हनुमान जी का लिंग दिखाने वाली फिल्म को सेंसर ने रोका
फिल्म के न्यू यॉर्क बेस्ड निर्देशक CBFC के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे.
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फिल्म का हनुमान वाला संबंधित पोस्टर.
जयन चेरियन न्यू यॉर्क में रहते हैं. दस साल से फिल्में बना रहे हैं. महत्वपूर्ण विमर्शों को आगे बढ़ाने वाली कई प्रयोगधर्मी डॉक्यूमेंट्री फिल्में उन्होंने बनाईं हैं. उनकी पहली फीचर फिल्म पापिलियो बुद्ध थी जिसे 2014 में बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शन के लिए चुना गया था. ये विस्थापित अछूत लोगों के ऐसे समूह की कहानी थी जो जाति व्यवस्था के अत्याचार से तंग आकर बुद्ध धर्म अपना लेते हैं.
मलयालम भाषा की ये फिल्म केरल के कालीकट में रहने वाले तीन पात्रों के इर्द-गिर्द बुनी गई है. पहला है हैरिस जो एक संघर्षरत पेंटर है. दूसरा है विष्णु जो उसका प्रेमी है. वह एक दक्षिणपंथी परिवार से ताल्लुक रखता है. तीसरा किरदार ज़िया का है जो फैक्ट्री में काम करने वाली लड़की है. चेरियन के मुताबिक ये फिल्म लोगों के ऐसे समूह के बारे में है जो राजनैतिक प्रतिरोध के लिए अपने-अपने शरीर को औजार बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं. फिल्म में समान जेंडर के लोगों के बीच प्रेम और रजोवृत्ति पर बात करने की वर्जनाओं पर बात की गई है.उनकी दूसरी फीचर है का बॉडीस्केप्स.

फिल्म का पोस्टर.
का बॉडीस्केप्स को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) पास नहीं कर रहा. अप्रैल में तिरुवनंतपुरम (केरल) स्थित क्षेत्रीय परीक्षण समिति ने इसे सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया. अब रिवाइजिंग कमिटी ने भी इसे पास नहीं किया है. क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. प्रतिभा ए. ने निर्माता-निर्देशक को भेजे पत्र में इसकी वजह बताई हैं. उन्होंने लिखा है:
रिवाइज़िंग कमिटी ने महसूस किया कि इस मलयालम फ़िल्म का बॉडीस्केप्स
की पूरी विषय-वस्तु हिंदु धर्म का उपहास उड़ाने वाली, अपमानजनक और ज़लील करने वाली है. खासतौर पर हिंदु देवताओं को इसमें बुरे तरीके से चित्रित किया गया है. महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्द उपयोग किए गए हैं. हिंदु देवता हनुमान को आई एम गे
और ऐसी अन्य समलैंगिक किताबों में दिखाया गया है. फिल्म में हस्तमैथुन करती औरत का जिक्र भी है, इसमें कई गे पोस्टर्स के जरिए समलैंगिक को उभारा गया है. अश्लीलता और भ्रष्टता के जरिए यह फिल्म मानव अनुभूति को चोट पहुंचाती है. चूंकि फिल्म कई दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करती है इसलिए इसे सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता है.


फिल्म के दृश्य.
ट्रेलर में दो सीन हैं जो आम दर्शकों को उत्तेजित कर सकते हैं.
एक में प्रदर्शनरत महिलाएं हैं और उनमें से एक अपने कंधे पर एक बैनर लहराए जा रही है जिस पर योनि और उसमें से निकलता ख़ून चित्रित है.
दूसरे में एक पेंटिंग है जिसमें हनुमान जी उड़ रहे हैं और उनका लिंग उत्तेजित है. उनके हाथ में संजीवनी बूटी वाले पर्वत के स्थान पर किताबें हैं जो धारा 377, LGBTQ और समलैंगिक साहित्य वाली हैं. इसी पेंटिंग में गाय भी नजर आती है जिसका संदर्भ देश की हालिया घटनाओं की ओर जाता है जहां गाय का मांस रखने के नाम पर लोगों को मारा जा रहा है. मारने वाले कुछ चरम राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी लोग हैं. इसी पेंटिंग में वे भी नजर आते हैं.
रिवाइजिंग कमिटी ने फिल्म में कथित तौर पर 56 कट लगाने के लिए कहा था. इससे चेरियन ने इनकार कर दिया. उन्होंने सेंसर बोर्ड को स्त्रियों से द्वेष रखने वाला और समलैंगिकों के प्रति घोर पूर्वाग्रह पालने वाला कहा. वे फिल्म को अपील ट्रिब्यूनल के समक्ष लेकर गए. CBFC में इसे सबसे प्रगतिशील संस्था माना जाता है. यहां बोला गया कि फिल्म में से डॉ. बी. आर. अंबेडकर की कही बातों को म्यूट कर दिया जाए.

