इस एक्टर ने फिल्म देखने गई फैमिली को सिनेमाघर में हैरस किया, वो भी गलत वजह से
इतनी बद्तमीजी करने के बावजूद ये लोग थिएटर में 'भारत माता की जय' का जयकारा लगा रहे थे.
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अरुण गौड़ा को इससे पहले मई 2017 में इल्लीगल तरीके से हुक्का बार चलाने के लिए कर्नाटक पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. दूसरी तस्वीर में सिनेमाघर में परिवार के साथ बद्सलूकी कर वीडियो बनाते अरुण.
इस वीडियो में अरुण ये कहते सुने जा रहे हैं कि वो उस परिवार के खिलाफ केस करेंगे कि वो लोग नेशनल एंथम के लिए खड़े नहीं हुए. इसके बाद उनके दोस्त या थिएटर में आया एक दूसरा शख्स कहता है कि तीन घंटे की पिक्चर देख सकते हैं लेकिन देश के लिए 52 सेकंड के लिए खड़े नहीं हो सकते. इसी बीच एक व्यक्ति 'भारत माता की जय' का जयकारा लगाता और पूरा थिएटर उसके साथ इस वाक्य को दोहराता है. कुछ लोग इसी वीडियो में उस परिवार की इस हरकत पर शर्मिंदा होने की बात कह रहे हैं, तो कुछ उन्हें पाकिस्तानी टेररिस्ट कह रहे हैं. वहीं जिसे ये सब कहा जा रहा है, वो महिला बस इतना कह रही है कि ये पिक्चर ही तो है, इसमें इतना हंगामा करना. बाद में इन लोगों ने थिएटर वालों से शिकायत कर इस परिवार को सिनेमाहॉल से बाहर निकलवा दिया. आप वो पहले वो वीडियो देखिए:
नवंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने हर फिल्म थिएटर में किसी भी फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले नेशनल एंथम बजाना मैंडेटरी यानी अनिवार्य कर दिया था. इस फैसले की जनता से लेकर तमाम एक्सपर्ट लोगों ने खूब आलोचना की. इसे गैर-ज़रूरी बताया गया. पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने जनवरी 2018 में इस फैसले को बदल दिया. ये निर्णय थिएटर्स के ऊपर छोड़ दिया गया कि वो नेशनल एंथन बजाना चाहते हैं, तो बजाएं. पाबंदी जैसी कोई चीज़ नहीं है. अपने इस फैसले में इस बेंच ने कहा था-Commies in Theatre refused to stand during National Anthem and questioned why should we stand.
This is how they were shown door by proud Nationalists. pic.twitter.com/ltah1CW4JP
— Dr Aishwarya S (@Aish17aer) October 28, 2019
''नागरिकों को देशभक्ति दिखाने के लिए उनसे साथ जोर-जबरदस्ती नहीं की जा सकती. न ही कोर्ट अपने ऑर्डर से किसी के भीतर देशभक्ति की भावना बैठा सकती है. अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए लोगों को सिनेमाहॉल में खड़े होने की कोई ज़रूरत नहीं. ''अब अंग्रेजी में भी शब्दश: पढ़िए और कंठस्थ कर लीजिए:
“Citizens cannot be forced to carry patriotism on their sleeves and courts cannot inculcate patriotism among people through its order. People do not need to stand up at a cinema hall to be perceived as patriotic.''सिनेमाघरों में देशभक्ति के नाम पर होने वाली ये पहली घटना नहीं है. 21 अगस्त, 2017 को हैदराबाद में जम्मू कश्मीर से आए कुछ छात्रों से मारपीट के बाद राष्ट्रगान का अपमान करने के मामले में पुलिस केस कर दिया गया. 2 अक्टूबर, 2017 में गुवाहाटी के एक थिएटर में सेलेब्रल पाल्सी नाम की बीमारी से जूझने वाले सोशल एक्टिविस्ट अरमान अली को राष्ट्रगान के दौरान व्हील चेयर से न उठने के लिए हैरस किया गया. मई 2019 में बैंगलोर के ही गरुण मॉल में एक 29 साल के साउंड इंजीनियर से मारपीट कर उसे देशद्रोही घोषित कर दिया गया. फिलहाल देशभक्ति के नाम पर यही सब यानी कुछ भी चल रहा है.

कन्नड़ा भाषा की फिल्म 'मुड्डु मनसे' के एक सीन में अरुण गौड़ा. अरुण ने अब तक कुल 2-3 फिल्मों में काम किया है.
लीगल तौर पर जनता के ऊपर से सिनेमाघरों में नेशनल एंथन के बजने पर खड़े होने की पाबंदी हटाई जा चुकी है. ये सोचकर कि देशभक्ति कोई दिखाने वाली चीज़ नहीं है. ऐसे में अरुण गौड़ा जैसे लोगों को ये हक किसने दे दिया कि ये जिसे चाहें देशभक्ति के नाम पर हड़का सकते हैं. किसी भी फैमिली को बुली कर सकते हैं. अगर उन्हें लगता है कि नेशनल एंथन या राष्ट्रगान पर खड़ा होना चाहिए. तो वो खुद खड़े हो जाएं. अपना राष्ट्रवाद दूसरों पर थोपने का मतलब क्या है. ये देशभक्ति है या लाइसेंस जिसके नाम पर आप किसी से भी बद्तमीजी या बदलसलूकी कर सकते हैं.
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