The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Malaal Film Review starring Me...

फिल्म रिव्यू: मलाल

फिल्म से अगर सोसाइटी की दखलअंदाज़ी और पॉलिटिक्स वगैरह को निकाल दें, तो ये खालिस लव स्टोरी है. और वो भी ठीक-ठाक क्वालिटी की.

Advertisement
Img The Lallantop
शर्मिन सेगल और मीज़ान जाफरी स्टारर इस फिल्म को मंगेश हडावले ने डायरेक्ट किया है.
pic
श्वेतांक
5 जुलाई 2019 (Updated: 5 जुलाई 2019, 11:15 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
संजय लीला भंसली अपनी फिल्म (बतौर प्रोड्यूसर) 'मलाल' से दो न्यूकमर्स को लॉन्च कर रहे हैं. ये लोग हैं जावेद जाफरी के बेटे मीज़ान और भंसाली की भांजी शर्मिन सेगल. और इन्हें लॉन्च करने के लिए रॉकेट साउथ से लाया गया है. 'मलाल' 2004 में आई तमिल हिट '7 रेन्बो कॉलोनी' की रीमेक है. हालांकि दोनों ही फिल्मों में काफी अंतर है इसलिए इनकी समानताओं पर भी कम ही बात करेंगे.
फिल्म की कहानी
साल 1998. स्टॉक बिज़नेस में बहुत सारी रकम गंवाने के बाद एक त्रिपाठी परिवार मुंबई के अंबेवाड़ी चॉल में रहने आता है. फैमिली में मम्मी-पापा और आस्था नाम की उनकी बेटी है. उसी चॉल में अपने परिवार के साथ एक लड़का शिवा भी रहता है. इस लड़के का दिल क्लास से ज़्यादा सड़क पर लगता है. मारपीट करता है. दारू पीता है. और पढ़ाई-लिखाई में तो दिलचस्पी है ही नहीं. घर पर बाप परेशान है लेकिन शिवा पर फर्क कुछ नहीं है. शिवा की गुंदागर्दी से इंप्रेस होकर एक (शिव सेना पर बेस्ड) पार्टी के सीनियर इसे अपने यहां बुलाते हैं और समझाते हैं कि ये बाहर वाले लोगों को हटाना है क्योंकि ये उनकी जगह खा रहे हैं. इसके लिए उसे पैसे भी देते हैं. इसका काम चालू हो जाता है. लेकिन जब तक ये काम खुलकर शुरू हो, शिवा को आस्था से प्यार हो जाता है. लेकिन आस्था की फैमिली लड़के की हरकतों को देखते हुए इस रिश्ते के खिलाफ है. इसके बाद पूरी पिक्चर में प्यार-प्यार में ही निकलती है. आपके पास गेस करने को सिर्फ इतना ही बचता है कि इनका प्यार पूरा होता है कि नहीं.
फिल्म 'मलाल' के एक सीन में मिज़ान. मीज़ान जावेद जाफरी के बेटे हैं.
फिल्म 'मलाल' के एक सीन में मिज़ान. मीज़ान जावेद जाफरी के बेटे हैं.

एक्टिंग
फिल्म में शिवा का रोल मीज़ान ने और आस्था का किरदार शर्मिन ने निभाया है. मीज़ान के फिल्मी बैकग्राउंड का असर उनके काम में पॉजिटिव सेंस में नज़र आता है. वो अक्खड़ होने के बावजूद स्क्रीन पर कंफर्टेबल लगते हैं और एक्सप्रेसिव भी. लेकिन शर्मिन के साथ यहीं दिक्कत आती है. वो स्क्रीन पर अखरती तो नहीं है. उनकी शक्ल बहुत इनोसेंट है लेकिन वो अपनी फीलिंग और एक्सप्रेशन को मैच नहीं कर पाती हैं. और ये फिल्म देखने वाले को भी पता चलता है. हालांकि मीज़ान और शर्मिन जब एक साथ होते हैं, तो इनका काम भी बेहतर हो जाता है. इनकी केमिस्ट्री फिल्म की सबसे अच्छी बात है. फिल्म में कई मराठी एक्टर्स ने काम किया है, जिनका नाम शायद हमने नहीं सुना. और वो सारे लोग अपने रोल में पिच परफेक्ट हैं. शिवा के आई-बाबा का रोल करने वाले दोनों ही एक्टर्स का काम वाकई शानदार है. उनके काम में कोई एफर्ट नहीं दिखाई देता है.
फिल्म के एक सीन में शर्मिन सेगल. शर्मिन संजय लीला भंसाली की भांजी हैं.
फिल्म के एक सीन में शर्मिन सेगल. शर्मिन संजय लीला भंसाली की भांजी हैं.

