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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज लोकुर ने कहा, जबरन धर्मांतरण पर यूपी का क़ानून लोगों की आजादी के खिलाफ़ है

UAPA और दिल्ली दंगों पर जस्टिस लोकुर ने क्या कहा?

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सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड रहे मदन बी. लोकुर ने पीएम केयर्स फंड में अपारदर्शिता के आरोप लगाए हैं.
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सिद्धांत मोहन
2 दिसंबर 2020 (Updated: 2 दिसंबर 2020, 10:33 AM IST) कॉमेंट्स
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जस्टिस मदन लोकुर. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज. उन्होंने यूपी सरकार के नए जबरन धर्मांतरण विरोधी कानून की जमकर आलोचना की है. जस्टिस लोकुर ने कहा कि ये क़ानून लोगों के अपनी पसंद से चुनने के अधिकार और उनके आत्मसम्मान को अंतिम वरीयता पर रखता है. जस्टिस लोकुर फ़िलहाल फ़िजी के सुप्रीम कोर्ट में जज की भूमिका अदा कर रहे हैं. उन्होंने सातवें सुनील स्मृति व्याख्यान के समय ये बातें कहीं. उन्होंने कहा,
“मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और असम ने भी यूपी की तरह क़ानून बनाने की बात कही है. इस क़ानून का मक़सद कथित तौर पर लव जिहाद को रोकना है. हालांकि अभी लव जिहाद की कोई परिभाषा नहीं है, लेकिन एक मुख्यमंत्री ने कहा है कि ये वो प्रैक्टिस है, जिसके तहत जिहादी अपना नाम और पहचान छिपाकर हमारी बहनों और बेटियों के आत्मसम्मान के साथ खेलते हैं. एक और मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर जिहादी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आए, तो इसे वो अपनी क़ब्र तक के सफ़र का पहला क़दम मानें.”
जस्टिस लोकुर ने आगे कहा,
“ये मॉब लिंचिंग के ट्रेंड का फिर से बढ़ने का उदाहरण है. चुनने की स्वतंत्रता का क्या हुआ? बाल विवाह जो कि बलपूर्वक कराया गया विवाह है, उस पर जंग क्यों नहीं छेड़ी जाती है?”
जस्टिस लोकुर ने दूसरे मुद्दों पर भी अपनी राय रखी. उन्होंने कहा,
“अगर विचारों में मतभेद है तो इसे राजद्रोह की श्रेणी में डाल दिया जाता है. और अब ऐसे लोगों पर UAPA का इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने आशंका जतायी कि आने वाले समय में लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगा दिया जाएगा. अधिकार डर में बदल जायेंगे.”
जस्टिस लोकुर ने पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन का उदाहरण दिया. हाल ही में कप्पन को हाथरस जाते वक़्त यूपी पुलिस द्वारा CrPC 107/151 के तहत हिरासत में ले लिया गया था. लोकुर ने कहा,
“असल में तो कप्पन को निजी मुचलके पर और अच्छे व्यवहार के कारण तुरंत रिहा कर दिया जाना चाहिए था. उन्हें वक़ील से मिलने तक का समय नहीं दिया गया. और जब उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, तो उन्हें तुरंत न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इसके बाद उन पर राजद्रोह और UAPA के तहत केस दर्ज कर दिया गया. केरल के पत्रकारों की यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की. दी हिंदू और कई लॉ से जुड़ी वेबसाइट ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई न करने पर अड़ा हुआ था…. बाद में यूनियन को याचिका बदलने की छूट दी गयी और चार हफ़्तों के लिए मामला टाल दिया गया.”
जस्टिस लोकुर ने भीमा कोरेगांव केस में अरेस्ट किए गए फ़ादर स्टैन स्वामी और कवि वरवरा राव की हालत का भी ज़िक्र किया. उमर ख़ालिद के खिलाफ़ दिल्ली पुलिस द्वारा जमा की गई 17 हज़ार पेज की चार्जशीट का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा कि जब आरोपी को चार्जशीट की कॉपी देने की बात थी, तो वो कहने लगे कि हार्डकॉपी और सॉफ़्टकॉपी में कोई अंतर नहीं है. पूरा वक्तव्य यहां सुना जा सकता है :

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