'डिजिटल अरेस्ट' कर देश के बड़े उद्योगपति से 7 करोड़ की लूट
सारा काम इतने प्रोफेशनल और सुनियोजित तरीके से किया गया कि जब तक कॉल चालू रही, ओसवाल को भनक तक नहीं लग सकी कि ये सब फर्जीवाड़ा है, सामने से कोई CBI अधिकारी नहीं, साइबर फ्रॉड्स बात कर रहे हैं.
वर्धमान ग्रुप के चेयरपर्सन हैं - एसपी ओसवाल. उम्र 82 साल. इनके पास बीते दिनों एक फोन कॉल आया. रिसीव किया तो सामने से आवाज आई- “मैं CBI से बोल रहा हूं. एक पुराने केस में आपके नाम पर अरेस्ट वारंट निकला है. आपको तत्काल ‘डिजिटली अरेस्ट’ किया जाता है.” इस एक कॉल से उनके साथ 7 करोड़ रुपये का फ्रॉड हो गया.
खुद को 'CBI अधिकारी' बता रहे लोगों ने ओसवाल को एक फर्जी अरेस्ट वारंट की फोटो भी भेज दी. कहा कि अब चूंकि आप "डिजिटल अरेस्ट" हैं तो कहीं आ-जा नहीं सकते. इसके बाद उन लोगों ने ओसवाल के डिवाइसेज के एक्सेस ले लिए और उनके अलग-अलग खातों से करीब 7 करोड़ रुपये अपने खातों में ट्रांसफर करा लिए.
ये सारा काम इतने प्रोफेशनल और सुनियोजित तरीके से किया गया कि जब तक कॉल चालू रही, ओसवाल को भनक तक नहीं लग सकी कि ये सब फर्जीवाड़ा है, सामने से कोई CBI अधिकारी नहीं, साइबर फ्रॉड्स बात कर रहे हैं. फोन कटा तो सब समझ आया.
नरेश गोयल से जोड़ा मामलाअब NDTV से बातचीत में एसपी ओसवाल ने इस फ्रॉड की पूरी कहानी बताई है. ओसवाल के मुताबिक, उन्हें कॉल कर कहा गया कि आपका फोन दो घंटे में डिस्कनेक्ट कर दिया जाएगा. फ्रॉड ने 9 नंबर दबाने को कहा तो उन्होंने दबा दिया. वे आगे बताते हैं,
"कॉल करने वालों ने कहा कि वे सीबीआई ऑफिस से बोल रहे हैं. उन्होंने कहा कि आपके नाम पर कैनरा बैंक का एक अकाउंट है. और इसमें वित्तीय अनियमितता हुई है. ये नरेश गोयल से जुड़ा हुआ मामला है. मैंने उन्हें बताया कि मेरा कोई अकाउंट नहीं है और मैं किसी नरेश गोयल को नहीं जानता. उन्होंने कहा कि ये अकाउंट आपके नाम पर है तो आप भी संदिग्ध हैं."
ओसवाल आगे बताते हैं कि फ्रॉड करने वालों ने उन्हें कहा कि आधार कार्ड से आपका नाम लिया है. इससे उन्हें लगा कि वे जेट एयरवेज से सफर करते थे तो हो सकता है कि कभी जानकारी दी हो और उनके पास ये रिकॉर्ड में हो. वे आगे कहते हैं,
"इस पर उन्होंने कहा कि हम समझ सकते हैं कि डॉक्यूमेंट का गलत इस्तेमाल हुआ होगा, लेकिन हमें इसकी जांच करनी होगी. आप हमारी डिजिटल कस्टडी में हैं, हम आपको बचाने की कोशिश करेंगे, आपको हमारा सहयोग करना पड़ेगा. इस बीच उनका एक सीनियर आया - राहुल गुप्ता, जो खुद को मुख्य जांच अधिकारी बता रहा था. उन्होंने कहा कि आप मुंबई नहीं आ सकते तो हम आपकी जांच प्राथमिकता के आधार पर करेंगे. इसके बाद उन्होंने मेरा बयान लेना शुरू कर दिया."
