आतंकी हमले में 15 जवान और 49 नागरिकों की मौत, घटना से ये पूरा देश हिल गया!
UN शांति मिशन के बाहर जाने की घोषणा के बाद से बढ़ी हिंसा...

माली की अंतरिम सरकार (Interim government of Mali) ने बताया कि 7 सितंबर को इस्लामी आतंकवादियों (Islamic Militants) ने एक आर्मी कैंप और नाइजर नदी में एक नाव (River boat) पर हमला किया. इसमें 15 जवानों और कम से कम 49 नागरिकों की मौत (15 soldiers and 49 civilians died) हो गई है.
न्यूज़ एजेंसी AFP के अनुसार, उत्तर माली की नाइजर नदी में टिम्बकटू नाव पर हमला हुआ. इसके अलावा उत्तरी गाओ इलाके के बंबा में एक सैन्य कैंप पर आतंकी हमला हुआ. इन हमलों की जिम्मेदारी अल-कायदा से जुड़े एक संगठन ने ली है. माली सरकार ने तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है.
माली की सेना ने बताया कि टिम्बकटू नाव पर करीब 11 बजे आतंकियों ने हमला किया. ये नाव शहर के एक कोने से दूसरे कोने के बीच चलती है. इसके इंजन पर कम से कम 3 रॉकेटों से हमला किया गया. नाव वाली कंपनी कोमनाव के एक अधिकारी ने बताया कि नाव अभी भी नदी में है. सेना इसमें यात्रा कर रहे लोगों को निकालने का काम कर रही है.
नाइजर नदी यहां की एक ज़रूरी परिवहन लिंक है. उत्तर माली में सड़कों की हालत बहुत खराब है. इसके अलावा रेलवे की भी यहां पहुंच नहीं है. ऐसे में लोग नदी के रास्ते ही आना-जाना करते हैं.
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UN शांति मिशन के बाहर जाने से बड़ा तनावयहां हाल ही में तनाव बढ़ा है. दरअसल, संयुक्त राष्ट्र ने माली में शांति मिशन (UN Peacekeeping Mission) को खत्म करने की घोषणा की है. शांति मिशन को 2023 खत्म होने तक यहां से निकलना है. इसके चलते उन्होंने टिम्बकटू के पास अपने दो ठिकानों को सेना को सौंप दिया.
इसके बाद से सेना और जिहादियों के बीच यहां झड़पें होने लगीं. इसके अलावा पूर्व विद्रोहियों के साथ भी सेना की झड़पें हुईं. इससे 2015 में हुए शांति समझौते को लेकर आशंकाएं पैदा हो गईं. अल-कायदा से जुड़े एक संगठन सपोर्ट ग्रुप फॉर इस्लाम एंड मुस्लिम्स (GSIM) ने अगस्त 2023 में घोषणा की थी कि वे उत्तर माली के टिम्बकटू शहर पर नाकाबंदी करेंगे.
2012 से ही अस्थिर है उत्तर मालीमाली में 2012 से ही हालात स्थिर नहीं हैं. यहां के उत्तरी इलाके में तुआरेग्स समुदाय ने तब विद्रोह किया था. इन्हें भड़काने का काम आतंकवादियों ने किया था. इसके 3 साल बाद ही आतंकियों ने मध्य माली, नाइजर और बुर्किना फासो में अपना कैंपेन चलाया. इसकी आंच साहेल तक भी पहुंचीं. 2015 में ही उत्तरी माली के विद्रोहियों और माली सरकार के बीच शांति समझौता हुआ था. इसके बाद विद्रोही समुदायों ने इसे खत्म कर दिया था. 2020 आते-आते इस शांति समझौते में दरार पड़ने लगी थीं. और अब ये नतीजा सामने आ रहा है.
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