बात उस सूबे की, जिसने देश को पहला दलित उप प्रधानमंत्री दिया, पहला मुख्यमंत्री दिया, लेकिन दलितों की राजनीतिक चेतना और सामाजिक अवस्थिति- दोनों की आज भी कमोबेश वही हालत है, जो आज से एक शताब्दी पहले हुआ करती थी. बिहार में अनुसूचित जाति (जिसे आम बोलचाल की भाषा में दलित वर्ग कहा जाता है) की जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत है. किसी राज्य की 16 प्रतिशत आबादी यदि दो जून की रोटी की जद्दोजहद में अपनी पूरी जिंदगी खपा दे, तो उस राज्य का मानव विकास के तमाम मानकों में निचले पायदान पर दिखाई देना स्वाभाविक है. चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य या प्रति व्यक्ति आय का मामला हो.