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गायों के पेट से निकले ढक्कन, सिक्के, सेफ्टी पिन और पत्थर

क्या है हिंगोनिया गौशाला की हकीकत. जिसको लेकर पॉलिटिक्स हो रही है.

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जागृतिक जग्गू
16 अगस्त 2016 (Updated: 16 अगस्त 2016, 10:57 AM IST) कॉमेंट्स
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राजस्थान के हिंगोनिया गौशाला में रोजाना गायें लाई जा रही हैं. बीमार, अधमरी और मरी हुई हालत में. यहां उनका इलाज किया जा रहा है. पिछले दिनों लाई गई गायों की हालत कुछ ज्यादा ही खराब थी. सर्जरी करनी पड़ी. पता है उनके पेट से क्या निकला ?  कोल्ड ड्रिंक के ढक्कन, कीलें, सिक्के, सेफ्टी पिन, पत्थर और मंदिरों का कचरा निकाला गया है गायों के पेट से. राजस्थान के जयपुर से 50 किलोमीटर की दूरी पर है हिंगोनिया गौशाला. पॉलिटिक्स करने के लिए आजकल पॉलिटिशियन्स का नया अड्डा बन गई है. बीते दिनों बहुत संख्या में गायों के मरने की खबर थी. एक सर्जरी ऐसी हुई थी जिसमें गाय के पेट से कूड़ा काट-काट कर निकालना पड़ा था. गौशाला की देख-रेख जयपुर म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन करता है. पिछले कुछ हफ्तों में गौशाला की कई गायें भूख और गंदगी से मर गईं. लेकिन उसके आस-पास घूम रहे आवारा पशु जैसे भेड़ यहां तक की ऊंट वो बिल्कुल हेल्दी थे. जिस बारिश के पानी के चलते गौशाला के अंदर के जानवर बीमार पड़े, उस पानी से बाहर घूम रहे जानवरों को कुछ नहीं हुआ. मैनेजमेंट और डॉक्टरों का मानना है कि जो गायें गौशाला में लाई गई थी उनकी हालत बहुत खराब थी. गौशाला के इस बदतर हालात के जिम्मेदार वहां के वर्कर हैं जो कांट्रेक्ट बेसिस पर काम करते हैं. JMC ने उन्हें पैसे नहीं दिए थे. जिससे वो नाराज हो गए और स्ट्राइक पर चले गए थे. भारी बारिश और साफ-सफाई के अभाव में गौशाला पूल बन गया. हिंगोनिया गौशाला साल 2000 में बनी. इसकी जिम्मेदारी एक तो जयपुर म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन और दूसरा एनिमल हसबैंड्री के कंधे पर है. म्यूनिसिपल गौशाला की साफ-सफाई से लेकर बाकी दूसरी चीजों का ख्याल रखता है. वहीं एनिमल हसबैंड्री हेल्थ से रिलेटेड मसले देखता है.

'हिंगोनिया एक गौशाला नहीं है'

कांग्रेस और आरएसएस की ओर से चलाए जा रहे हिंदू संगठन ने इस मसले को लेकर सरकार पर हमला किया है. जिसके जवाब में सरकार ने कहा है कि ये पहले गौशाला नहीं है. JMC के एडिशनल कमिशनर राकेश शर्मा ने कहा, ये गौशाला नहीं रीहैब सेंटर है. जो बीमार गायों का इलाज करता है. पिछले कुछ दिनों से हम जान लगाकर काम कर रहे हैं. इसके लिए हमने और भी लोगों को जिम्मेदारी सौंपी है. मैं खुद यहां पिछले आठ दिनों से हूं. हम सब ने मिलकर पूरी गौशाला को साफ किया है.
राकेश के मुताबिक गायों की मरने की संख्या पहले से कम हुई है. पिछले हफ्ते 65 गायें मरी थीं. लेकिन गुरुवार को केवल 34 गायें ही मरी हैं. हिंगोनिया गौशाला में इलाज के लिए आवारा और पालतू दोनों जानवर लाए जाते हैं. इसमें 24 शेड्स हैं. जिसमें 8 हजार गायें रहती हैं. शेड नंबर 3 गौशाले का ICU है. इसके अलावा गौशाला में एक-एक बायोगैस प्लांट, हॉस्पिटल, ओपीडी, लेबर रूम और 34 पोस्ट ऑपरेशन वार्ड हैं.

'सारे जानवरों का जल्द से जल्द इलाज मुमकिन नहीं'

डॉक्टर पी सी कनखेड़िया जानवरों के डॉक्टर हैं और गौशाला अस्पताल के डेप्यूटी डायरेक्टर भी. साल 2002 से पहले मवेशियों का डेथ रेट 14 परसेंट था. गौशाला बनने के बाद इसमें गिरावट आई. लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में ये फिर से बढ़ा है. डॉक्टर कनखेड़िया कहते हैं, पशु सुरक्षा के लिए ऐसी जगहों पर 5 हजार गायों पर एक डॉक्टर होता है. लेकिन हिंगोनिया में 8 हजार जानवरों के लिए 17 डॉक्टर और 61 सपोर्टिंग स्टाफ मौजूद हैं. लेकिन ये उम्मीद करना की सारे जानवरों का इलाज जल्द से जल्द हो, ये मुमकिन नहीं है. उनका कहना है कि JMC के लोगों ने उन्हें एक दिन में 10 गायों का ऑपरेशन करने को कहा. लेकिन ये संभव नहीं है. क्योंकि एक गाय की सर्जरी में पूरे 4 घंटे लगते हैं. ज्यादा से ज्यादा 4 गायों की सर्जरी मुमकिन है. देखा जाए तो गौशाला में 34 पोस्ट ऑपरेशन वार्ड हैं. अगर 10 सर्जरी एक दिन में हो भी जाए तो उन्हें रखेंगे कहां. इस समस्या के बाद भी डॉक्टर्स 99 पर्सेंट जानवरों को बचाने में सफल रहे हैं जिनकी सर्जरी की गई थी.

80 पर्सेंट गायों में खून की कमी

50 को खोने से अच्छा है कि उनमें से 10 को बचाया जाए. डॉक्टर कनखेड़िया ने कहा, गाय सुरक्षा को लेकर लोग फालतू की बकवास करते हैं. लेकिन ये नहीं देखते कि वो अपने घर के कचरे में क्या फेंक रहे हैं. जितनी गायें गौशाला में लाई गई हैं उनमें से 80 पर्सेंट में खून की कमी है. पेट प्लास्टिक से भरा पड़ा है.

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