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'बर्मा का बिन लादेन': ये बौद्ध भिक्षु है रोहिंग्या मुसलमानों का दुश्मन नंबर 1

एक बौद्ध गुरु इतना खतरनाक भी हो सकता है.

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टाइम मैगजीन के कवर पेज पर छपे थे विराथू
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सौरभ
6 सितंबर 2017 (Updated: 6 सितंबर 2017, 01:34 PM IST) कॉमेंट्स
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बौद्ध भिक्षुओं का नाम आता है तो लगता है कोई शांत, सरल सा महंत होगा. बोलता होगा तो मुख से फूल झड़ते होंगे. हर वक्त शांति, प्रेम और सद्भाव की बातें करता होगा. ज्यादातर ऐसा ही होता है. मगर म्यांमार(बर्मा) के बौद्ध भिक्षु अशीन विराथू पर ये सब बातें लागू नहीं होतीं. वो जहर उगलते हैं. कई बार उनके भाषणों से ही दंगे-फसाद हो जाते हैं. उनके निशाने पर रहते हैं मुसलमान. खासकर रोहिंग्या मुसलमान. ये जो रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठा हुआ है, उसमें इनका भी बड़ा हाथ है. एक बार जब विराथू से पूछा गया कि क्या वे 'बर्मा के बिन लादेन' हैं, तो उन्होंने कहा कि वे इनकार नहीं करेंगे.

टाइम मैगजीन में छपा- बुद्धिस्ट आतंकवाद का चेहरा

अशीन विराथू की शोहरत 1 जुलाई 2013 को टाइम मैगजीन तक पहुंच गई. मैगजीन के फ्रंट पेज पर उनकी बढ़िया चमचमाती तस्वीर छपी. हेडिंग भी खतरनाक थी- बुद्धिस्ट आतंकवाद का चेहरा. अब विराथू को आतंकवादी तो नहीं कह सकते मगर जिस तरह से विराथू लोगों को अपने कट्टरपंथी विचारों से भड़काते हैं, वो ही उन्हें म्यांमार में कट्टरपंथियों के बीच भौकाली तो शांतिप्रेमियों के लिए उग्रवादी बनाता है.
बौद्ध गुरुओं की बैठक में विराथू.
बौद्ध गुरुओं की बैठक में विराथू.

'969' के साथ जुड़े तो चर्चा में आए

1968 में जन्मे अशीन विराथु ने 14 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और भिक्षु का जीवन अपना लिया था. म्यांमार का रंगून के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है मांडले. यहीं पर विराथू का बौद्ध मठ है. यहीं पर वो और उनके हजारों समर्थक बौद्ध भिक्षु रहते हैं. इस मठ में घुसते ही खूनखार तस्वीरें दिखने लगती हैं. कहा जाता है ये मुस्लिमों द्वारा मारे गए बौद्धों की तस्वीरे हैं. आपको बता दें कि 12-15 साल पहले मांडले के इस बौद्ध भिक्षु के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना था. मगर 2001 में जब वो राष्ट्रवादी और मुस्लिम विरोधी गुट '969' के साथ जुड़े तो चर्चा में आ गए. वो अब इसके संरक्षक हैं. यह संगठन बौद्ध समुदाय के लोगों से अपने ही समुदाय के लोगों से खरीदारी करने, उन्हें ही संपत्ति बेचने और अपने ही धर्म में शादी करने की बात करता है. '969' के समर्थकों का कहना है कि यह पूरी तरह से आत्मरक्षा के लिए बनाया गया संगठन है जिसे बौद्ध संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए बनाया गया है.

2003 में हुई थी 25 साल की सजा

अशीन विराथू को 2003 में 25 साल कैद की सजा सुनाई गई थी. आरोप यही मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलने के थे. पर करीब 7 साल बाद यानी 2010 में उन्हें अन्य राजनैतिक बंदियों से साथ रिहा कर दिया गया. इसके बाद से ही विराथू अपने मुस्लिम विरोधी मिशन में और सक्रिय हो गए. 2012 में जब राखिने प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच हिंसा भड़की तो वे अपने भड़काऊ भाषणों के साथ लोगों की भावनाओं से जुड़ गए. उन्होंने अपने आग उगलते भाषणों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया यानी फेसबुक और यूट्यूब का भी सहारा लिया. फेसबुक पर उनके पेज के 4 लाख से भा ज्यादा फॉलोअर हैं.
विराथू का फेसबुक पेज.
विराथू का फेसबुक पेज.

मुस्लिम राष्ट्र के लिए खतरा: विराथू

म्यांमार में करीब 60 मिलियन लोग रहते हैं. इनमें मुस्लिम महज 5% ही हैं. अशीन विराथू इन सभी को राष्ट्र और वहां कि संस्कृति के लिए खतरा मानते हैं. वो मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या को खतरनाक मानते हैं. अकसर भाषणों में उन्हें कहते सुना जाता है कि मुस्लिम देश में बौद्ध बहन-बेटियों का बलात्कार कर रहे हैं. वो देश पर कब्जा कर लेंगे. जब विराथू से उनके नफरत भरे भाषणों के बारे में पूछा गया तो वो बोले- मैं तो सिर्फ अपने चहेतों की रक्षा कर रहा हूं. मैं तो सिर्फ अपने लोगों को मुस्लिमों की ओर से बढ़ रहे खतरे से आगाह कर रहा हूं. विराथू का कहना है, 'पहले धर्म और जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता था. हम भाईचारे के साथ रहते थे, लेकिन मुसलमानों के मास्टर प्लान के बारे में पता चलने के बाद हम और अधिक चुप नहीं रह सकते. विराथू का मानना है कि म्यांमार को एक इस्लामिक राज्य बनाने के लिए मुस्लिम एक 'मास्टर प्लान' पर काम कर रहे हैं.

डॉनल्ड ट्रंप हैं पसंदीदा नेता

अपने चुनावी कैंपेन से लेकर अपने फैसलों में मुस्लिम विरोधी रुख अख्तियार कर चुके अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप विराथू के पसंदीदा राजनेता हैं. उनका कहना है कि ट्रंप ही विश्व में इकलौते नेता हैं जो मुस्लिमों के वर्चस्व के सामने डटकर खड़े हैं.
ट्रंप के इस फैसले से 7 हज़ार भारतीयों पर असर पड़ेगा.
डॉनल्ड ट्रंप .

एक महिला संगठन ने किया था खुलकर विरोध

दशकों के संघर्ष के बाद म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार तो आ गई, मगर रोहिंग्या मुस्लिमों के मसले पर वो भी खुलकर बोलने से घबराती है. आंग सान सू की यहां की बड़ी नेता हैं, मगर वो भी इस मुद्दे पर शांत हैं. मलाला यूसुफजाई से लेकर कई नोबेल विजेताओं ने इस बात से नाराजगी जताई है. विराथू के खिलाफ कार्रवाई करने से भी सरकार हिचकिचाती है. सरकार का साफ कहना है कि वो कार्रवाई तब ही करेंगे जब कोई शिकायत आएगी और शिकायत आती नहीं है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक एक महिला संगठन विमंस लीग ऑफ बर्मा विराथू का विरोध जरूर कर चुका है. दरअसल विराथू के एक नेतृत्व में एक कानून के लिए कैंपेन चली थी. इसमें कहा गया था कि बौद्ध महिलाएं दूसरे धर्म में शादी नहीं कर सकतीं. महिला संगठन ने इसे महिलाओं पर बंदिश की कोशिश बताते हुए नकार दिया और खुलकर विरोध किया.



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