एसपी ओसवाल के मुताबिक, फ्रॉड करने वालों ने उनसे पूरी जानकारी ली. ओसवाल ने उन्हें पुलिस अधिकारी समझकर बिजनेस, प्रॉपर्टी सबके बारे में बताया. ये भी बताया कि बैंक अकाउंट में 10-11 करोड़ हैं. कॉल करने वालों ने उनसे कह दिया कि इस मामले को वे किसी के साथ शेयर ना करें, क्योंकि ये नेशनल सीक्रेट्स एक्ट के तहत है. अगर ऐसा करते हैं तो उन्हें और बता करने वाले को तीन से पांच साल की जेल हो सकती है.
'CJI की वर्चुअल बेंच लग गई'इसके बाद उन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के लिए 'आवेदन' तैयार कर दिया. ओसवाल से कहा गया कि चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ आपकी याचिका पर 11 बजकर 5 मिनट पर सुनवाई करेंगे. ओसवाल बताते हैं, "उन्होंने मुझे स्काइप पर लिया था. पीछे सीबीआई का लोगो लगा था. पूरा सीबीआई का ऑफिस लग रहा था. वे 24 घंटे मुझे मॉनिटर कर रहे थे. मैं रूम से बाहर भी निकलता तो फोन लेकर निकल रहा था."
अगले दिन फर्जी कोर्ट बनाकर वीडियो कॉल पर ही सुनवाई भी हुई. ओसवाल के मुताबिक, उन्हें जज तो नजर नहीं आए लेकिन राहुल गुप्ता उनके केस के बारे में सबकुछ बता रहा था. उन्होंने NDTV को आगे बताया,
"राहुल गुप्ता ने बताया कि ये लुधियाना के हैं और हमारी कस्टडी में हैं. सारी जानकारी वहां बता दी. पीएमएलए की धाराओं का जिक्र किया. इसके बाद 'जज' ने आदेश दिया कि आप इनकी प्रॉपर्टी ट्रांसफर करवा लीजिए, अगर ऐसा नहीं करते हैं तो गिरफ्तार कर लीजिए. थोड़ी देर बाद मुझे आदेश की कॉपी भी आ गई. उन्हें अलग-अलग अकाउंट में 7 करोड़ रुपये जमा करने को कहा गया."
रिपोर्ट के मुताबिक, एक फर्जी अरेस्ट वारंट उनके नाम पर जारी किया गया. इस वारंट पर ED और मुंबई पुलिस के स्टाम्प लगे थे. ओसवाल ने अपने मैनेजर को बुलाकर पैसे ट्रांसफर करवा दिए. मैनेजर को भी नहीं बताया कि पैसे किसको ट्रांसफर करने हैं.
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बाद में जब पता चला तो एसपी ओसवाल ने सायबर सेल में केस दर्ज करवाया. पंजाब पुलिस ने इस मामले में 2 आरोपियों - अतनु चौधरी और आनंद कुमार चौधरी - को गिरफ्तार कर लिया है और उनके पास से 5 करोड़ 25 लाख रुपये की रिकवरी भी कर ली गई है. इसके अलावा, सात और आरोपियों को ट्रेस किया गया है.
क्या है डिजिटल गिरफ्तारी? एक नई तरह की धोखाधड़ी, जिसमें पीड़ित से वीडियो कॉल पर संपर्क किया जाता है, उन्हें धमकाकर या लालच देकर घंटों या दिनों तक कैमरे के सामने रखा जाता है. आमतौर पर रिटायर्ड या काम कर रहे पेशेवरों को निशाना बनाया जाता है, क्योंकि उनके बचत खातों में अच्छी-खासी रकम होती है और वे तकनीकी रूप से उतने अपडेटेड नहीं होते हैं. अलग-अलग पुलिस ने कई बार एडवाइजरी जारी कर बताया है कि "डिजिटल अरेस्ट" या "वर्चुअल अरेस्ट" जैसी कोई चीज नहीं होती है.
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