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श्रीलंका से 1,00,000 बंदर चीन अब नहीं भेजे जाएंगे, डर था कहीं...

बंदर चीन भेजने पर कोर्ट में बहस, फिर किस डर से रोका?

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Sri Lanka halt decision of exporting one lakh endangered monkeys to China
श्रीलंका सरकार ने चीन की एक कंपनी से बातचीत भी शुरू कर दी | प्रतीकात्मक फोटो: गेट्टी इमेज/इंडिया टुडे
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अभय शर्मा
27 जून 2023 (Updated: 27 जून 2023, 04:50 PM IST) कॉमेंट्स
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यूपी से लेकर बिहार तक शायद ही कोई ऐसा हो जो बंदरों से परेशान ना हो. लोग घरों में परेशान और किसान खेत में. लेकिन, अब ऐसी ही खबर देश से नहीं, बल्कि विदेश से आई है. ये देश है श्रीलंका. यहां लोग बंदरों से इतने परेशान हो गए कि बात सरकार तक पहुंच गई और सरकार ने लाखों बंदरों को देश निकाला देने का फैसला ले लिया. आइए पूरा मसला आपको बताते हैं.

श्रीलंका में जो बंदर हैं, वो टोक मकाक प्रजाति के हैं. इनकी संख्या पूरे श्रीलंका में तकरीबन 30 लाख है. इतनी ज्यादा संख्या होने के चलते ये बंदर घरों से लेकर खेतों तक नजर आते हैं. फसलों को बड़े पैमाने पर खराब करते हैं. कुछ सालों से ये ज्यादा ही होने लगा. देखते-देखते श्रीलंका में ये एक बड़ा मुद्दा बना गया. बताते हैं कि इस मसले पर किसानों की हजारों अर्जियां सरकार के पास पड़ी हैं. सरकार ने कई उपाय भी किए, लेकिन बंदरों के आतंक से निजात न मिल सकी.

जब मंत्री ने बंदरों से निजात का बड़ा तरीका बताया

अप्रैल 2023 में श्रीलंका के कृषि मंत्री महिंदा अमरवीरा ने इस मसले पर एक बड़े फैसले की जानकारी दी. 12 अप्रैल को उन्होंने बीबीसी को बताया कि श्रीलंका से एक लाख बंदर चीन भेजे जाएंगे. इससे किसानों को काफी राहत मिलेगी. उन्होंने बताया कि चीन ने श्रीलंका से अपने यहां के एक हजार चिड़ियाघरों के लिए बंदरों की डिमांड की है. चीन के साथ बंदरों की मांग को लेकर तीन दौर की बातचीत पूरी हो गई है. बातचीत अंतिम दौर में है.

अमरवीरा का कहना था कि श्रीलंका में बंदर और गिलहरियों से देश को करीब 10 करोड़ नारियलों का नुकसान होता है. इससे करीब 157 करोड़ रुपये की क्षति होती है. ऐसे में अगर बंदर निर्यात होंगे तो श्रीलंकाई किसानों को अपनी फसल की रक्षा करने में मदद मिलेगी. साथ ही ये फैसला देश को आर्थिक तंगी के दौर से उबारने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भी मददगार साबित होगा.

सरकार का प्लान कैसे धरा रह गया?

श्रीलंका की सरकार प्लान पर गंभीरता से काम कर रही थी. जानवरों से जुड़ी चीन की एक निजी कंपनी से श्रीलंका के कृषि मंत्रालय की बात भी लगभग पक्की हो गई थी. लेकिन, तभी पर्यावरण हितैषी कुछ संगठनों ने तगड़ा विरोध शुरू कर दिया. विरोध कर रहे कुछ पर्यावरणविदों का कहना था कि कोई भी निर्णय लेने से पहले ये पता लगाया जाए कि चीन बंदरों को क्यों बुलवा रहा है? क्या चीन इन बंदरों पर शोध करना चाहता है? या फिर वो इन बंदरों को खाने के मकसद से तो नहीं खरीद रहा?

न्यूज़ एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ लोगों का कहना था कि श्रीलंका में भले ही बंदर संरक्षित प्राणियों की लिस्ट में नहीं हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय रेड लिस्ट में इन बंदरों को खत्म होने वाली प्रजातियों की लिस्ट में शामिल किया गया है. ऐसे में बंदरों को बेचने का फैसला सही नहीं है. करीब 30 पर्यावरण हितैषी संगठन कोर्ट पहुंच गए और टोक मकाक बंदरों के प्रस्तावित निर्यात को रोकने की अपील की. श्रीलंकाई कोर्ट ने इस मामले पर सरकार से जवाब मांगा.

कोर्ट ने बुलाया तो श्रीलंका के अटॉर्नी जनरल कोर्ट पहुंचे. उन्होंने अदालत को बताया कि सरकार के वन्यजीव और संरक्षण विभाग ने बंदरों को चीन भेजने का फैसला वापस ले लिया है.

वीडियो: तारीख़: इंदिरा गांधी ने भारत की जमीन श्रीलंका को क्यों दी?

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