ट्विंकल जी, नसीरुद्दीन शाह ने आपके बाप के बारे में कुछ गलत नहीं कहा
नसीर ने कहां गलत कहा कि राजेश खन्ना कमजोर और सीमित एक्टर थे? कोई मर गया है तो उसके काम को आंका नहीं जाएगा क्या ट्विंकल?
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नसीरुद्दीन शाह. राजेश खन्ना.
इसके बाद करण जौहर भी इस निंदा में कूद पड़े. उन्होंने ट्वीट किया, "मैं तुमसे सहमत हूं ट्विंकल. वरिष्ठता को पूरा सम्मान लेकिन यह टिप्प्णी कटु थी और (फिल्म) समुदाय के सदस्य की ये पहचान नहीं."Sir if u can't respect the living ,respect the dead-mediocrity is attacking a man who can't respond @NaseerudinShah https://t.co/4EdyWmwiNj
— Twinkle Khanna (@mrsfunnybones) July 23, 2016
I agree with you @mrsfunnybones...due respect to seniority but this was in exceptionally bad taste and not becoming of a fraternity member.. — Karan Johar (@karanjohar) July 23, 2016इसके बाद रविवार शाम एक अख़बार के मुताबिक नसीर ने प्रतिक्रिया में कहा कि वे उन सबसे माफी चाहते हैं जिन्होंने इस बात को निजी तौर पर लिया लेकिन उनका इरादा राजेश पर हमला करने का नहीं था और वे किसी इंसान के बारे में नहीं बल्कि एक परिदृश्य की बात कर रहे थे. लेकिन फिर खबर बनी कि 'शाह ने माफी मांगी लेकिन ट्विंकल नहीं छोड़ने वाली.' ट्विंकल ने ट्वीट किया, "मिस्टर शाह की हकीकत को पूरा सम्मान है पर मेरी हकीकत यह है कि वो (राजेश) ऐसे आदमी थे जिन्होंने सिनेमा से प्यार किया. जिन्होंने आनंद, अमर प्रेम, कटी पतंग जैसी फिल्में कीं. शुक्रिया दोस्तों आप सबके प्यार के लिए."
ये जो हो रहा है, दोगलेपन की इंतेहा है. ट्विंकल और करण अपने आप में बड़ी विडंबना हैं. ये बॉलीवुड उद्योग के उन लोगों में से है जो अपना मुंह खोलते हैं तो सोचते नहीं हैं कि किस को बेइज्जत कर रहे हैं. अपनी चुग़लियों, तानों, व्यंग्य को ये एंजॉय करते हैं.All due regard toMrShah's reality,mine=a man who loved cinema& did films likeAnand,AmarPrem,KatiPatang thank u folks for all the love
— Twinkle Khanna (@mrsfunnybones) July 24, 2016
film fraternity के जुमले का बहुत प्रयोग करने वाले ये वही करण जौहर हैं जिनसे ट्विंकल ने एक इवेंट में पूछा कि अगर "तुम मायावती (बसपा की नेता) बन जाओ तो सबसे पहले क्या करोगे?" इस पर करण ने कहा था, "शेव करूंगा". अब ये बोलना उन्हें शोभा देता था? इस सवाल से भी नस्लभेद, रंगभेद की बू आती है. कि मायावती काली हैं. बदसूरत हैं. कि गांवों-कस्बों के बालों वाले लोग छी हैं.ट्विंकल जो कभी अपनी टिप्पणियों में गंभीर नहीं रही हैं वे नसीर को ज्ञान दे रही हैं. इन्होंने ही मई में लिखा था, "श्री श्री रविशंकर का पैर और आधी दाढ़ी उनके मुंह में वो योग पोज़ करते हुए अटक गई जिसमें बाबा रामदेव एक्सपर्ट हैं". फिर जब आभास हुआ कि क्या बोल गईं तो माफी मांगी. वो भी तब जब ट्विटर पर लोगों ने ट्रेंड किया कि उनके पति अक्षय की हाउसफुल सीरीज की फिल्म न देखी जाए. ट्विंकल ने तब कहा कि ये कहां का न्याय है कि पति और उनके काम को इसमे घसीटा जाए. नसीर की आलोचना करते हुए ट्विंकल ने कहा कि जिंदा नहीं मरे हुए को तो छोड़ दो जो जवाब देने के लिए मौजूद नहीं है. उन्होंने राधे मां, रणबीर कपूर, कटरीना कैफ, मायावती और ऐसे करोड़ लोगों पर टिप्पणी की है जो तब उन्हें counter करने के लिए मौजूद नहीं थे. जैसे उनकी ये टिप्पणी पढ़ें, "सब हिंदु लड़के अपनी मां की पूजा क्यों करते हैं? क्योंकि उनका धर्म उनसे कहता है कि गाय की पूजा करें." उन्होंने अंग्रेजी में cow शब्द का प्रयोग किया जो कई पश्चिमी देशों में महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्द होता है, गाली होता है. यहां भी मां के लिए वही अपमानजनक ध्वनि आती है. लेकिन ट्विंकल ने ये कहा. उन्हें अपने पिता को कमजोर अभिनेता कहे जाने से दुख हुआ लेकिन करोड़ों की मांओं के बारे में वे कुछ भी कह सकती हैं? ये दोगलापन ही है जो दुख देता है.
