीना के पिता बेनी माधब दास ब्रह्म समाज के सदस्य थे. नामी-गिरामी अध्यापक रहे. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को भी उन्होंने पढ़ाया. मां सरला देवी बेसहारा औरतों के लिए काम करती थीं. बड़ी बहन कल्याणी दास छात्री संघ की सदस्य थीं. बीना भी इस संघ में थीं.
संघ क्या था, करीब 100 लड़कियों का समूह. कलकत्ता में. बड़े-बड़े कॉलेजों की लड़कियां थीं इसमें. स्टडी सर्किल बनाया जाता था. उनमें सभी लड़कियों को लाठी-तलवार चलाना, साइक्लिंग, मोटर ड्राइविंग सिखाते थे. इनमें से अधिकतर अपने घर पर नहीं रहती थीं. हॉस्टल में रहती थीं. हॉस्टल का नाम था पुण्य आश्रम. इसे सरला देवी ने शुरू किया था. यहां पर पुलिस से बचने के लिए बम छुपाए जाते थे. इसी हॉस्टल में बीना दास की ट्रेनिंग हुई. वो बीनादास, जिन्हें प्यार से सबने 'अग्नि कन्या' पुकारा.
Bina Das 2 700 बीना के बारे में पढ़ने को मिलता है कि वो जहरीली चीटियों से अपने पैर कटवाती थीं, आग की लौ पर उंगली  लगाया करती थीं ताकि दर्द झेलने की उनकी क्षमता में इज़ाफा हो सके. (तस्वीर: ट्विटर)

देश के लिए गोली चलाने वाली बीना
उस घटना में एक गोली स्टैनली जैकसन के कान को छूकर निकली थी. बीना ने कोशिश पूरी की. गवर्नर की जान बच गई. लेकिन इसमें एक प्रोफ़ेसर घायल हो गए. डॉक्टर दिनेशचन्द्र सेन. बीना को पकड़ लिया गया. उन्हें कलकत्ता के ट्रिब्यूनल कोर्ट में पेश किया गया. उन्होंने गोली चलाने के अपराध को स्वीकार किया. जज के सामने सिर ऊंचा कर बोलीं,
मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने सीनेट हाउस में आखिरी कन्वोकेशन के दिन गवर्नर पर गोली चलाई. मैं स्वयं को इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार स्वीकार करती हूं. मेरा मकसद मरना था और मैं गर्व के साथ मरना चाहती थी. इस सरकार के खिलाफ लड़ते हुए, जिसने मेरे देश को लगातार शर्म और दमन के गर्त में धकेल रखा है. मैंने गवर्नर को गोली मारी, अपने देशप्रेम से प्रेरित होकर. मेरी किसी व्यक्ति से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है. लेकिन बंगाल के गवर्नर ऐसे सिस्टम का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने मेरे देश के तीस करोड़ रहवासियों को गुलाम बना रखा है.
Bina Das Glasgow Herald 700 बायीं तरफ स्टैनली जैकसन, दायीं तरफ ग्लासगो हेराल्ड नाम के अखबार में छपी ख़बर, जिसमें बीना के गोली चलाने की बात कही गई. (तस्वीर साभार: thebetterindia)

बीना को अपराधी घोषित किया गया. नौ साल की सज़ा सुनाई गई. 1939 में वो बाहर निकलीं. महात्मा गांधी के 'भारत छोड़ो' आन्दोलन में  हिस्सा लिया. 1942 में दोबारा जेल में डाल दी गईं. वहां पर भी जेल में मौजूद कैदियों के हक़ के लिए भूख हड़ताल पर बैठ जाया करती थीं. 1945 में जेल से छूटीं, तो बंगाल की विधानसभा की सदस्य बनीं.
1947 से 1951 तक पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्य रहीं. 1947 में ही अपने साथी जतीशचन्द्र भौमिक से शादी की. वे भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले चुके थे. दोनों ने सरकार से कोई भी सहायता लेने से इनकार कर दिया. बीना कलकत्ता के ही एक कॉरपोरेशन स्कूल में पढ़ाने लग गईं. अपने पति की मौत के बाद उन्होंने कलकत्ता छोड़ दिया. ऋषिकेश चली गईं. वहां पर भी पढ़ाकर ही काम चलाती रहीं, तब भी सरकार से कोई मदद नहीं ली.
महीनेभर तक कोई पहचान न पाया था लाश
ऋषिकेश में अनाम ज़िन्दगी जी रही बीना कब गुजरीं, किसी को ठीक-ठीक पता नहीं. पता है, तो बस ये कि साल था 1986. सड़क किनारे कुछ लोगों को एक लाश दिखाई दी थी. सड़-गल चुकी. उन्होंने पुलिस को ख़बर की. पुलिस ने महीनेभर तक पड़ताल की, तब जाकर शिनाख्त हो पाई. ये लाश 'अग्नि कन्या' बीना दास की थी.
Bina Memoir बीना के जीवन को लेकर एक किताब भी आई है. इसका नाम बीना दास -अ मेमोयर है.

आधिकारिक तौर पर बीना की मौत की तारीख 26 दिसम्बर लिख दी गई. उसी दिन उनकी लाश पाई गई थी. लेकिन बीना के गुजरने का दिन आज भी कोई नहीं जानता.


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