मुस्लिमों के खिलाफ बोल नेता बने गीर्ट वाइल्डर्स कौन हैं? नीदरलैंड्स में जिनकी जीत पक्की हो गई
नीदरलैंड्स के धुर-दक्षिणपंथी नेता गीर्ट वाइल्डर्स की पार्टी PVV सबसे ज्यादा सीटें जीत रही है. जब 1998 में वे पहली बार सांसद बने तो उतने लोकप्रिय नेता नहीं थे. जानते हैं गीर्ट वाइल्डर्स कैसे एक मजबूत नेता बनकर उभरे? और भारत में उनके मशहूर होने की क्या वजह रही?
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नीदरलैंड्स के आम चुनावों(Netherlands Election) में धुर-दक्षिणपंथी नेता गीर्ट वाइल्डर्स(Geert Wilders) चुनाव जीत सकते हैं. एक एग्जिट पोल में सामने आया है कि वाइल्डर्स की पार्टी फॉर फ्रीडम (PVV) ये चुनाव जीत सकती है. सामने आए एग्जिट पोल में उनकी पार्टी PVV का परिणाम पहले से लगाए जा रहे सभी कयासों के उलट रहा है. PVV सभी पार्टियों को मात देते हुए 150 में से सबसे ज्यादा 35 सीटें जीत रही है. PVV के पीछे फ्रैंस टिमरमैंस की लेबर पार्टी और ग्रीन लेफ्ट का गठबंधन है. ये अभी 25 सीटों पर जीत हासिल कर रहा है. ये फासला उम्मीद से काफी ज्यादा है. वहीं, खबर लिखे जाने तक वोटों की गिनती जारी थी, और 90 फीसदी तक वोटों की गिनती हो चुकी थी. इस समय तक 37 सीटों पर गीर्ट वाइल्डर्स की पार्टी बढ़त बनाए हुए थी. वहीं लेबर पार्टी और ग्रीन लेफ्ट का गठबंधन 25 सीटों पर आगे था.
कौन हैं गीर्ट वाइल्डर्स?गीर्ट वाइल्डर्स 6 सितंबर 1963 को नीदरलैंड्स के वेनलो शहर में पैदा हुए थे. दक्षिण-पूर्वी नीदरलैंड्स में जर्मन सीमा से लगे एक इलाके में गीर्ट का बचपन बीता. इसके बाद वेनलो के एक स्कूल से उन्होंने सेकेंडरी एजुकेशन ली. फिर आगे चलकर कानून की पढ़ाई की.
साल 1981 से 1983 तक गीर्ट इजरायल में रहे. फिर उन्होंने मध्य-पूर्व एशिया घूमा. इसी दौरान उनके विचार इस्लाम विरोधी बनने शुरू हुए. जब वे वापस आए तो नीदरलैंड्स की हेल्थ इंश्योरेंस इंडस्ट्री में काम शुरू किया. वे साल 1997 में लिबरल पीपल्स पार्टी फॉर फ्रीडम एंड डेमोक्रेसी (VVD)की तरफ़ से उट्रेच शहर की काउंसिल के मेंबर बन गए.
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इसके बाद जब सांसद बने तो गीर्ट उतने लोकप्रिय नेता नहीं थे. लेकिन ये दौर था जब नीदरलैंड्स में एंटी इस्लामिक बयार चलना शुरू हो रही थी. वे साल 1998 से नीदरलैंड्स के हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स के सदस्य हैं. इसके साथ ही वे देश के तीसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल PVV के संस्थापक हैं. इसे दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी पार्टी बताया जाता है.
कैसे बदली गीर्ट की किस्मत?साल 2004 में नीदरलैंड्स के एक फिल्मकार थियो वैन गॉग और उनके साथी सोमालियन डच एक्टिविस्ट यान हिर्सी अली की एक फिल्म आई थी. नाम था- सबमिशन पार्ट-1. फिल्म में मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति की आलोचना की गई थी. 2 नवंबर 2004 के रोज थियो वैन गॉग की मोहम्मद बौएरी नाम के एक इस्लामिक कट्टरपंथी ने हत्या कर दी. इस हत्या के बाद नीदरलैंड्स के लोगों में गुस्सा था और इस गुस्से की आवाज बने गीर्ट.

इससे पहले एक नेता की हत्या हुई थी. उनका नाम था- पिम फोर्टुइन. साल 2002 में इनकी भी हत्या कर दी गई थी. हत्या करने वाले एनिमल राइट एक्टिविस्ट ने कहा था कि पिम मुस्लिमों का शोषण कर रहे थे, इसलिए उन्हें मार दिया. गीर्ट ने इस्लाम को फासीवादी विचारधारा बताया. नीदरलैंड्स में मुस्लिमों के आने पर प्रतिबंध लगाने की बात कही. और इसके बाद बहुत कम वक़्त में पिम के समर्थक गीर्ट के फॉलोअर बन गए.
गीर्ट की धुर-दक्षिणपंथी राजनीतिसाल 2004 में गीर्ट अपनी शुरुआती पार्टी VVD के खिलाफ़ चले गए. वजह ये रही कि VVD तुर्की के यूरोपीय संघ में शामिल होने का समर्थन कर रही थी और गीर्ट इसके खिलाफ़ थे. तनातनी बढ़ी तो गीर्ट ने पार्टी छोड़ दी और साल 2006 में अपनी पार्टी ' 'पार्टी फॉर फ्रीडम' (PVV)खड़ी कर दी. 2006 के संसदीय चुनाव में PVV ने 9 सीटें जीतीं. गीर्ट इस वक़्त इस्लाम के खिलाफ़ और ज्यादा बयानबाजी करने लगे थे. साल 2007 में गीर्ट ने प्रपोजल दिया कि नीदरलैंड्स में कुरान पर प्रतिबंध लगा दिया जाए.
साल 2008 में गीर्ट ने एक विवादास्पद शॉर्ट फिल्म बनाई. 'फितना' नाम से. इसमें इस्लामिक आतंकी घटनाओं को कुरान से जोड़कर दिखाने की कोशिश की गई है. इस फिल्म को प्रोफ़ेशनल डिस्ट्रीब्यूटर नहीं मिले, तो गीर्ट ने इसे इंटरनेट पर रिलीज कर दिया.
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इसके बाद फरवरी 2009 में गीर्ट तब सुर्खियों में आए जब उन्हें UK में एंट्री से रोक दिया गया. वजह कि कुछ दिनों पहले उनके खिलाफ़ नीदरलैंड्स की एक कोर्ट में मुस्लिमों के प्रति नफरत फैलाने का मामला शुरू हुआ था. ब्रिटिश अधिकारियों की तरफ़ से कहा गया कि उनके आने से सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने का ख़तरा है. हालांकि, बाद में ये बैन हटा दिया गया. कोर्ट में जिन आरोपों पर सुनवाई चल रही थी, जून 2011 में गीर्ट उनमें बरी हो गए.

