क्या भारत पाकिस्तान में दोस्ती होने वाली है?
मई में हो रहा है शांघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन SCO का शिखर सम्मेलन.

पाकिस्तान चले जाओ. भारत में ये सलाह किसे और क्यों दी जाती है, इसमें हम आज एक बार फिर अपना वक्त नहीं खपाएंगे. 2014 में भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने कहा था कि जो मोदी विरोधी हैं, वो पाकिस्तान चले जाएं. और अक्टूबर 2022 में गुगली फेंकते हुए आम आदमी पार्टी नेता नरेश बालयान ने BJP से ही कह दिया कि अगर गणेश जी, लक्ष्मी जी से दिक्कत है, तो पाकिस्तान चले जाएं.
प्रायः भारत में लोग पाकिस्तान ''भेजे'' ही जाते हैं. वहां से लोग बुलाए नहीं जाते हैं. लेकिन मोदी सरकार ने मुहावरा जैसे पलट दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर की ओर से पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को भारत आने का न्योता भेजा गया है. क्योंकि मई में हो रहा है शांघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन SCO का शिखर सम्मेलन.
ये बड़ी सामान्य सी बात है कि सम्मेलन में जब सारे सदस्यों को बुलाया जा रहा है, तो पाकिस्तान को भी बुलाया जा रहा है. ये वैसा ही है कि शादी में कार्ड सारे ही रिश्तेदारों को दिया जाता है. लेकिन अगर 12 सालों में पहली बार पाकिस्तान के विदेश मंत्री के भारत आने की गुंजाइश बने, तो इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता. खासकर तब, जब कुछ ही दिनों पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ भी भारत के साथ शांति की बात कर चुके हैं. तो बिलावल को भेजे न्योते में SCO वाली औपचारिकता से परे क्या देखा जा सकता है? क्या अब वो बर्फ पिघलेगी, जो पुलवामा हमले के वक्त जमी थी? इन्हीं सारे सवालों के जवाब देंगे.
भारत सरकार का सबसे बड़ा औपचारिक कार्यक्रम होता है गणतंत्र दिवस समारोह. सेना तो परेड करती ही है. साथ में सरकार का हर विभाग लंबी चौड़ी तैयारी करता है. क्योंकि 26 जनवरी के रोज़ समारोह में कोई कमी बर्दाश्त नहीं की जाती. 25 जनवरी की शाम तक सारी तैयारी पूरी कर ली जाती है क्योंकि तभी भारत के राष्ट्रपति देश को संबोधित करते हैं. इसी माहौल में खबर आती है कि इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग के ज़रिये विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर ने पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो को भारत आने का न्योता भेजा है. क्योंकि मई में शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन SCO के विदेश मंत्रियों की बैठक गोवा में होने वाली है. इसी बैठक के साथ SCO देशों के मुख्य न्यायाधीशों की भी एक बैठक होगी, जिसके लिए पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस उमर अता बंदियाल को निमंत्रण भेजा गया है. खबर लिखे जाने से अभी तक पाकिस्तान के ओर से जवाब की जानकारी नहीं आई थी.
दी लल्लनटॉप शो और अंतरराष्ट्रीय मामलों के हमारे रोज़ाना बुलेटिन दुनियादारी में हम कई बार SCO की बात कर चुके हैं. हमारे नियमित दर्शक जानते ही हैं कि इस संगठन में भारत और पाकिस्तान के अलावा -
रूस
चीन
कज़ाकिस्तान
किर्गिस्तान
ताजिकिस्तान और
उज़्बेकिस्तान हैं.
ये सारे देश मिलकर आर्थिक और सामरिक हितों पर बात करते हैं, समझौते करते हैं. जिनसे सारे पक्षों को फायदा मिलता है. अगर संगठन के सारे देश मिलकर कुछ कहें, तो दुनियाभर में इसे सुना भी जाता है, क्योंकि संगठन में तीन महत्वपूर्ण देश हैं - भारत, चीन और रूस. स्वाभाविक रूप से SCO के सारे देशों के विदेश मंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों को वैसे ही न्योते भेजे गए हैं, जैसे पाकिस्तान को. फिर पाकिस्तान को भेजे न्योते को अलग से देखने की क्या ज़रूरत है? इसके लिए भारत पाकिस्तान संबंधों के एक रीकैप की ज़रूरत पड़ेगी.