उन्हें मिसेज फनीबोन्स कहा जाता है. इसी नाम से एक किताब भी लिख चुकी हैं. इस किताब में एक जगह उन्होंने अपने अकाउंटेंट की कमजोर अंग्रेजी की मजाक उड़ाई है जो बहुत हतोत्साहित करने वाली बात है. उन्होंने इसमें लिखा, “11 am: Sitting in front of my computer and drinking coffee, I spot an email from my accountant stating, ‘Dear Madam, My sister very dangerous. I want to saw her. Please give leave three days! Good day, Srinivasan.”ये विडंबना की हद है कि नसीर के लिए ट्विंकल ने mediocre शब्द का प्रयोग किया. मतलब औसत, सामान्य, ओछा. नसीर भारत ही नहीं दुनिया के सबसे गंभीर और सम्मानित अभिनेताओं में आते हैं. उन्होंने हमारे सिनेमा में जो योगदान दिया है उसकी तुलना में राजेश खन्ना नहीं टिकते. नसीर ने निर्देशकों, लेखकों, अभिनेता/अभिनेत्रियों, रंगकर्मियों की पीढ़ियों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजेश खन्ना की आनंद, बावर्ची बहुत ही उम्दा फिल्में थीं. उनकी अवतार, नमक हराम, कटी पतंग, अमर प्रेम में गंभीर मसले भी रखे गए थे. हाथी मेरे साथी मुझे और तब लाखों बच्चों-वयस्कों को सम्मोहित कर गई थी. उनकी कमर्शियल फिल्मों ने भी भारतीय दर्शकों को जोरदार आनंद दिया था. आज भी देती हैं. राजेश खन्ना बहुत अच्छे इंसान भी रहे होंगे. बहुत प्यारे पिता भी रहे होंगे. लेकिन एक एक्टर के तौर पर वे कैसे थे इस पर बात नहीं हो सकती क्योंकि वे जिंदा नहीं हैं, ये कहां का लॉजिक है?
तो फिर हम सिर्फ उस एक्टर और निर्देशक की ही आलोचना करें जो जिंदा है, जो गुजर गए उनकी सिर्फ तारीफ ही की जाए? ट्विंकल तो सुपर लॉजिक वाली बनती हैं, उन्होंने बड़ी ही सहूलियत से नसीर के लिए तय कर लिया कि उन्हें किस विषय़ पर, किस स्थिति में नहीं बोलना चाहिए था. और अपने लिए बड़ी सहूलियत से हर विषय़ आलोचना और one liners के लिए उन्होंने खोल रखा है. आखिर नसीर ने क्या गलत कहा? उन्होंने कहा था..ऐसे तो आप भारतीय सिनेमा के इतिहास की विवेचना ही नहीं कर सकते.
ये 70 का दशक था जब हिंदी फिल्मों में औसतपन ने प्रवेश किया. तब जब राजेश खन्ना नाम के एक एक्टर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े. उनकी सारी सफलता के बावजूद मुझे लगता है कि श्रीमान खन्ना बहुत ही सीमित एक्टर थे. बल्कि, वो बहुत ही कमजोर एक्टर थे. बौद्धिक रूप से वे उन सबसे सजग लोगों में से नहीं थे जिनसे मैं मिला हूं.फिल्मों की स्क्रिप्ट, अभिनय, संगीत, गीतों की गुणवत्ता बद्तर होती गई. रंगों का प्रवेश हो गया. आप एक हीरोइन को बैंगनी ड्रेस और हीरो को लाल शर्ट पहनाकर कश्मीर ले जाते और फिल्म बना सकते थे. आपको कहानी की जरूरत नहीं थी. ये चलन जारी रहा और निश्चित तौर पर मैं मानता हूं कि श्रीमान खन्ना का इसमें योगदान था क्योंकि वो उन दिनों फिल्मों के भगवान थे.नसीर ने नई पीढ़ी के एक्टर्स की भी आलोचना की. उसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "कहां हैं वे (नई पीढ़ी के एक्टर)? कृपया उनसे कहिए कि वे अपने हाथ खड़े करे और मैं उनसे पूछना चाहूंगा. वे दावा करते हैं कि सिनेमा से प्रेम करते हैं लेकिन वे क्या रचते क्या हैं? लोग जो चुटकी बजाकर कोई भी प्रोजेक्ट चुन लेते हैं वो असुरक्षित हैं. ऐसे लोग जो अगले दस साल तक आर्थिक रूप से सुरक्षित हैं वे मोटे तौर पर असुरक्षित होते हैं और वे लीक से हटकर काम करने की हिम्मत नहीं करेंगे." वे अमिताभ बच्चन की भी कड़ी आलोचना कर चुके हैं लेकिन बच्चन ने कभी खंडन नहीं किया. वे उन्हें भी औसत एक्टर कह चुके हैं. नसीर अपनी भी आलोचना करते हैं. और अपनी आलोचना का स्वागत भी करते हैं. दरअसल नसीर सिनेमा से जुड़े लोगों और फिल्मों की क्रूर आलोचना करते हैं ताकि इसका सम्मोहन टूटे और आम लोगों के जीवन में योगदान करने वाली फिल्मों-रचनाओं की ओर ध्यान जाए. उस पर बात की जाए. ऐसे अंदरूनी आलोचकों की हमें बहुत जरूरत है. इस आलोचना को यूं नहीं लिया जाना चाहिए कि वे संबंधित आदमी या रचनाकार को निजी जीवन में बुरा व्यक्ति कह रहे हैं. वे सिर्फ उनके काम को अपनी नजर से आंक रहे हैं, जिसके लिए वे पूरी तरह स्वतंत्र हैं. जैसे कि ट्विंकल औऱ करण जौहर जैसे लोग स्वतंत्र हैं.