सेक्स जैसी एक सहज मानवीय भावना को गुनाह में बदल देते हैं हम
सेक्स से बचो, उसके ज़िक्र से भी बचो यही स्टैण्डर्ड फ़ॉर्मूला है हमारे मुल्क में.
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सेक्स एजुकेशन पर बनी फिल्म 'एक छोटी सी लव स्टोरी' फिल्म का पोस्टर.
जानवरों की आज़ादी का झंडा बुलंद करने वाली मेनका गांधी इंसानों के बच्चों को हद में बांधे रखने की बात कर रही हैं. उनकी इस बात से कितने ही सवाल ज़हन में आते हैं. जैसे क्या हार्मोनल डिसबैलेंस का ख़तरा किसी ख़ास वक़्त पर ही होता है? दिन के वक़्त नहीं रहता ये ख़तरा? टीन एज में शारीरिक बदलाव आना सहज-स्वाभाविक बात है. अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण भी उतनी ही सहज प्रक्रिया है. ऐसे में ढंग के सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत है ना कि पिंजरे में बंद किए जाने की. बच्चा जब चलने की कोशिश कर रहा होता है, तब उसे गिर कर चोट लगने की संभावना बहुत ज़्यादा होती है. फिर भी हम उसे चलने देते हैं ना!हमारे देश में सेक्स हमेशा से एक टैबू चीज़ रही है. सेक्स से बचो, उसके ज़िक्र से भी बचो यही स्टैण्डर्ड फ़ॉर्मूला है हमारे यहां. कोई हैरानी नहीं कि यौन-कुंठा का प्रतिशत हमारे देश में इतना ज़्यादा है. तमाम पाबंदियां इसी बात को लेकर है कि कहीं एक लड़का-लड़की कुछ कर ना बैठे. एक बेहतर व्यवस्था देने की जगह हमारे तमाम रहनुमा हमें एस्केप रूट ही समझाते रहते हैं.

सेक्स हो जाने का भय, रात में बाहर रुकने से कुछ हो जाने का भय. इन डरों को दिल से निकालने की जगह इन्हें और पक्का करने में ही जुटे हुए हैं सब. ऐसा माहौल तो दूर का सपना है जहां किसी भी वक़्त, लड़का-लड़की किसी को भी, कहीं आते-जाते डर ना लगे. एक खौफ़-रहित समाज का निर्माण तो हमसे क्या ही होगा, टीन एज के बच्चों पर गाइडलाइंस थोप-थोप कर हम उन्हें दहला देते हैं. कोई हैरानी नहीं कि एक सहज मानवीय भावना को हम लगभग एक गुनाह में तब्दील करा चुके हैं.कोई माने या न माने, सोशल मीडिया पर किसी भी मुखर लड़की को रेप की धमकियां देने वाला कुंठित समाज इन्हीं पाबंदियों की देन है.
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