लेखक-निर्माता-निर्देशक चेरियन एक फिल्म फेस्टिवल के सत्र में.
केरल में बोर्ड की क्षेत्रीय अधिकारी का बर्ताव वैसा ही है जैसा उड़ता पंजाब के समय मुंबई में पहलाज निहलानी का दिखा जो बोर्ड के राष्ट्रीय चेयरमैन हैं. और दोनों पहले घोर अश्लील फिल्में पास कर चुके हैं और जहां विचारधारा के लिहाज से कंटेंट उन्हें नहीं सुहाता उन्हें वे पास नहीं करते.
जैसे प्रतिभा ने कहा कि का बॉडीस्केप्स महिला विरोधी है, दर्शकों की संवेदनाओं का अपमान करती है. इन्हीं प्रतिभा ने कमर्शियल मलयाली सिनेमा के सुपरस्टार ममूटी की फिल्म कासाबा को यू/ए सर्टिफिकेट देकर पास किया था जबकि इस फिल्म में ऐसे-ऐसे भौंडे, द्विअर्थी और अश्लील संवाद हैं जिन्हें बच्चों के साथ नहीं देखा जा सकता. इसमें महिलाओं का भी घोर अपमान किया गया है. लेकिन फिर भी इसे ए सर्टिफिकेट नहीं दिया गया या फिर उड़ता पंजाब/का बॉडीस्केप्स की तर्ज पर सर्टिफिकेट देने से मना नहीं किया गया.
एक दर्शक इस शिकायत को लेकर हाई कोर्ट चला गया था जिस पर हाई कोर्ट ने सीबीएफसी के अधिकारियों से जवाब मांगा.
एक इंटरव्यू में भी प्रतिभा ने सहूलियत से उन्हीं तर्कों को बदलते हुए कहा कि "फिल्म में ऐसे विशेष दृश्य थे जो एक जेंडर विशेष की भावनाएं आहत करते हैं लेकिन हम दिशा निर्देशों के विरूद्ध फिल्म निर्माता को ऐसे सीन काटने के लिए नहीं कह सकते. हम सिर्फ दृश्यों पर नजर रखते हैं. संवादों में सिर्फ गालियां ही म्यूट करते हैं पूरी लाइन नहीं. इससे सीन का मूलभूत अर्थ बदल सकता है."

फिल्म कासाबा के दृश्य में ममूटी.
ये वही CBFC की अधिकारी हैं जिन्होंने का बॉडीस्केप्स को रोकने के लिए इन्हीं तर्कों का इस्तेमाल किया. इसमें जो दिखाया गया है वो समाज की सच्चाई है लेकिन फिर भी बैन कर दिया. वहीं ममूटी की फिल्म के अश्लील और डबल मीनिंग डायलॉग पर सवाल पूछा गया तो कहा, "सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है और ऐसी भाषा हमारे समाज की सच्चाई है."
उन्होंने चेरियन को भेजे पत्र में लिखा कि का बॉडीस्केप्सइससे पहले इसी सेंसर बोर्ड ने 2015 में मलयालम फिल्म द पेंटेड हाउस को पास करने से मना कर दिया था. इसमें न्यूड सीन थे. बोर्ड ने इन्हें काटने को कहा जिससे निर्देशकों ने इनकार कर दिया. ऐसे में फिल्म को रोक दिया गया. इस पर केरल हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए बोर्ड को कहा था कि 15 दिन में फिल्म को पास करे.
में महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्द यूज़ किए गए. लेकिन उन्हें नहीं पता कि फिल्म में कई सोशल एक्टिविस्ट और नारीवादियों ने अभिनय किया है. ममूटी की फिल्म में महिलाओं के अपमान को साफ-सुथरा सर्टिफिकेट देते वक्त उनकी आंखें बंद थीं!
https://www.youtube.com/watch?v=LvrQyOpPDDUका बॉडीस्केप्स के निर्देशक जयन चेरियन भी अब केरल हाई कोर्ट जा रहे हैं.