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बिलकिस बानो केसः सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, 'किस आधार पर छोड़े गए दोषी?'

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात और केंद्र सरकार को नोटिस भेजा.

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Bilkis Bano Supreme Court Verdict
दोषियों की रिहाई पर बिलकिस बानो ने कहा था, 'मुझे मेरी ज़िंदगी वापस करो!'
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25 अगस्त 2022 (Updated: 25 अगस्त 2022, 13:29 IST)
Updated: 25 अगस्त 2022 13:29 IST
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बिलकिस बानो गैंगरेप केस (Bilkis Bano Gangrape Case) के दोषियों की रिहाई के खिलाफ लगी याचिका पर 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि दोषियों को किस आधार पर छोड़ा गया? कोर्ट ने गुजरात और केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है और जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के सभी 11 दोषियों को भी पक्षकार बनने का निर्देश दिया है.

15 अगस्त को गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले में सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. 23 अगस्त को CPI(M) पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी, जिस पर 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने केस के फ़ैक्ट्स बेंच के सामने रखे. कहा,

"14 लोगों की हत्या हुई. एक प्रेग्नेंट महिला का बलात्कार किया गया. और, एक 3 साल की बच्ची को पटक-पटक कर मार दिया गया."

इसके जवाब में जस्टिस रस्तोगी ने कहा,

“जो भी अपराध किया गया, उसकी सज़ा दी गई. सवाल ये है कि क्या उनकी रिहाई जस्टिफ़ाइड है? हम केवल इस बात के लिए कंसर्न्ड हैं कि उनकी रिहाई क़ानून के अंतर्गत हुई या नहीं?”

इसके बाद जस्टिस रस्तोगी ने एक बहुत विवादास्पद बयान दे दिया. कहा,

"महज़ इसलिए कि उनका कृत्य बहुत भयानक था, क्या इससे उनकी रिहाई ग़लत हो जाती है?"

इस एक बयान पर ट्विटर पर ख़ूब विवाद हो रहा है. राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी समेत कई विमेन राइट्स ऐक्टिविस्ट और पत्रकारों ने जज के इस बयान को असंवेदनशील बताया है. अब आप ये जान लीजिए कि -

क्या है Bilkis Bano Gangrape मामला?

27 फरवरी 2002. गुजरात के गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस को आग के हवाले कर दिया गया. ट्रेन में सवार 59 कारसेवक झुलस कर मर गए. ये आग यहां रुकी नहीं. दंगे भड़क गए. पूरा गुजरात जलने लगा. इस घटना के ठीक 4 दिन बाद, 3 मार्च, 2002 को दाहोद ज़िले से बिलकिस बानो का परिवार महफ़ूज़ जगह की तलाश में निकला. एक ट्रक में. जैसे ही ट्रक राधिकापुर पहुंचा, दंगाइयों ने उसे घेर लिया. दंगाइयों ने ट्रक में सवार 14 लोगों को मार डाला. बिलकिस बानो तब 19 साल की थीं. पांच महीने की गर्भवती और गोद में तीन साल की बेटी. गोधरा के बदला और ‘धर्मरक्षा’ के नाम पर जुटी भीड़ ने बिलकिस के सामने ही उनकी तीन साल की बेटी को पटक-पटककर मार डाला.

इसके बाद 'धर्मरक्षकों' ने बिलकिस बानो का गैंगरेप किया. 11 लोगों ने. एक के बाद एक. बेहोश हो गईं, तो उन्हें मरा समझकर वहीं छोड़ दिया और फ़रार हो गए. जब बिलकिस को होश आया तो वो लाशों के बीच पड़ी थीं. उस दिन को याद करते हुए बिलकिस बताती हैं, 

“मैं एकदम नंगी थी. मेरे चारों तरफ मेरे परिवार के लोगों की लाशें बिखरी पड़ी थीं. पहले तो मैं डर गई. मैंने चारों तरफ देखा. मैं कोई कपड़ा खोज रही थी ताकि कुछ पहन सकूं. आखिर में मुझे अपना पेटीकोट मिल गया. मैंने उसी से अपना बदन ढका और पास के पहाड़ों में जाकर छुप गई.”

जनवरी 2008 में मुंबई की एक CBI अदालत ने बिलकिस बानो के गैंगरेप के आरोप में 11 आरोपियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस सज़ा को बरक़रार रखा. 15 साल से ज़्यादा समय तक जेल में रहने के बाद दोषियों में से एक ने रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ ने गुजरात सरकार को रिहाई की याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया.

गुजरात सरकार ने विचार किया. और 15 अगस्त को 2002 के सभी 11 दोषियों को अपनी माफ़ी नीति के तहत रिहा कर दिया. वो रिहा हुए और जेल के सामने उन्हें मिठाइयां खिलाई गईं, माला पहनाई गई. उनकी रिहाई ने देश भर में ज़बरदस्त बहस छिड़ गई. कार्यकर्ताओं और इतिहासकारों सहित 6,000 से ज़्यादा लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से मामले में दोषियों की रिहाई को रद्द करने की अपील की.

गुजरात सरकार के फ़ैसले पर बिलकिस बानो ने क्या कहा था?

17 अगस्त को बिलकिस बानो ने सरकार से अपना फैसला वापस लेने की अपील की थी. उनकी तरफ से जारी किए गए बयान में लिखा था,

"दो दिन पहले, 15 अगस्त के दिन जब मैंने सुना कि मेरे परिवार और मेरे जीवन को बर्बाद करने वाले, मुझसे मेरी तीन साल की बेटी को छीनने वाले 11 लोग जेल से रिहा हो गए तब मैं 20 साल पहले हुई घटना के सदमे से मैं एक बार फिर गुजरी हूं. मैं अब भी सदमे में हूं. मेरे पास शब्द नहीं हैं.

आज मैं केवल पूछ सकती हूं कि किसी औरत के इंसाफ की लड़ाई ऐसे कैसे ख़त्म हो सकती है? मैंने अपने देश की सबसे ऊंची अदालतों पर भरोसा किया. मैंने सिस्टम पर भरोसा किया और मैं धीरे-धीरे अपने ट्रॉमा के साथ जीना सीख रही थी. इन दोषियों की रिहाई ने मुझसे मेरी शांति छीन ली है और न्याय पर मेरे भरोसे को हिला दिया है. मेरा दुख और मेरा डगमगाता विश्वास केवल मेरे लिए नहीं है, पर हर उस महिला के लिए है जो इंसाफ के लिए अदालतों के चक्कर लगा रही है.

इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण फैसला लेने से पहले किसी ने मेरी सुरक्षा की सुध नहीं ली."

बयान में बिलकिस ने गुजरात सरकार से अपील की थी कि वो इस फैसले को पलट दें. उन्होंने कहा था कि उन्ह बेख़ौफ़ और शांति के साथ जीने का अधिकार वापस चाहिए.

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