फिल्म का म्यूज़िक
'मलाल' महाराष्ट्र में घटती है. अगर आपको ये पता न भी हो, तो आप फिल्म का म्यूज़िक सुनकर ये बात समझ जाएंगे. अधिकतर गानों के हुकलाइन मराठी भाषा में हैं. लेकिन टच हिंदी म्यूज़िक वाला है. मसाला आइटम नंबर से लेकर होली-दीवाली में बजाए जा सकने वाले 'उढ़ल हो' और 'नाद खुला'. साथ में हारे हुए आशिकों के लिए 'दरिया' (मनमर्ज़िया) और 'बेखयाली' (कबीर सिंह) के बाद 'एक मलाल' नाम का भी गाना है. सुंदर बात है कि आप इन गानों से बोर नहीं होते क्योंकि इनमें भी एक कहानी चलती रहती है. और गानों के साथ ही खत्म हो जाती है. बैकग्राउंड म्यूज़िक काफी सॉफ्ट है. मराठी फिल्मों और म्यूज़िक के बारे में ज़्यादा न जानते हुए भी आपको इन धुनों के साथ एक कनेक्शन फील होता है. और ये होता ही रहता है. इस फिल्म का म्यूज़िक थोड़ा-थोड़ा 'काय पो छे' से मिलता है. फिल्म का गाना 'एक मलाल' आप नीचे सुन सकते हैं:

कैमरावर्क
फिल्म का आर्ट डिपार्टमेंट ठीक लगता है. ये फिल्म 90 के दशक में बेस्ड है. गुज़रते समय को दिखाने के लिए शुरुआत में 'टाइटैनिक' और फिर 'हम दिल दे चुके सनम' जैसी फिल्मों के पोस्टर्स बस स्टैंड पर दिखाए जाते हैं. इससे आपको ये पता चलता है कि कहानी आगे बढ़ रही है. साथ में कैमरा त्यौहार वाले सीन्स में और इंटरवल से ठीक पहले घटने वाले सीन्स को बिलकुल फीलिंग के साथ कैप्चर करता है. हालांकि जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है, उसकी रफ्तार घटती चली जाती है. एक दौर आता है, जब जनता फिल्म की स्पीड से हार मानने लगती है, तभी क्लाइमैक्स शुरू हो जाता है. जो काफी शॉकिंग होने के बावजूद धीरे से लगता है.
 ये फिल्म संजय लीला भंसाली मार्का भव्य तो नहीं है लेकिन सुंदर है.
ये फिल्म संजय लीला भंसाली मार्का भव्य तो नहीं है लेकिन सुंदर है.

दिक्कत कहां है?
दिक्कत ये है कि फिल्म की शुरुआत में ही एक रेलेवेंट पॉलिटिकल मुद्दे को उठाया जाता है. शिव सेना का नॉर्थ इंडियन लोगों को महाराष्ट्र से खदेड़ने की बात होती है. और जिस समय में होती है, तो आपको लगता है कि आगे कहानी में ये चीज़ एक इंपॉर्टेंट रोल प्ले करेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि लड़का मराठी था और लड़की नॉर्थ से. उम्मीद रहती है कि लव स्टोरी में इस मुद्दे को उठाकर फिल्म अपनी प्रासंगिकता बनाए रखेगी. लेकिन आगे इस बात का कहीं कोई ज़िक्र नहीं आता. ये चीज़ सबसे ज़्यादा निराश करती है. आप किसी मसले को अपनी फिल्म में उठा रहे, तो उससे डील करिए.
फिल्म के एक सीन में मीज़ान और शर्मिन. इनकी केमिस्ट्री फिल्म की जान है.
फिल्म के एक सीन में मीज़ान और शर्मिन. इनकी केमिस्ट्री फिल्म की जान है.

ओवरऑल
'मलाल' पहली नज़र में एक टीन लव स्टोरी लगती है. और ये एक्चुअली है भी वही. फिल्म से अगर सोसाइटी की दखलअंदाज़ी और पॉलिटिक्स वगैरह को निकाल दें, तो ये खालिस लव स्टोरी है. और वो भी ठीक-ठाक क्वालिटी की. क्योंकि ये आपको बोर नहीं करती है. कहीं ज़्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश नहीं करती. वो जो कहना चाहती है, उसमें क्लैरिटी की कमी नज़र आती है. कुछ ऐसा नहीं दिखाती, जिससे आपका या फिल्म देखने वाले किसी का भी किसी भी स्तर पर कोई नुकसान हो. समय थोड़ा ज़्यादा लेती है लेकिन मलाल जैसा कुछ छोड़कर नहीं जाती.


'कबीर सिंह' फिल्म रिव्यू: 

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement