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बायकॉट करना है तो इशरत का नहीं, इन लोगों का करो, वजह हम बताए देते हैं

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, उसमें एक केस इशरत का भी था. उन्हें गंदी औरत कहकर सताया जा रहा है.

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इशरत जहां से मोहल्ले के कई लोगों ने बात करना बंद कर दिया है.
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पंडित असगर
25 अगस्त 2017 (Updated: 25 अगस्त 2017, 11:42 AM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया. 6 महीने के लिए तुरंत तीन तलाक असंवैधानिक है. इस फैसले तक पहुंचने के लिए इशरत जहां ने काफी संघर्ष किया. अब उन्हें कोर्ट से राहत मिल गई, लेकिन मुश्किलें ख़त्म नहीं हुईं. अब इशरत जहां का उस इलाके में बायकॉट कर दिया गया, जहां वो रहती हैं. लोग उनसे बात नहीं कर रहे बल्कि उन्हें 'गंदी औरत' कहा जा रहा है. उन्हें ताने दिए जा रहे हैं कि 'वो मर्द की दुश्मन है. वो इस्लाम विरोधी है.'
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जब से इशरत के हक में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है, तब से उनका घर में रहना मुश्किल हो गया है. कई पड़ोसियों ने तो इशरत से बात तक करना बंद कर दिया है. लोगों की इस सोच पर हैरानी नहीं होती. बल्कि तरस आता है कि ये लोग कौन से ज़माने में जी रहे हैं. क्यों नहीं अपडेट वर्जन के साथ आगे बढ़ते. क्यों लकीर के फ़कीर बनकर बैठे हैं. जिस ट्रिपल तलाक की वजह से औरत अचानक बेसहारा हो जाती हो. उसे पति का हर ज़ुल्म बर्दाश्त करना पड़ता है कि कहीं तलाक तलाक तलाक न बोल दे. उस ट्रिपल तलाक के खिलाफ कोर्ट जाने से 'औरत गंदी' कैसे हो सकती है. जो लोग इशरत का बायकॉट कर रहे हैं उन्हें सलाह है कि अगर आपको बायकॉट करने का ज्यादा शौक है तो इन लोगों का करो. हम आपको बता रहे हैं.
1. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुनवाई के दौरान कोर्ट को 14 अप्रैल 2017 को पास किए गए अपने एक फैसले के बारे में बताया था, जिसमें था कि तुरंत ट्रिपल तलाक एक पाप है, और ऐसा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा.
तो करिए तुरंत तीन तलाक करने वालों का बहिष्कार. अभी 22 तारीख को ही यानी जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है उसी दिन मेरठ में तलाक तलाक तलाक बोलकर तीन बच्चों की मां को एक मर्द ने बेसहारा छोड़ दिया. अब तो बोर्ड भी पाप बता चुका है. फिर भी ये पाप किया जा रहा है. क्यों इस पाप का बहिष्कार नहीं हो रहा?
2. दहेज के बारे में तो सुना ही होगा. पूछ इसलिए रहा हूं. आप सुनी हुई बातों पर ही यकीन कर लेते हैं, खुद पढ़कर समझने की कोशिश नहीं करते. जैसे मौलवियों से सुनकर तुरंत तीन तलाक के बारे में यकीन कर लिया. जबकि कुरान तक में तुरंत तीन तलाक वाला फ़ॉर्मेट है ही नहीं. हां तो दहेज की बात थी. क्या दहेज किसी पैगंबर ने लिया था, या फिर खलीफा ने. अगर लिया था तो क्या वो ये भी कह गए कि जमके दहेज लेना. और कह देना कि ये तो हम लड़की वालों का दिल रखने के लिए ले रहे हैं. हमने तो मना कर दिया था. कहीं किसी किताब में दहेज लेने को नहीं कहा गया. फिर क्यों लेते हो. क्यों कर्ज़दार बनने पर मजबूर करते हो लड़की के घरवालों. क्या ये हराम नहीं. तो करो बायकॉट दहेजलोभियों का. मत करो ऐसे लोगों के साथ अपनी बेटियों की शादियां.
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3. शादियों से याद आया. इस्लाम तो धूम धड़ाके से शादी करने के सख्त खिलाफ है. सादगी चाहता है. फिर क्यों रीति रिवाज और रस्मों के हवाले देकर बेफिजूल के खर्च किये जाते हैं. क्या ये गैर इस्लामी नहीं. अगर है तो फिर ऐसा करने वाले लोगों को गले लगाकर क्यों बैठाते हो. क्यों उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ते हो. ढिमाके ने अपनी बेटे की शादी में इतना खर्च किया है. क्यों है ये सब. करो न इस गैर इस्लामी काम का विरोध.
4. मुसलमानों क्या तुम्हें मालूम नहीं अल्लाह ने बेटी पैदा होने को क्या बताया है. इस्लाम में बेटी को रहमत बताया है. यानी अल्लाह की तरफ से तोहफा. और जो तोहफा दिया जाता है उसका हिसाब नहीं लिया जाता. बेटे को नेमत बनाया है. यानी कोई चीज़ किसी ने आपको सौंपी है. और जो सौंपी गई है उसका हिसाब लिया जाएगा. मगर अल्लाह ने जो तोहफा (बेटी) दिया उसके साथ तुमने क्या किया? बेटी बनी तो उसे खाना तब मिला जब घर के लड़कों ने खा लिया. बीवी बनी तो दहेज, तीन तलाक और न जाने कैसे कैसे ज़ुल्म की शिकार बनी. मां बनी तो बेसहारा छोड़ दिया गया. शर्म आनी चाहिए. अल्लाह ने जो तुम्हें तोहफा दिया था उसका क्या हाल बना दिया. शरीयत की बात करते हो न, तो करो ऐसे लोगों का बहिष्कार जो तुम्हारे अल्लाह के दिए तोहफे का ये हाल कर दे रहे हैं.
ये आपकी खता नहीं है. मेरा दोस्त और सहकर्मी है मुबारक. वो अक्सर कहता है कि 'कुरआन हो या कोई भी पवित्र ग्रंथ, उनको पढ़ने की जगह जब पूजा जाने लगे तो समस्या विकराल बननी ही बननी है.' जबकि जिस शरीयत का हवाला देकर इशरत जहां को गंदी औरत कहा जा रहा है इस्लाम विरोधी बताया जा रहा है. उसी शरीयत के मानने वालों के धर्मग्रन्थ 'कुरआन' में लिखा है कि किसी भी चीज़ पर आंखें मूंद के यकीन ना करो, अपना दिमाग इस्तेमाल करो. इस बात की रोशनी में ही उन बदलावों की गुंजाइश तलाशी जा सकती है, जो बेहद ज़रूरी हो चले हैं. तुरंत तीन तलाक ही नहीं बल्कि हलाला जैसे नियम गैर ज़रूरी हैं इनकी अब ज़रूरत नहीं. जब लागू किये गए होंगे, मान लेते हैं उस वक़्त ज़रूरी रहे होंगे. लेकिन ये अब महज़ औरतों पर ज़ुल्म ही नजर आते हैं. अगर ज़ुल्म नहीं है तो फिर औरत को भी इसी तरह तीन तलाक का हक़ दे दो. तब तो मान लेते हैं कि हां आप औरतों का भला चाहते हैं.

कौन हैं इशरत जहां

इशरत पश्चिम बंगाल में हावड़ा के पास में रहती हैं. वह वहां 2004 से रह रही हैं. जिस घर में इशरत रहती हैं वह उनके पति ने दहेज में मिले पैसों से ही खरीदा था. इशरत के पति ने 2014 में उन्हें दुबई से फोन पर तीन तलाक कहकर छोड़ दिया था. इशरत के चार बच्चों को भी उनका पति अपने साथ ले गया था. इंडियन एक्सप्रेस में छपे उनके वकील के बयान के मुताबिक इशरत ने अपने पति की दूसरी शादी रुकवाने के लिए काफी संघर्ष किया. उन पर हमला भी हुआ था, जिसके बाद उन्हें कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में इलाज कराना पड़ा था. अपनी याचिका में इशरत ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लिकेशन एक्ट, 1937 के सेक्शन – 2 को चुनौती दी थी.
इशरत को इस्लाम विरोधी कहा जा रहा है.
इशरत को उसके पति ने दुबई से तलाक तलाक तलाक बोल दिया था.
इशरत का कहना है कि इतनी लंबी लड़ाई लड़ने के बाद उनमें परिवार और बाकी लोगों से लड़ने की हिम्मत नहीं बची है. इशरत चाहती हैं कि वह अब अपना वक्त अपने बच्चों को दें. इशरत का कहना है कि अब वो चाहती हैं कि अपनी पहचान सबके सामने लाएं. क्यों वो अपना चेहरा छिपाएं. और भी औरतें जानें और अपने हक़ के लिए लड़ने के लिए प्रेरित हो.
इशरत के साथ-साथ उनकी तरफ से केस लड़ने वाली वकील नाजिया इलाही खान को भी ट्विटर पर लोगों ने उल्टा-सीधा बोला था. ये लोग मानसिक बीमार हैं, जो गलत को गलत न कहकर उसका साथ दे रहे हैं. इशरत जहां का बायकॉट उनके जाहिलपन का सबूत है. जो अपनी जगह से हिलना नहीं चाहते. आखिर मुस्लिम समाज और उसके स्वघोषित रहनुमा क्यों नहीं समझते कि इस जड़ता ने सबसे ज़्यादा उन्हीं का नुकसान किया है.


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