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'इंडियन गद्दार' की वजह से उड़ी में हुआ आतंकी हमला!

और इसकी वजह इतनी तगड़ी है कि आप शक किए बिना नहीं रह पाएंगे.

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उड़ी में आतंकी हमले के बाद की तस्वीर. source PTI
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पंडित असगर
21 सितंबर 2016 (Updated: 21 सितंबर 2016, 06:19 AM IST) कॉमेंट्स
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जम्मू कश्मीर के उड़ी आर्मी बेस पर आतंकी हमला हुआ. हमारे 18 जवान शहीद हो गए. दिल दुखाने वाली इस खबर के बाद एक सवाल जो मन में रह जाता है वो ये कि कैसे हमारे आर्मी कैंप के भीतर घुस आते हैं और इतने बड़ा हमला कर जाते हैं. इस सवाल का जवाब पाने के लिए अब जांच एजेंसियां जुट गई हैं. एजेंसियों को शक  है कि इस आतंकी हमले के पीछे कहीं कोई घर का भेदिया तो नहीं था. क्योंकि जो आतंकी आए थे, उन्हें ये तक पता था कि कैंप के अंदर ब्रिगेड कमांडर का दफ्तर और घर कहां पर है. जम्मू-कश्मीर के उड़ी में हुए टेरर अटैक की इंडियन आर्मी और दूसरी एजेंसियां जांच कर रही हैं. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आंतकियों को किसी 'अंदरूनी भेदिए' से मदद मिलने की बात की जांच की जा रही है. आर्मी को शक है कि 12 इन्फैंट्री ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर हुए हमले के लिए आतंकियों की किसी ऐसे आदमी ने मदद की हो, जिसे कैंप के बारे में पूरी जानकारी रही हो.

आतंकियों को मिला जंगल का फायदा

आर्मी आतंकियों के उस रास्ते की भी पड़ताल कर रही है, जहां से आतंकियों ने एंट्री की थी. जानकारी के मुताबिक आर्मी, आतंकियों के एलओसी पार करके सुखदर से होते हुए उड़ी पहुंचने के रास्ते की जांच कर रही है. करीब 500 की आबादी वाला सुखदर गांव ब्रिगेड हेडक्वार्टर से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर है. गांव और ब्रिगेड हेडक्वार्टर के बीच जंगल है, जिसका इस्तेमाल आंतकियों ने किया होगा.
जिस तरह से आतंकियों ने हमला किया उससे तो ऐसा लगता है कि उन्हें कोई ऐसा आदमी मदद पहुंचा रहा था, जो इस इलाके से ही नहीं बल्कि आर्मी की टुकड़ियों की आवाजाही से भी पूरी तरह वाकिफ था. जानकारी के मुताबिक, आतंकियों ने पहले एलओसी पर लगी बाड़ को पार किया और उसके बाद ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर लगी बाड़ को, फिर आर्मी और बीएसएफ के पिकेट और चेकपोस्ट को.
बताते हैं कि ब्रिगेड हेडक्वार्टर के अंदर घुसना आसान नहीं है. हेडक्वार्टर के चारों तरफ एक किले की तरह कड़ी सुरक्षा है. हेडक्वार्टर से जो पूरी तरह वाकिफ है, वही आदमी किसी की नजर में आए बिना अंदर घुस सकता है. इसी के चलते अंदरूनी भेदिए की जांच की जा रही है. इस जांच के दायरे में कुलियों और टेरिटोरियल आर्मी के जवानों को भी शामिल किया गया है. एजाज़ अहमद की ब्रिगेड हेडक्वार्टर के पास अपनी दुकान है. वो कहते हैं, 'बिना किसी की मदद के ऐसा अटैक संभव नहीं. ब्रिगेड हेडक्वार्टर के इतने करीब रहने के बावजूद हमें हेडक्वार्टर के बारे में कुछ नहीं पता है, तो फिर एलओसी के पार से आने वाले ऐसा अटैक कैसे कर सकते हैं? उन्हें इस जगह के बारे में पूरी जानकारी रही होगी.'

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