'किसी के कपड़ों का मतलब हां नहीं होता'
बात वहां की है, जहां लड़कियों को जबरन बांहों में जकड़ा गया. लड़कियां रोयीं, चिल्लाईं. मगर आवाजें दबा दी गईं.
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वीरेंद्र सहवाग ने कोच बनने की इच्छा नहीं, सेलेक्टर बनने की इच्छा जताई है. लगा जैसे वो सेलेक्टर्स के लिए कह रहे हों- इनका कुछ नहीं हो सकता.
इस सेक्सुअल हमले के लिए औरतों की ड्रेस को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई. उन्हीं बदज़ुबानों को धाकड़ बल्लेबाज़ ने लताड़ लगायी है. सहवाग ने ट्वीट किया, 'इस घटना से मैं बेहद दुखी और आहत महसूस कर रहा हूं. किसी के कपड़ों का मतलब 'हां' नहीं होता.'सहवाग ने लिखा, 'एक महिला आपको इस दुनिया में लेकर आती है. आपको किसी महिला का अपमान करने का हक नहीं है.' https://twitter.com/virendersehwag/status/816907866489716736?ref_src=twsrc%5Etfwन्यू इयर नाइट में बेंगलुरु के एमजी रोड और ब्रिगेड रोड इलाके में लड़कियों पर सेक्सुअल हमले हुए. वो भी उस वक्त जब वहां 1,500 के करीब पुलिस वालों की मौजूदगी थी. कर्नाटक के होम मिनिस्टर जी. परमेश्वरा ने इस घटना के लिए उल्टे महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था. मिनिस्टर ने कहा था, 'युवा वेस्टर्न कल्चर को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. सिर्फ व्यवहार में ही नहीं, बल्कि ड्रेसिंग में भी. इसलिए कुछ उपद्रव होता है, कुछ लड़कियों से छेड़छाड़ होती है और इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं.' मंत्री के इस बयान पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ललिता कुमारमंगलम ने उनका इस्तीफा मांगा है. इनसे पहले समाजवादी नेता अबू आज़मी ने कहा था, 'अगर मेरी बहन-बेटी सूरज डूबने के बाद गैर मर्द के साथ 31 दिसंबर मनाए और उसका भाई या शौहर उसके साथ नहीं है तो यह ठीक नहीं है. अगर कहीं पेट्रोल होगा, तो और आग आएगी.' इनके खिलाफ आवाज़ उठनी चाहिए इससे पहले की कि ये आग आपके दामन तक पहुंचे. इस सोच को ख़त्म करने की ज़रूरत है क्योंकि सेक्सुअल हमले सिर्फ स्कर्ट पर ही नहीं होते. नजर अगर स्कर्ट से हटाकर हकीकत पर डालोगे तो आपको नजर आएगा कि परदे में भी रेप होते हैं. बुर्का भी महफूज़ नहीं है. उसपर भी हमले हुए हैं. मगर करा ही क्या जाए. लोगों की नजर में ही फर्क है, जिन्हें सच नहीं स्कर्ट दिखता है.