The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • UP : Jail authorities refuse to follow high court for release of a person over missing middle name

क़ैदी को रिहा करने के हाईकोर्ट के आदेश को UP पुलिस ने आठ महीने तक मानने से इनकार कर दिया

फिर तो जमकर क्लास लगी.

Advertisement
Img The Lallantop
सांकेतिक तस्वीर
pic
सिद्धांत मोहन
21 दिसंबर 2020 (Updated: 21 दिसंबर 2020, 01:43 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
यूपी का सिद्धार्थनगर. यहां की ज़िला जेल ने एक आदमी को ज़मानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया. वजह सिर्फ इतनी थी कि कोर्ट से आए ज़मानत के आदेश में व्यक्ति का मिडिल नेम ‘कुमार’ नहीं था. और ये रिहाई कितने वक्त तक रुकी रही? आठ महीने तक. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेल प्रशासन के इस आचरण की निंदा की है. 24 घंटे में रिहा करने का आदेश दिया. और आगे के लिए भी हिदायत दी.मामला क्या है? सिद्धार्थनगर जेल में बंद रहे विनोद कुमार बरुआर. ख़बरों की मानें तो विनोद को 2019 में ड्रग्स रखने और चोरी के सामान की ख़रीद फ़रोख़्त करने के लिए गिरफ़्तार किया गया था. उन्होंने ज़िला न्यायालय में ज़मानत की अर्ज़ी लगाई. 4 सितम्बर, 2019 को एडिशनल सेशंस जज ने उनकी ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज कर दी. विनोद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. 9 अप्रैल, 2020 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़मानत के आदेश दे दिए. लेकिन उसके बाद भी जेल से बाहर नहीं जाने दिया गया. क्योंकि ज़मानत के आदेश पर विनोद कुमार बरुआर न लिखकर, विनोद बरुआर लिखा हुआ था. कुमार ग़ायब. बस इसीलिए रिहाई नहीं हुई. अब कोर्ट ने जेल प्रशासन की क्लास लगा दी. कहा कि एक छोटी सी तकनीकी दिक़्क़त के लिए आपने हाईकोर्ट के ज़मानत के आदेश का मज़ाक़ बनाकर रख दिया. आवेदक के लिए पेश वक़ील द्वारा अर्ज़ी लगाई गयी कि ज़मानत अर्ज़ी में आवेदक का नाम विनोद बरुआर के बजाय विनोद कुमार बरुआर कर दिया जाए, क्योंकि विनोद को छोड़ा नहीं जा रहा है. अब न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. लाइव लॉ की मानें, तो कोर्ट ने जेल प्रशासन को फटकार लगाते हुए कहा,
“कोर्ट ये समझने में असफल है कि जब आवेदक का नाम ज़मानत को रिजेक्ट करने वाले आदेश में विनोद बरुआर है (मतलब कुमार नहीं लगा है) तो ज़मानत देने वाले आदेश में ‘कुमार’ क्यों जोड़ा जाना चाहिए?”
इसके आगे कोर्ट ने कहा,
“इन आठ महीनों के दौरान ज़मानत के आदेशों का पालन नहीं करने का एकमात्र कारण न्यायालय के आदेशों को पूरा करने में जेल प्रशासन का अड़ियल रवैया है. इस प्रक्रिया में, उसने एक नागरिक को उसकी स्वतंत्रता से बिना किसी उचित या वाजिब कारण के अप्रैल 2020 से आज तक वंचित रखा है.”
7 दिसम्बर, 2020 को हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया. कहा कि कोर्ट नाम में कोई परिवर्तन नहीं करेगी. और 24 घंटे के अंदर इसी पुराने नाम यानी विनोद बरुआर के साथ ही आवेदक को रहा किया जाए. 8 दिसम्बर को जेल अधीक्षक राकेश सिंह मौजूद हुए. और कहा कि आवेदक को 8 तारीख़ को जेल से रिहा कर दिया गया है. कोर्ट ने रिहाई में देरी को देखते हुए जेल प्रशासन से भविष्य में सावधान रहने की चेतावनी भी दी.

Advertisement