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उइगर मुस्लिम ने बताया, 'चीन में हमें ज़बरदस्ती सूअर का मांस खिलाया जाता था'

नसबंदी न करवाने पर उइगर मुस्लिमों के साथ क्या होता है?

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उइगर मुस्लिमों के समर्थन में प्रदर्शनरत भीड़ को रोकती चीन की पुलिस (बाएं). अब बात सामने आ रही है कि चीन की सरकार द्वारा उइगर समुदाय के लोगों को ज़बरदस्ती पोर्क खिलाया जाता है.
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सिद्धांत मोहन
4 दिसंबर 2020 (Updated: 4 दिसंबर 2020, 09:36 AM IST) कॉमेंट्स
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चीन का शिनजियांग प्रांत. यहां से आने वाले उइगर मुस्लिमों के बारे में कई सारी रिपोर्ट्स आती रहती हैं. अब यहां से दो साल पहले रेस्क्यू की गईं सायरागुल सौतबे ने अलजज़ीरा से बताया है कि उइगर मुस्लिमों को ज़बरदस्ती सूअर का मांस खिलाया जाता था. जानकारी के लिए बता दें कि सूअर का मांस इस्लाम में प्रतिबंधित है. सौतबे इस समय यूरोपीय देश स्वीडन में रहती हैं. दो बच्चों की मां हैं और पेशे से डॉक्टर हैं. हाल ही में उन्होंने वहां पर चीन सरकार द्वारा उइगर मुस्लिमों पर किए जा रहे अत्याचार के बारे में एक किताब लिखी है. सौतबे ने बताया है कि उइगर मुस्लिमों को सूअर का मांस खिलाने के लिए शुक्रवार का दिन चुना जाता था. शुक्रवार मुस्लिम समुदाय के लिए पवित्र दिन माना जाता है. सौतबे ने दावा किया है कि जो भी सूअर का मांस खाने से मना करता था, उसे बहुत कड़ी सज़ा दी जाती थी. सौतबे ने बताया कि चीन में उइगर मुस्लिमों को लेकर जो भी नीतियां थीं, वो उन्हें शर्म और अपराधबोध से भर देने वाली थीं. उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है. क्या है उइगर मुस्लिमों की कहानी? शिनजियांग चीन के उत्तर-पश्चिम में है. आठ देशों की सीमाओं से सटा प्रांत. दुनिया में उइगरों की सबसे बड़ी आबादी इसी इलाक़े में रहती है. लेकिन चीन में वो अल्पसंख्यक हैं. अधिकतर उइगर इस्लाम धर्म को मानते हैं. सदियों पुरानी कहानी है. उस वक़्त उइगर कबीलाई ज़िंदगी जीते थे. जड़ें तुर्की में थीं. रिहाइश बदलती रहती थी. फिर उनके जीवन में ठहराव आया. उन्होंने अपना बसेरा मंगोलिया में बसाया. वहां उन पर हमला हुआ. उइगर भागकर चीन के पश्चिम में आ गए. एक खाली इलाक़े पर तंबू लगा दिया. ये हिस्सा बाकी चीन से कटा रहता था. उस वक्त इसे ‘शियु’ के नाम से जाना जाता था. 18वीं सदी में क़िंग वंश ने इस हिस्से को चीन में मिला दिया. नया नाम रखा ‘शिनजियांग’. अर्थ होता है, नई सीमा. जब चीन में क्यूमितांग और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच सिविल वॉर चल रहा था, तब शिनजियांग ने ख़ुद को आज़ाद घोषित कर दिया था. 1949 में माओ की जीत हुई. शिनजियांग को वापस चीन में मिला लिया गया. तिब्बत की तरह. माओ की सांस्कृतिक क्रांति यहां के बाशिंदों के अस्तित्व पर खतरे की तलवार बनकर आई. मस्जिदों के स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी के दफ़्तर बनाए गए. धार्मिक किताबों को जला दिया गया. चीन के बहुसंख्यक हान समुदाय के लोगों को बसाया गया. विरोध की गुंज़ाइश खत्म कर दी गई. उइगरों के लिए डिटेंशन कैंप बनाए गए, जहां उनकी पहचान बदलने की कोशिश चल रही