The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Social Media : An open letter to trolls of social media written by Aseem Trivedi

कार्टून बनाकर जेल जाने वाले असीम त्रिवेदी का ट्रोल्स के नाम खुला खत

पढ़ के देखिए, कहीं आप भी ट्रोल करने वालों की लिस्ट में तो नहीं हैं.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
अविनाश
12 जनवरी 2018 (Updated: 12 जनवरी 2018, 01:16 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
बाईं तरफ दिख रही तस्वीर असीम त्रिवेदी की है. पॉलिटिकल कार्टून बनाते हैं. इतने तीखे कि सरकार उन्हें एक बार जेल भी भेज चुकी  है. कार्टून बनाना फिर भी नहीं छोड़ा. अब भी बनाते हैं, इसके जरिए मानवाधिकारों के लिए जागरूक करते हैं. लल्लनटॉप के रीडर भी हैं. इंटरनेट पर जब सेंशरशिप की बात आई तो इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले शुरुआती लोगों में हैं. सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों के लिए उन्होंने पत्र लिखा है.  प्रिय ट्रोल, सप्रेम नमस्कार! दुःख है कि नाम की जगह ट्रोल लिखना पड़ रहा है. काश तुम्हारा भी कोई नाम होता, जिसे दुनिया जानती और मैं नाम से खत लिख पाता. फिर भी, खुशी है कि मैं तुमसे मन की बात कह तो पा रहा हूं. खुश तो वैसे तुम भी बहुत होगे आज. किसी ने तुमसे बात तो की है. वरना कोई कहां ऐसा करता है. देखते ही ब्लॉक कर देते हैं कई लोग तो. कितना बुरा लगता होगा. हालांकि आम तौर पर मैं भी यही करता हूं. पर गलती मेरी नहीं है. जीवन में पहले ही इतनी समस्याएं हैं, इतने काम हैं कि तुमसे बात करने का कुछ बन ही नहीं पाता. समझ सकते हो. इधर तुमने ट्रोल किया, उधर मैंने ब्लॉक मारा. सब कुछ इतनी जल्दबाजी में होता है कि कई बार ढंग से तुम्हारी प्रोफाईल भी नहीं देख पाता. troll2 तुम कितना समय खर्च करते हो लोगों की प्रोफाईल पर. उनके ट्वीट, पोस्ट सब फॉलो करते हो. इतने क्रिएटिव तरीके से ट्रोल करते हो और लोग दस सेकेण्ड भी नहीं लगाते ब्लॉक करने में. भाई, तुम क्यों इन लोगों पर अपना कीमती समय नष्ट कर रहे हो जिनके पास तुम्हारे लिए दो मिनट भी नहीं. तुम्हारी स्थिति में खुद को रख के देखता हूं तो कष्ट महसूस होता है. एक ही जीवन मिला है ले देके, उसे भी लोगों को गालियां देने में गुज़ार देना. वो भी उन लोगों को, जो तुम्हें जानते ही नहीं. तुम्हारा नाम भी नहीं पता. बस ट्रोल हो उनके लिए तुम. वाकई बहुत भयावह है. मैं नहीं कह रहा कि तुम जानबूझ कर ऐसा करते हो. मैं सोच भी नहीं सकता कि ऐसा काम कोई खुशी खुशी करेगा. छोटे से जीवन में कितना कुछ करना होता है इन्सान को. नौकरी, काम धंधा, दोस्त, परिवार. एक को समय दो तो दूसरा छूटता है. उस पर फिल्में देखने का भी मन करता है. घूमने जाने का भी. गाने सुनना, दोस्तों के साथ पार्टी. कहां मिल पता है इन सबके लिए समय. देखो पिछ्ला साल निकल गया अभी कुछ दिन पहले. पता ही नहीं लगा कब आया, कब गया. ऐसे में हर दिन कई घंटे दूसरों की प्रोफाइल्स के चक्कर काटने और उनके लिए गालियां लिखने में गुजारने पड़ें तो कितना कष्ट होता होगा. ये तुम्हारे अलावा शायद ही कोई समझ पाए. कितनी मुश्किल से निकालते होगे इतना कीमती समय इतने बेहूदे काम के लिए. giphy (3) हां, अगर तुम्हें पैसे मिलते हैं इस काम के, यानी किसी पार्टी के आईटी सेल के पेड ट्रोल हो तब तो ठीक है. नौकरी के लिए इन्सान क्या