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जम्मू में एक साल रह लिया तो वोट देने का अधिकार मिलेगा, नए नियम पर भड़के मुफ़्ती और अब्दुल्ला!

PDP अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यह जम्मू को 'उपनिवेश' बनाने का प्रोजेक्ट है.

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Jammu Voters Mehbooba Mufti Farooq Abdullah
सांकेतिक तस्वीर (क्रेडिट- इंडिया टुडे)
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साकेत आनंद
12 अक्तूबर 2022 (Updated: 12 अक्तूबर 2022, 11:32 PM IST) कॉमेंट्स
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जम्मू में एक साल से ज्यादा समय से रह रहे लोग अब वहां वोट डाल पाएंगे. यानी जम्मू में रहने वाले गैर-स्थानीय लोग भी वोटर के रूप में रजिस्टर होंगे. जम्मू प्रशासन ने 11 अक्टूबर को एक लेटर जारी किया. इसमें तहसीलदारों और राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे ऐसे लोगों को जरूरी वेरिफिकेशन के बाद आवासीय प्रमाण पत्र जारी करें. ये आदेश जम्मू-कश्मीर में जारी मतदाता सूची में 'विशेष संशोधन' के तहत जारी हुआ है.

जम्मू की उपायुक्त और जिला चुनाव अधिकारी अवनी लवासा ने आदेश में कहा है कि कुछ योग्य वोटर्स को रजिस्ट्रेशन कराने में दिक्कतें आ रही हैं. मामले में देरी नहीं की जा सकती है, इसलिए एक साल से अधिक समय तक जम्मू में रह रहे लोगों को आवासीय प्रमाण पत्र जारी करें.

Mehbooba Mufti और Farooq Abdullah का बड़ा आरोप!

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों ने इस फैसले का विरोध किया है. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने इसे भारत सरकार का "औपनिवेशिक प्रोजक्ट" बता दिया है. मुफ्ती ने ट्विटर पर लिखा, 

"नए वोटर्स के रजिस्ट्रेशन के लिए चुनाव आयोग के हालिया आदेश से साफ है कि जम्मू में भारत सरकार का औपनिवेशिक प्रोजेक्ट शुरू हो चुका है. वे डोगरा संस्कृति, पहचान, रोजगार और बिजनेस को नुकसान पहुंचाएंगे."

एक और ट्वीट में महबूबा मुफ्ती ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए लिखा, 

"जम्मू-कश्मीर में धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर बीजेपी की बांटने की कोशिश का विरोध करना चाहिए. क्योंकि चाहे वह कश्मीरी हो या डोगरा, हम अपनी पहचान और अधिकारों को तभी बचा पाएंगे, जब साथ मिलकर लड़ेंगे."

वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने कहा कि सरकार जम्मू-कश्मीर में 25 लाख गैर-स्थानीय वोटर्स को जोड़ने के अपने प्लान के साथ आगे बढ़ रही है. पार्टी ने कहा कि वह इसका विरोध करती रहेगी. बीजेपी चुनाव से डर रही है और जानती है कि वह बुरी तरह हारेगी. जम्मू-कश्मीर के लोगों को इन साजिशों को चुनाव के दौरान हराना चाहिए.

जिनके पास डॉक्यूमेंटस नहीं, उन्हें भी करेंगे शामिल

जम्मू डीसी द्वारा जारी लेटर के मुताबिक, चुनाव आयोग के निर्देशों के तहत आवासीय प्रमाण पत्र के रूप में इन डॉक्यूमेंट्स को स्वीकार किया जा सकता है...

1. पानी/बिजली/गैस कनेक्शन का बिल, जो एक साल तक के हों
2. आधार कार्ड
3. राष्ट्रीय बैंक या पोस्ट ऑफिस का खाता
4. भारतीय पासपोर्ट
5. राजस्व विभाग से मिला जमीन का रिकॉर्ड
6. रेंट एग्रीमेंट (अगर किराएदार हैं)
7. घर के कागजात

गाइडलाइंस के तहत नए वोटर्स के रजिस्ट्रेशन के लिए इन सबके अलावा दूसरे आवासीय प्रमाण भी स्वीकार किए जा सकते हैं. अगर इनमें से कोई डॉक्यूमेंट्स नहीं हैं तो फील्ड वेरिफिकेशन अनिवार्य होगा. उदाहरण के लिए, बेघर भारतीय नागरिक जो वोटर बनने के योग्य हैं लेकिन उनके पास कोई डॉक्यूमेंट्स नहीं हैं तो चुनाव कार्यालय फील्ड वेरिफिकेशन के लिए एक अधिकारी को नियुक्त करेगा.

क्या पहले बाहरी वोट नहीं देते थे?

अगस्त 2019 में आर्टिकल-370 खत्म किए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर केंद्र के नियंत्रण में है. सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग केंद्रशासित प्रदेश बना दिया था. लंबे समय से सरकार जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवाने की बात कर रही है. सरकार ने परिसीमन भी करवाया. परिसीमन आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई. इनमें से 43 सीटें जम्मू और 47 कश्मीर के हिस्से आती हैं.

आर्टिकल-370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था. वहां जम्मू-कश्मीर जन प्रतिनिधित्व कानून-1957 के तहत मतदाता सूची बनती थी. इसके तहत विधानसभा चुनाव में सिर्फ जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नागरिकों को ही वोट देने का अधिकार था. 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में भी केंद्र का जन प्रतिनिधित्व कानून हो गया.

हालांकि पहले भी बाहर के रह रहे लोगों को वोटिंग का अधिकार था. उन्हें नॉन-परमानेंट रेसिडेंट (NPR) वोटर्स में गिना जाता था. एनपीआर वोटर्स सिर्फ लोकसभा चुनाव में वोटिंग कर सकते थे. 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान इनकी संख्या करीब 32 हजार थी.

25 लाख वोटर्स बढ़ने की संभावना

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान जम्मू-कश्मीर में कुल रजिस्टर्ड वोटर्स 78.4 लाख थे. इसमें लद्दाख भी शामिल था. लद्दाख को हटाकर यह संख्या 76 लाख 70 हजार के करीब हो जाती है. वहीं मतदाता सूची में जारी संशोधन से 25 लाख वोटर्स बढ़ने की संभावना है.

अगस्त में जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी हृदेश कुमार ने घोषणा की थी कि बाहर से आए लोग भी केंद्रशासित प्रदेश के चुनावों में वोट डाल सकेंगे. हालांकि उस वक्त एक साल तक रहने वाले लोगों का जिक्र नहीं किया गया था. उस वक्त कहा गया था कि गैर स्थानीय लोगों के लिस्ट में शामिल होने की एकमात्र शर्त ये है कि उन्हें अपने राज्य की वोटर लिस्ट से अपना नाम हटवाना होगा.

राजनीतिक दलों उस दौरान भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया था. महबूबा मुफ्ती ने तब कहा था कि गैर स्थानीय लोगों को अनुमति देना साफ तौर पर चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की कोशिश है. वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि क्या बीजेपी जम्मू-कश्मीर के असली मतदाताओं से इतनी घबराई हुई है कि उसे सीटें जीतने के लिए अस्थायी वोटरों को इम्पोर्ट करने की जरूरत पड़ गई?

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