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फ्री चुनावी वादे देश को कहां ले जाएंगे, टॉप ब्यूरोक्रैट्स ने पीएम मोदी को बता दिया

कई राज्यों को लेकर सचिव क्यों दे रहे हैं चेतावनी?

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पीएम नरेंद्र मोदी एक मीटिंग के दौरान. (फाइल फोटो: PIB)
पीएम नरेंद्र मोदी एक मीटिंग के दौरान. (फाइल फोटो: PIB)
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अभय शर्मा
4 अप्रैल 2022 (Updated: 4 अप्रैल 2022, 02:21 PM IST)
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देश के कुछ राज्यों की आर्थिक स्थिति श्रीलंका या ग्रीस जैसी हो सकती है अगर... ये अगर से आगे की बात भी बताएंगे. पहले जानिए कि ये किसने, किससे कहा है. तो बात ये है कि शनिवार 2 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी ने देश के टॉप ब्यूरोक्रैट्स के साथ एक मीटिंग की थी जिसकी जानकारी अब सामने आई है. मीटिंग में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई. इनमें चुनावों के दौरान सत्तारूढ़ और अन्य राजनीतिक दलों की तरफ किए जाने वाले मुफ्त चुनावी वादे (फ्रीबीज) और लोकलुभावन योजनाएं भी शामिल रहे. इंडिया टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक इसी को लेकर शीर्ष नौकरशाहों ने केंद्र सरकार को चेताया है. कहा है कि अगर इस तरह के चुनावी वादों को रोका नहीं गया तो देश के कुछ सूबों की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो सकती है. देश के शीर्ष सचिव पदों पर बैठे इन अधिकारियों ने पीएम मोदी के सामने दलील दी कि चुनावी वादों की वजह से शुरू हुई ये योजनाएं आर्थिक रूप से बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि अगर ऐसे चुनावी वादे किए जाते रहे तो कुछ राज्यों की आर्थिक हालत श्रीलंका या ग्रीस जैसी बदहाल हो सकती है. ऐसे में अधिकारियों ने पीएम मोदी से मांग की है कि राजनीतिक पार्टियों को समझाया जाए कि वे अपने चुनावी और सियासी फैसले राजकोष की हालत को देखकर लें. किन राज्यों को लेकर चिंता जताई? टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी के साथ इस मीटिंग में सचिव स्तर के अधिकांश वे अधिकारी थे, जो केंद्र सरकार से जुड़ने से पहले राज्यों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं. ऐसे में इन्हें कई राज्यों की वित्तीय स्थिति की जानकारी है. खबर के मुताबिक मीटिंग में कुछ सचिवों का यह तक कहना था कि कई राज्यों की वित्तीय स्थिति इतनी खराब है कि अगर वे केंद्र से न जुड़े होते तो आर्थिक मोर्चे पर बदहाल हो चुके होते. सूत्रों के मुताबिक सचिवों ने मीटिंग में ये भी कहा कि पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सरकारों द्वारा की गई लोकलुभावन घोषणाएं बिल्कुल व्यावहारिक नहीं हैं और इन्हें लेकर कुछ न कुछ करने की जरूरत है. अधिकारियों ने कहा कि चुनावी वादों के चलते कई राज्य लोगों को मुफ्त बिजली ऑफर कर रहे हैं, इससे राज्य के खजाने पर भारी बोझ पड़ रहा है. आलम यह है कि इन लोकलुभावन वादों को पूरा करने के लिए सरकारें स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बजट को सीमित कर रही हैं. अधिकारियों के मुताबिक बीजेपी ने भी हाल के चुनावों के दौरान यूपी और गोवा में मतदाताओं से मुफ्त एलपीजी कनेक्शन और अन्य रियायतें देने का वादा किया है, इससे भी राजकोष पर भार बढ़ेगा. सुप्रीम कोर्ट भी नाराजगी जता चुका है फ्री चुनावी वादों यानी फ्रीबीज को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है. बीती 25 जनवरी को उसने इस मुद्दे पर दायर एक याचिका पर सुनवाई भी की थी. इसमें मांग की गई थी कि पार्टियों को चुनाव से पहले सरकारी खजाने से ऐसे मुफ्त उपहार देने का वादा करने से रोका जाना चाहिए, जिनका कोई मतलब नहीं है. याचिका में कहा गया था कि ऐसे वादे करने वाली पार्टियों के चुनाव चिह्न सीज कर दिए जाने चाहिए या उनका रजिस्ट्रेशन ही रद्द कर दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय का ये भी कहना था कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर एक कानून बनाना चाहिए, जिससे इस तरह के चलन पर रोक लग सके. याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस (CJI) एनवी रमना की बेंच ने कहा था,
“हम जानना चाहते हैं कि इसे कानूनी तरीके से कैसे रोका जाए. क्या ऐसा मौजूदा चुनावों के दौरान किया जा सकता है? अगले चुनाव में भी ऐसा होना चाहिए. ये एक गंभीर मुद्दा है. फ्रीबीज बजट रेग्युलर बजट से ज्यादा हो जाता है.”
कोर्ट ने इस मामले में निर्वाचन आयोग (ECI) और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था.

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