नहीं करता. जब तक कोई ढंग की नौकरी न मिले तब तक करते रहो. और फिर लोग कह रहे हैं अच्छे दिन आने वाले हैं. क्या पता आ ही रहे हों. फिर ढंग की नौकरियाँ होंगी. जहां तुम कुछ इज्ज़त का काम कर पाओगे, जिस पर तुम्हें, तुम्हारे मां-बाप, बीवी-बच्चों को गर्व होगा. बेटे को ये नहीं कहना पड़ेगा कि मेरा बाप ट्रोल है. तब तक के लिए जो ज़रिया है रोजी रोटी का, वही ठीक. गर्व से जारी रखो. हां, दूसरी नौकरी ज़रूर देखते रहना. कोशिश करने से ही मौके मिलते हैं जीवन में. लेकिन भाई अगर तुम्हें कोई पैसे भी नहीं देता इस काम के. तब तो तुम्हारी हालत चिंताजनक है. जिस समय को तुम दोस्तों, प्रेमिका और परिवार के साथ बिता सकते थे, उसे तुम ऐसे खराब कर रहे हो. अगर दोस्त और प्रेमिका नहीं है, तो इसी समय में बना भी तो सकते थे. जब 10-20 साल बाद मुड़ के देखोगे तो कितना दुख होगा तुम्हें. ये सारे गालियों वाले तुम्हारे कमेन्ट और ट्वीट भी सोशल मीडिया फीड में सालों पीछे जा चुके होंगे. क्या पता सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ही बदल चुके हों. किसी को दिखा-बता भी नहीं पाओगे कि जीवन भर क्या किया है. giphy (5) जब मैं स्कूल में था. एक दिन टीचर ने सबसे पूछा था कि कौन बड़ा होकर क्या करना चाहता है. किसी ने कहा डॉक्टर बनना है, किसी ने कहा ऑफिसर. टीचर ने कहा, "ये नहीं पूछ रहा कि क्या बनना चाहते हो. मैं पूछ रहा हूं क्या करना चाहते हो बड़े होकर." किसी ने कहा, खूब नाम करना चाहता हूं, किसी ने पैसे कमाने की बात कही, किसी ने कहा गरीबों की सेवा करना चाहता हूं. कुछ ने तो ये भी कहा कि इंडिया के लिए दूसरा वर्ल्ड कप लाना चाहता हूं (बड़े क्रिकेट प्रेमी छात्र थे हमारी क्लास के). पर यकीन मानो, किसी ने नहीं कहा कि बड़े होकर दूसरों को गाली देना चाहता हूं. हालांकि सोशल मीडिया तब था भी नहीं. लेकिन आज के बच्चों में से भी कोई बड़ा होकर ट्रोल बनना तो नहीं ही चाहेगा. मुझे विश्वास है कि तुम भी नहीं चाहते थे. फिर ये कैसे हो गया. कब तुम्हें ये शौक लग गया दूसरों की प्रोफाईल ढूंढ ढूंढ कर गालियां देने लगे. कभी बीवी से झगड़ा हो जाए, ऑफिस में बहस हो जाए, नोटबंदी हो जाए. तब ठीक है. भाई मूड खराब है. गुस्से में गाली दे दी. लेकिन हमेशा ऐसा करना, सोचना, कब इतनी बुरी आदत लग गई तुम्हें. कुछ घर से बाहर निकलो. नया साल है, जिम ज्वाइन कर लो. पुस्तक मेला चल रहा है, कुछ किताबें ले आओ. मेडिटेशन ट्राई करो. कितने तरीके निकल सकते हैं इस बुरी आदत से पीछा छुड़ाने के लिए. बस तुम एक बार कोशिश तो करो. लोग तो बड़े बड़े नशे भी छोड़ देते हैं. ये तो बस एक छोटी सी बुरी आदत भर है. giphy (6) कुछ असली दोस्त बनाओ ज़िंदगी में. अगर खुद को ऐक्शन हीरो समझते हो और दुश्मनी ही पसंद है तो कुछ असली दुश्मनी करो. ऑफिस में बॉस से तो बहुत डरते हो. कितना भी खून जला हो, लेकिन उसको कभी कोई गाली नहीं दे पाए तुम. कभी क्रिएटिव तरीके से भी ट्रोल करने की हिम्मत नहीं हुई होगी. सोशल मीडिया पर तो मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक, सबकी ऐसी तैसी कर सकते हो. सामने से एक बार अपने इलाके के पार्षद को ही ट्रोल करके देख लो. डरपोक हो तुम असल में. आख़िरी बार सड़क पर किससे मारपीट की थी अकेले? याद करो. नहीं याद आया? स्कूल, कॉलेज में की होगी, वो भी अपने से कमजोर लड़के से. तब तक तुम फिर भी बहादुर थे. अब पूरी तरह डरपोक