इधर गीर्ट की पार्टी चुनावी तौर पर अच्छा प्रदर्शन करती रही. साल 2009 में यूरोपीय संसद के चुनाव में PVV को चार सीटें मिलीं. कुल वोट शेयर भी करीब 17 फ़ीसद रहा. जबकि साल 2010 के संसदीय चुनावों में PVV ने 15 सीटें हासिल कीं. हालांकि ये चुनाव आर्थिक मुद्दों पर लड़ा गया था. लेकिन PVV का अप्रवासियों की आमद के खिलाफ़ दिया गया बयान जनता को पसंद आया था. हालांकि, इस चुनाव में VVD और क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स की गठबंधन की सरकार बनी. और इस नई सरकार में गीर्ट और उनकी पार्टी भी शामिल हुई.
लेकिन एक साल के अंदर ही गीर्ट सरकार के खिलाफ़ हो गए. उनका कहना था कि सरकार खर्चे कम करने के लिए सरकारी योजनाएं बंद कर रही है और अप्रैल 2012 में उन्होंने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. सरकार गिर गई. इसके बाद सितंबर 2012 में फिर चुनाव कराए गए. जिनमें गीर्ट की पार्टी PVV को नुकसान हुआ. कुल 9 सीटें गंवानी पड़ीं. वोटर्स का रुख लेबर पार्टी और VVD की तरफ़ शिफ्ट हो गया था.
नफरत फैलाने का आरोपसाल 2013 में यूरोस्केप्टिक पार्टियां पूरे यूरोपीय यूनियन में बढ़ रही थीं. और नवंबर 2013 में गीर्ट ने फ्रांस के नेशनल फ्रंट की नेता मरीन ले पेन के साथ गठबंधन की घोषणा की. इस जोड़ी ने यूरोपीय संसद में एक गठबंधन बनाया. इरादा था कि यूरोपियन यूनियन में नौकरशाही ख़त्म करेंगे और इमीग्रेशन पर सख्त कंट्रोल कायम करेंगे.
मई 2014 में हुए चुनावों में ले पेन ने तो फ्रांस में बड़ी जीत दर्ज की. लेकिन गीर्ट की पार्टी PVV को नीदरलैंड्स की जनता ने खारिज कर दिया. इसके बाद मार्च 2017 के आम चुनाव में PVV को 20 सीटें मिलीं. हालांकि गीर्ट की उम्मीद इससे कहीं ज्यादा थी.
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साल 2014 में 12 मार्च के दिन हेग में एक पब्लिक मीटिंग के दौरान भी गीर्ट पर लोगों के बीच नफरत फैलाने और एक वर्ग का अपमान करने का आरोप लगा. गीर्ट ने कहा कि मोरक्को के लोग नीदरलैंड्स में कम आएं, इसकी व्यवस्था करेंगे. हालांकि साल 2016 में इसे लेकर गीर्ट के खिलाफ़ मामला भी चला, लेकिन कोर्ट ने आखिर में उन्हें बरी कर दिया.

इसी तरह अप्रैल 2022 में पाकिस्तान में गीर्ट वाइल्डर्स के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए एक याचिका डाली गई. इस याचिका में कहा गया था कि गीर्ट के ईशनिंदा के कामों ने 150 करोड़ मुसलमानों की भावनाओं को आहत किया है. इसलिए नीदरलैंड्स के राजदूत को बुलाया जाए और गीर्ट की जोरदार ढंग से मुखालफत की जाए.
नूपुर शर्मा के बयान पर गीर्ट वाइल्डर्स ने क्या कहा था?गीर्ट वाइल्डर्स 2022 में भारत में भी चर्चा में रहे थे. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी(BJP) की प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर दिए विवादित बयान का समर्थन किया था. तब करीब एक दर्जन इस्लामिक देशों ने नूपुर के बयान का विरोध किया था. कुवैत और ईरान जैसे देशों ने भारत से सार्वजनिक माफ़ी मांगने को भी कहा था. इसी दौरान गीर्ट वाइल्डर्स ने नूपुर का समर्थन किया था. कहा था कि किसी को भी सच बोलने के लिए न ही सजा मिलनी चाहिए और न ही माफी मांगनी चाहिए. गीर्ट ने ये भी कहा था कि भारत को इस्लामिक देशों की धमकियों से नहीं डरना चाहिए. उन्होंने कहा कि नूपुर के बयान की आलोचना करने वाले इस्लामिक देश अपने देश में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करते हैं.
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