है. इन कैंपों में लाखों उइगर मुस्लिम बंद हैं. इनकी दर्दनाक कहानियां कभी-कभार बाहर आती रहती हैं. इंटरनेशनल मीडिया में लगातार रिपोर्ट्स छपती हैं. सताए हुए उइगरों के अनुभव साझा होते हैं. मगर चीन कहने में यकीन रखता है, सुनने में नहीं. उसके कानों को हवा तक नहीं लगती. पूरे चीन में नसबंदी घटी पर शिनजियांग में बढ़ गयी एक जर्मन एंथ्रोपॉलोजिस्ट हैं. एड्रियन ज़ेंज़. ‘विक्टिम्स ऑफ़ कम्युनिज्म मेमोरियल फ़ाउंडेशन’ में सीनियर फ़ेलो. शिनजियांग और तिब्बत पर रिसर्च करते हैं. जुलाई के महीने में उन्होंने चीन के आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देकर कुछ सवाल उठाए थे. इन दस्तावेजों में क्या था? इसमें एक आंकड़ा था, जिसके मुताबिक, दो साल के भीतर शिनजियांग में नसबंदी कराने वालों की संख्या पांच गुना तक बढ़ गई. 2016 में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 50 से भी कम लोग नसबंदी कराते थे, जबकि 2018 में ये आंकड़ा 250 तक पहुंच गया. जेंज़ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ‘यूनाइटेड नेशंस’ की परिभाषा के अनुसार ये ‘जेनोसाइड’ का मामला है. हिंदी में इसका मतलब होता है ‘नरसंहार’. इसका शाब्दिक अर्थ है, ‘किसी खास नस्ल को मिटाने की कोशिश’. ये टर्म पहली बार 1944 में प्रचलन में आया था. पॉलैंड के वकील राफ़ेल लेमकिन की किताब ‘Axis Rule in Occupied Europe’ में. 1946 में यूनाइटेड नेशंस ने ‘नरसंहार’ को अपराध माना. दो साल बाद ‘जेनोसाइड कन्वेंशन’ अस्तित्व में आ गया. चीन ने इन आरोपों को नकार दिया. कहा कि उइगर मुस्लिमों की आबादी लगातार बढ़ रही है. लेकिन आंकड़े कह रहे थे कि चीन में नसबंदी की दर घट रही थी, जबकि शिनजियांग में बढ़ रही थी. नसबंदी के लिए महिलाओं को डराया जा रहा था. धमकी भरे संदेश किए जा रहे थे. आदेश न मानने वालों को धमकाया जाता है. जुर्माना लगा दिया जाता है. घरों में लोग घुस आते हैं. यौन शोषण और डिटेंशन कैम्प में डालने तक की ख़बरें आती हैं. चीन का क्या कहना है? चीन का इन आरोपों से नकार है. उसके अनुसार. ये आतंकवाद और चरमपंथ को ख़त्म करने के लिए उठाए गए क़दम हैं. चीन का इरादा है, उइगरों की ‘इस्लामिक’ पहचान खत्म कर देना. रोज़े पर पाबंदी. दाढ़ी बढ़ाने पर बैन. कुरान नहीं सीख सकते. मस्जिद नहीं जा सकते. बच्चों के इस्लामिक नाम नहीं रख सकते. धार्मिक तौर-तरीके से शादी नहीं कर सकते. उन्हें वो सब करने के लिए मजबूर किया जाता रहा है, जो उनके धार्मिक मान्यताओं से मेल नहीं खाता. 2013 में ऐमनेस्टी इंटरनेशन ने अपनी रिपोर्ट में उइगर मुस्लिमों की सांस्कृतिक पहचान दबाए जाने की बात कही थी. चीन आतंकवाद रोकने के नाम पर इन कदमों को सही ठहराता है. चीन कहता है कि डिटेंशन कैंप में उइगर मुस्लिमों को नई शिक्षा दी जाती है और उन्हें चीनी संस्कृति में ढालने की कोशिश की जाती है. इसी मसले पर चीन और अमेरिका में ठनी रहती है. 15 सितंबर, 2020 को ट्रंप प्रशासन ने शिनजियांग के कुछ हिस्सों में बनने वाले प्रोडक्ट्स की अमेरिका में एंट्री पर बैन लगा दिया है. अमेरिका की पांच बड़ी कंपनियों ने कहा है कि वो मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सप्लाई कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट नहीं देगी.

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