'पता नहीं कितना वक्त लगेगा..', मशीन फंसीं, लेकिन टनल एक्सपर्ट की बात सुनकर राहत मिलेगी!
उत्तरकाशी स्थित सिल्क्यारा सुरंग (Uttarkashi tunnel collapse) में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए हैदराबाद से प्लाजमा कटर मंगाई गई है. जिसने काम करना शुरु कर दिया है.

उत्तराखंड (Uttarakhand) के उत्तरकाशी स्थित सिल्क्यारा सुरंग (Uttarkashi tunnel collapse) में फंसे मजदूरों को निकालने का काम फिर से शुरु हो गया है. इस सुरंग में कुल 41 मजदूर पिछले 15 दिनों से फंसे हुए हैं. ड्रिलिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऑगर मशीन से काम नहीं बन पाया था. 24 नवंबर को लोकेशन से महज 10 मीटर पहले अमेरिकी ऑगर मशीन की ब्लेड्स टूट गई थीं. इस वजह से रेस्क्यू रोकना पड़ा था. जिसके बाद हैदराबाद से प्लाज़मा कटर मशीन मंगाई गई, जिसने अब काम करना शुरु कर दिया है.
अंतर्राष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स के मुताबिक प्लाज़मा कटर आने के बाद से ऑगर मशीन को बाहर निकालने का काम काफी तेजी से हो रहा है. उन्होंने कहा,
''जैसा कि आप जानते हैं, ऑगर मशीन खराब हो गई है, और हमें ऑगर को पाइप से बाहर निकालने में कई तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, आज सुबह ये काम बहुत तेजी से हो रहा है, क्योंकि प्लाज़्मा कटर आ गए हैं. कई बहादुर लोग प्लाज़्मा कटर के साथ एक पाइप में अंदर जा रहे हैं और ऑगर पाइप को काट रहे हैं. आज सुबह काम काफी तेजी से हो रहा है.''
वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हैदराबाद से लाई गई प्लाज़्मा मशीन ने सुबह से काम करना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा,
‘’ऑगर मशीन की तेजी से कटाई चल रही है. 14 मीटर और कटना बाकी है. ऑगर मशीन को काटकर बाहर लाना है. ऐसा लगता है कि यह जल्द ही पूरा हो जाएगा. कुछ ही घंटों में. उसके बाद मैनुअल ड्रिलिंग शुरू हो जाएगी.''
वहीं इस रेस्क्यू ऑपरेशन में अब इंडियन आर्मी भी जुट गई है. भारतीय सेना की ‘कोर ऑफ इंजीनियर्स’ के समूह ‘मद्रास सैपर्स’ की एक यूनिट बचाव कार्यों में सहायता के लिए 25 नवंबर को घटनास्थल पहुंची है. साथ ही वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए पहाड़ी की चोटी पर सुरंग के ऊपर एक ड्रिल मशीन भेजी गई है.
लग सकता है काफी समयइससे पहले, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मेंबर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. जिसमें उन्होंने कहा कि मैनुअल ड्रिलिंग में समय लग सकता है. उन्होंने कहा,
‘’बचाव दल ने फंसे हुए श्रमिकों तक पहुंचने के लिए मलबे के अंतिम 10 मीटर में मैनुअल रूप से ड्रिलिंग करने की योजना बनाई है, जो एक "खतरनाक" प्रक्रिया है, जिसमें लंबा समय लगने की संभावना है. ‘’
इससे पहले उन्होंने कहा था,
क्या है मैनुअल ड्रिलिंग?‘’ये ऑपरेशन एक युद्ध की तरह है. इस तरह के ऑपरेशनों को टाइमलाइन नहीं दी जानी चाहिए. इससे टीम पर भी प्रेशर बनता है. युद्ध में हम नहीं जानते कि दुश्मन कैसे प्रतिक्रिया देगा. यहां हिमालय का भूविज्ञान हमारा दुश्मन है. सुरंग किस एंगल से गिरी है, कोई नहीं जानता. पहले मीडिया खुद ही अनुमान लगा रहा था कि कितने दिन लगेंगे, हमने कभी नहीं कहा कि रेस्क्यू ऑपरेशन में कितने दिन लगेंगे. ‘’
इंडिया टुडे से जुड़े आशुतोष मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक़, 24 नवंबर की शाम को ड्रिलिंग के दौरान सरियों का जाल सामने आ गया. ऑगर मशीन के ब्लेड सरियों के जाल में फंस गए थे. इसलिए अब मैनुअल ड्रिलिंग करने का फ़ैसला किया गया है.मैनुअल ड्रिलिंग माने जो काम मशीन से हो रहा था वो अब इंसान करेंगे. मलबा हटाने का काम पूरी तरह इंसानो पर निर्भर होगा. ड्रिलर्स छोटे-छोटे औजारों या मशीनों के ज़रिए खुदाई का काम करते हैं.
क्यों हो रही है देरी?बीते 12 नवंबर को उत्तराखंड की निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था. तब से ही वहां बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के 41 मजदूर फंसे हुए हैं. दो हफ़्ते से लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने ANI को बताया कि ऑगर मशीन से ड्रिलिंग करते समय अगर हर दो से तीन फीट पर कोई रुकावट आती है, तो उसे हटाना पड़ता है. और जब भी कोई नई रुकावट आती है, तो मशीन को पाइपलाइन से 50 मीटर पीछे खींचना पड़ता है. इसमें करीब 5 से 7 घंटे का समय लगता है. इस वजह से बचाव कार्य में इतना समय लग रहा है. हालांकि, अफ़सरों ने ये नहीं बताया कि अभी और कितनी समय लगेगा. उन्होंने उम्मीद जताई कि मैन्युअल ड्रिलिंग शुरू होने के बाद अच्छे नतीजे आ सकते हैं.
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इस बीच, पारसन ओवरसीज़ प्राइवेट लिमिटेड दिल्ली की टीम ने सुरंग की जांच करने के लिए ग्राउंड-पेनिट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक का भी प्रयोग किया. ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार को जीपीआर, जियो-राडार, सब-सर्फेस इंटरफेस रडार या जियो-प्रोबिंग रडार भी कहते हैं. इसका इस्तेमाल ज़मीन के नीचे दबी चीज़ों की लोकेशन और गहराई का पता लगाने के लिए किया जाता है.