हो गए हो. किसी को सामने से कुछ कहने की हिम्मत नहीं रही तो सोशल मीडिया में छिपकर आत्म संतुष्टि करने लगे. तुम्हें क्या लगा, ऐसा करके सुपर मैन बन जाओगे. या ट्रोल बन के शिवाजी और भगत सिंह टाइप महसूस करने लगे. शिवाजी तुम्हारी हालत पर क्या कहते सोचो? क्या भगत सिंह कहते? तुम्हारे समय में होते तो वो लोग किसी को ट्रोल करते? सोशल मीडिया पर गालियां देने में ज़िंदगी बिता देते? giphy (7) बाहर निकलो इससे. इंसान बनो, असली वाले. तुम्हारी ट्रोलिंग से न तो देश का भला होगा और न तुम्हारी कुंठा दूर होगी. जहां समस्या है, वहां काम करो. देश में भी और खुद में भी. अपने असल जीवन में कुछ कुछ साहस लाने की कोशिश करोगे तो सोशल मीडिया में छिपकर बहादुर बनने की आदत में ज़रूर कमी आएगी. कुछ ठोस काम करोगे देश के लिए, समाज के लिए तो आत्मविश्वास भी आएगा. वो असली आत्म संतुष्टि होगी कि तुमने कुछ अच्छा किया. ये गालियां देकर देश-समाज का भला करने का वहम कब तक पाले रहोगे. कुछ अच्छा करोगे फिर तुम्हारा भी एक नाम होगा, पहचान होगी. दुसरे तुम्हें ट्रोल करेंगे. तुम्हें अच्छा लगेगा, जब तुम मन में सोचोगे कि कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी लहराते हुए चलते हैं. सोचो! कितना खूबसूरत दिन होगा, जब तुम्हारा भी एक नाम होगा. और दुनिया तुम्हें ट्रोल नाम से नहीं जानेगी. फिर गालियां देकर तुम जो अटेंशन लेने की कोशिश करते हो, वो तुम्हें अपने आप मिलेगा. और इतने अटेंशन की ज़रूरत होती भी कहां है दुनिया में. परिवार और दोस्तों का अटेंशन ही काम आता है. सोशल मीडिया वाला अटेंशन तो वैसे भी वर्चुअल है. कुछ देर के लिए मिल भी गया तो उससे क्या फायदा. इसलिए खुद में ही खुश रहो. giphy (9) ट्रोलिंग बंद करने के लिये तुम्हें न तो टॉलरेंस और इनटॉलरेंस को समझने की ज़रूरत है और न ही कम्युनलिज़म-सेक्युलरिज़म को समझने की. न फ्रीडम ऑफ़ स्पीच को और न डेमोक्रेसी को. ये सब बेकार की बहस है. बस खुद को समझने की ज़रूरत है तुम्हें. जिस दिन समझ जाओगे क्यों कर रहे हो ऐसा. कौन सी कुंठा और डर बैठा हुआ है भीतर जो कुछ ढंग का करने से रोक रहा है. उस दिन शायद इसे छोड़ पाओगे. आसान तो कुछ नहीं होता पर बहुत मुश्किल भी नहीं होगा. कोशिश तो करनी ही चाहिए. जीवन एक बार मिला है. उसे दूसरों गाली देने में क्यों गंवाना, जबकि बहुत कुछ बेहतर किया जा सकता है. और कभी सोचो कि फायदा किसे होता है तुम्हारी ट्रोलिंग से. जिनको ट्रोल करते हो, वो सेलेब्रिटी बन जाते हैं और तुम वहीं के वहीं. तुम्हारा सिर्फ इस्तेमाल हो रहा है सोशल मीडिया की दुनिया में. सोशल मीडिया कंपनी को ट्रैफिक मिल जाता है, टीवी वालों को बहस का बहाना और लोग हीरो बन जाते हैं. तुम्हें क्या मिलता है, बाबा जी का ठुल्लू. giphy (2) देश भी बदलना, समाज भी. पहले खुद को बदलने से शुरुआत करो. आज से ही कुछ ढंग का करो. स्वामी विवेकानंद ने कहा था, "उठो, जागो और लक्ष्य तक पहुंचने से पहले मत रुको." शुभकामनाओं सहित,असीम त्रिवेदी
ये भी पढ़ें:जावेद अख्तर को ट्रोल करने चले थे, अब ‘बर्नोल’ मांग रहे हैंवो कौन थी जिसने ट्रोल को मारने के लिए चप्पल निकाल लीतुमने एक लड़की की जुबान खींच ली है ‘ताकतवर’ सहवाग, बधाई हो!वीरेंद्र सहवाग और रणदीप हुड्डा हमारे हीरो थे, अब ट्विटर पर गुंडों के साथ खड़े हो गए वीडियो में समझिए रैंकिंग पर्सेंटेज और पर्सेंटाइल का फर्क

Advertisement