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हार्वर्ड वाला नौजवान थाईलैंड में चुनाव कैसे हार गया?

14 मई 2023 को थाईलैंड में चुनाव हुए. मूव फ़ॉवर्ड पार्टी (MFP) को बहुमत मिला. पार्टी ने कुल 151 सीट जीतीं.

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Elections were held in Thailand on 14 May 2023. The Move Forward Party (MFP) got a majority. The party won a total of 151 seats. (AFP)
14 मई 2023 को थाईलैंड में चुनाव हुए. मूव फ़ॉवर्ड पार्टी (MFP) को बहुमत मिला. पार्टी ने कुल 151 सीट जीतीं. (AFP)
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साजिद खान
13 जुलाई 2023 (Updated: 13 जुलाई 2023, 11:32 PM IST) कॉमेंट्स
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भारत के पूर्व में पड़ने वाला देश, थाईलैंड. इतिहास उठाकर देखें तो यहां की सत्ता पर राजा या सेना का दबदबा रहा है. पर इस साल 14 मई को हुए चुनाव में पांसा पलटता नज़र आया था. कहा गया कि मुल्क में असल लोकतंत्र आएगा. इसी चर्चा के बीच था एक नौजवान, नौजवान जो हार्वर्ड से पढ़कर आया था. उसने चुनाव लड़ा, सबसे ज़्यादा सीटें जीती और सरकार बनाने का दावा किया. लेकिन अब ख़बर आई है कि वो नौजवान देश की कमान संभालने से चूक गया है. क्या है पूरा मामला आइए विस्तार से समझते हैं.

सबसे पहले थाईलैंड की संसद को समझिए,

इसमें दो सदन हैं. हाउस ऑफ़ रिप्रजेंटेटिव्स यानी निचला सदन और सेनेट यानी ऊपरी सदन.

निचले सदन में कुल 500 सदस्य हैं. इनका चुनाव जनता के वोट से होता है. सेनेट के सदस्यों की संख्या 250 है. इनकी नियुक्ति मिलिटरी हुंटा करते हैं. यानी, सेनेट पर सेना का एकाधिकार है. प्रधानमंत्री बनने के लिए संसद के 376 सदस्यों का वोट चाहिए. इसमें से अकेले सेना के पास 250 वोट हैं.  इसके अलावा कई मिलिटरी लीडर्स ने भी पार्टियां बना रखी हैं. 

ये रही कहानी थाईलैंड के संसद की. अब आते हैं हालिया घटना पर.

14 मई 2023 को थाईलैंड में चुनाव हुए. मूव फ़ॉवर्ड पार्टी (MFP) को बहुमत मिला. पार्टी ने कुल 151 सीट जीतीं. इसके मुखिया पिटा लिमजोरनाट ने सरकार बनाने का दावा किया. कहा किमैं प्रधानमंत्री बनूंगा. पिटा हार्वर्ड से पढ़कर आए हैं, देश में लोकतांत्रिक शासन लाने की कवायद करते हैं.  उनके पास 151 सीट हैं. प्लस 7 विपक्षी पार्टियों का समर्थन हासिल है. उन्होंने कयास लगाया कि 300 के करीब सीट गठबंधन मिलकर आ जाएंगी. और सेनेट के दूसरे सदस्य जनता की राय का सम्मान करके उनके पक्ष में वोट करेंगे. जिससे पीएम बनने का 376 का आंकड़ा वो पूरा कर लेंगे.   

पर ये कयास केवल कयास ही रह गए. क्योंकि 13 जुलाई को थाईलैंड की संसद में प्रधानमंत्री पद पर वोटिंग हुई. लेकिन इसमें पिटा को सफलता नहीं मिली. उन्हें कुल 323 वोट मिले. करीब 182 ने उनके खिलाफ मतदान किया जबकि 198 अनुपस्थित रहे. इस हार पर पिटा ने कहा है कि मैं इसे स्वीकार करता हूं लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा.

हार की वजह क्या है?

थाईलैंड में संवैधानिक राजशाही वाली व्यवस्था है माने कॉन्स्टीट्यूश्नल मोनार्की. मतलब, यहां संसद है, संविधान है, एक सरकार है. लेकिन राष्ट्र का मुखिया राजा या रानी होते हैं. थाईलैंड में राजा हेड ऑफ़ द स्टेट होते हैं. सेना की कमान भी उनके पास होती है. वो शाही परिवार के मुखिया होते हैं. वो ख़ुद से कोई कानून नहीं बना सकते, लेकिन संसद द्वारा पास किए गए किसी भी बिल को लागू कराने के लिए उनकी मंजूरी ज़रूरी है. थाईलैंड में राजा या शाही परिवार की आलोचना नहीं की जा सकती. ऐसा करने पर 03 से 15 साल तक की सज़ा का प्रावधान है. इसको लास मेजेस्तेस लॉ कहा जाता है. पिटा इसी तंत्र को खत्म कर थाईलैंड को एक पूर्ण लोकतंत्र बनाना चाहते हैं. पर संसद पर सेना का असर ज़्यादा है. और शाही परिवार के साथ उनका सांठ गांठ है. जानकार बताते हैं कि पिटा इसी वजह से पीएम बनने में असफल रहे हैं.

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