पाकिस्तान वाले 'उड़ता पंजाब' में 100 कट क्यों लगाना चाहते हैं?
निहलानी जी को पाकिस्तान में अपना खोया भाई मिल गया है. भारत में 89 कट की बात थी, पाकिस्तान में 100+ कट की शर्त लगी है.

माननीय बॉम्बे हाई कोर्ट की कृपा से भारतीय दर्शकों ने तो सिर्फ़ एक कट के साथ 'उड़ता पंजाब' देख ली. लेकिन पाकिस्तान के दर्शकों को यह सुख नसीब नहीं हुआ. पहले तो 'सेंट्रल बोर्ड अॉफ फिल्म सेंसर्स' (CBFC पाकिस्तान) की पांच सदस्यीय समिति ने फिल्म में 'आपत्तिजनक सामग्री' का हवाला देते हुए फिल्म के पाकिस्तान में प्रदर्शन पर ही रोक लगा दी थी. लेकिन फिर डिस्ट्रिब्यूटर की अपील पर पूरा बोर्ड वापस बैठा अौर अब उन्होंने फिल्म को सिर्फ़ 100 से कुछ ज़्यादा कट अौर कुछ बीप, म्यूट्स के साथ पास करने की बात कही है. अब पाकिस्तान में फिल्म की वीकेंड रिलीज़ इस बात पर टिकी है कि डिस्ट्रिब्यूटर आदेशानुसार फिल्म एडिट कर वापस बोर्ड के सामने समय पर पेश होते हैं कि नहीं.
पाकिस्तान सेंसर बोर्ड के हेड मुबाशिर हसन ने पीटीआई को बताया,
"हमने तमाम अपमानजनक शब्दों अौर संवादों को अौर एंटी-पाकिस्तान कंटेंट को फिल्म से हटा दिया है. 100 से ज़्यादा कट, म्यूट अौर बीप फिल्म के डिस्ट्रिब्यूटर को सजेस्ट किए गए हैं. जब वे इसके अनुसार एडिटिंग पूरी कर लेंगे, तो इसे फाइनल मंजूरी के लिए बोर्ड के सामने पेश किया जाएगा".
न्यूज़ एजेंसी IANS की रिपोर्ट के अनुसार, जिन दृश्यों पर कैंची चलाने की बात है उनमें वे तमाम रेफरेंस शामिल हैं जिनमें पाकिस्तान का ज़िक्र भर भी आता है.
"वे तमाम सीन जिनमें पाकिस्तान की अोर इशारा भर भी है, शब्द '786' अौर 'मरियम की सीरत' इसके अलावा तमाम अभद्र भाषा अौर ऐसे शब्दों को या तो हटा दिया गया है, या म्यूट या बीप कर दिया गया है."
हसन साब ने इस्लामाबाद से जवाबी प्रतिक्रिया में यह बताया. जैसा संदर्भ से पता लगता है, शिव कुमार बटालवी की कालजयी कविता 'इक्क कुड़ी' भी सेंसर की चपेट में आ गई है. क्योंकि कविता की पंक्तियां हैं, "सूरत उस दी परियां वरगी, सीरत अो मरियम लगदी". फिल्म में इसे दिलजीत दोसांझ ने गाया है अौर फिल्म के सबसे निर्णायक मौके पर यह खरगोश सी मुलायम कविता आकर कहानी का रुख बदल देती है. बटालवी की कविता को भी सेंसर किया जा सकता है, यह अकल्पनीय है. लेकिन इस दौर में अकल्पनीय ही हमारी सच्चाई होनी है.
क्योंकि हमने 'माननीय बॉम्बे हाई कोर्ट' के ठप्पे से हासिल हुए सेंसर सर्टिफिकेट की मदद से फिल्म देख ली है. हम जानते हैं कि फिल्म की शुरुआत ही बॉर्डर पार पाकिस्तानी सरज़मी से होती है, जहां से डिस्कस थ्रो में 'चिट्टा' घूमता हुआ इधर आता है. लेकिन हम इस सोच में हैं कि क्या इन सौ से ज़्यादा कट में 'पंजाब' वाले तमाम संदर्भ भी शामिल होंगे, जैसा भारतीय CBFC ने सजेस्ट किए थे? क्योंकि भाई, 'पंजाब' तो जैसे इधर है वैसे ही उधर भी है!
वैसे पाकिस्तान का सेंसर बोर्ड ये भी कर सकता है कि फिल्म में जहां कहीं भी 'पंजाब' का संदर्भ आए वहां कोष्ठक में 'अपना वाला नहीं' ऐसे पर्ची मे लिखकर साथ में नत्थी करवा दे. या अौर आसान, गत्ते पर बड़ा सा 'not ours' लिखवाकर किसी के हाथ पकड़ाकर स्क्रीन के साथ में खड़ा करवा दिया करे.
लेकिन पाकिस्तान का सेंसर बोर्ड भी जानता है कि इन तमाम उपायों के बावजूद दर्शक असलियत पहचान ही जाते हैं. इसीलिए सेंसरशिप. वैसे ये कितनी खुशी की बात है कि हम दोनों पड़ोसी देशों में इंसानों के बीच ही नहीं, संस्थाअों के बीच भी ऐसी गज़ब का भाईचारा कायम है आज तक. फिर CBFC पाकिस्तान ने साबित किया है कि वे इंडियन सेंसर बोर्ड के सगे बिछुड़े भाई हैं. मैं जब भी सीमापार दोनों अोर संस्थाअों के मध्य एका के ऐसे महति प्रयास देखता हूं, पाकिस्तानी शायरा फहमीदा रियाज़ की भारत को संबोधित कर लिखी हुई वो सदा-प्रासंगिक कविता ज़रूर याद कर लेता हूं,
"तुम बिल्कुल हम जैसे निकले,अब तक कहां छुपे थे भाई?वह मूरखता, वह घामड़पनजिसमें हमने सदी गंवाई,आखिर पहुंची द्वार तुम्हारेअरे बधाई, बहुत बधाई" शुक्रिया हो हमारे दोनों देशों की नीति व्यवस्था, सरकार संचालकों अौर संस्थाअों का, कि उनकी वजह से यह कविता कभी पुरानी नहीं पड़ती अौर हम दोनों देशों के लोग इसकी सुविधानुसार अदला-बदली करते रहते हैं.