हाल के दिनों में भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों में खटास की दो प्रधान वजहें थीं -
> फरवरी 2019 में हुआ पुलवामा हमला, जिसमें केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल CRPF के 40 जवानों की मृत्यु हुई.
>अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया जाना और जम्मू कश्मीर का विभाजन.
भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिलेबस वाला विषय हैं. लेकिन इनकी पढ़ाई दोनों देशों की राजनीति में ज़्यादा होती है. भारत में पाकिस्तान के खिलाफ और पाकिस्तान में भारत के खिलाफ बोलना और इस बिंदु पर ''मुखर'' होकर नंबर बनाना एक बहुत पुराना खेल है, जिसमें क्रमशः नए खिलाड़ियों की एंट्री होती गई है. अभी हमने जो दो घटनाएं आपको बताईं, उनके मामले में भी ये बात लागू होती है.
पुलवामा आतंकवादी हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान में बालाकोट स्ट्राइक की. जिसका जवाब अगले दिन पाकिस्तान ने भी दिया. ग्रुप कैप्टन अभिनंदन वर्थमान, (जो तब विंग कमांडर थे) पाकिस्तानी फाइटर जेट्स को खदेड़ते हुए पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में क्रैश कर गए. दो दिन में इनकी सकुशल वापसी हुई. और महीनों बाद ये मालूम चला कि 27 फरवरी को भारतीय वायुसेना का जो हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ था, वो हमारी अपनी ही मिसाइल से गिराया गया था.
इस घटना से पाकिस्तान का न्यूक्लियर ब्लफ खत्म हो गया. कि उसके पास परमाणु बम है, तो भारत कभी उसके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता. लेकिन इसका एक दूसरा असर भी था. पुलवामा हमले और उसके बाद जो भी घटा, उसका राजनैतिक इस्तेमाल सीमा के दोनों तरफ हुआ. भारत की बानगी आपको बता देते हैं. पुलवामा में 2019 के आतंकी हमलों को कोई भी भारतीय नहीं भूल सकता, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्होंने दो साल पहले जम्मू-कश्मीर में आत्मघाती बम विस्फोट में शहीद हुए 40 सैनिकों को याद किया. उन्होंने कहा कि सैनिकों द्वारा दिखाई गई बहादुरी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी. उन्होंने कहा,
“कोई भी भारतीय इस दिन को नहीं भूल सकता है. हम अपने सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं. हमें सुरक्षा बलों पर गर्व है और उनकी बहादुरी पीढ़ियों को प्रेरित करेगी.”
पाकिस्तान में इमरान खान बैकफुट पर थे. उनसे संसद में दनादन सवाल पूछे जा रहे थे. इसीलिए जब बालाकोट स्ट्राइक के अगले दिन पाकिस्तानी कार्रवाई हुई, तब जाकर वो चैन की सांस ले पाए.
अब आते हैं दूसरी घटना पर. 5 अगस्त 2019 को भारत ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया. सूबे के दो हिस्से हुए - लद्दाख और जम्मू-कश्मीर. और दोनों नए केंद्र शासित प्रदेशों में भारत का संविधान पूरी तरह लागू हो गया. इसका ज़िक्र भारत की राजनीति में कितना हुआ, ये बताने की अलग से ज़रूरत नहीं है. लेकिन पाकिस्तान ने क्या किया?
पाकिस्तान ने इसे एक गेम चेंजर ईवेंट मान लिया. माने जिससे खेल ही बदल गया. इस्लामाबाद से भारतीय राजदूत को वापस तो नहीं भेजा गया, लेकिन पाकिस्तान ने रट लगा ली कि जब तक 5 अगस्त 2019 वाला निर्णय वापस नहीं लिया जाता, भारत से बातचीत नहीं हो पाएगी. इमरान खान कश्मीर मुद्दे पर सख्त दिखना चाहते थे, इसीलिए उनकी सरकार ने ज़ोरशोर से इस बात का प्रचार किया कि वो भारत से बात नहीं करेंगे.
इधर भारत सरकार ने एक लाइन पकड़ ली कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चलेंगे. और कश्मीर पर बात होनी है, तो कश्मीरियों से होगी, न कि पाकिस्तान से. विवादित अगर कुछ है तो वो पाक अधिकृत कश्मीर है. इसके चलते भारत और पाकिस्तान के बीच सार्वजनिक रूप से बातचीत होनी बंद हो गई. हमने सार्वजनिक इसलिये जोड़ा, क्योंकि दो देश कभी कभार खुफिया चैनल से भी बात करते रहते हैं. ऐसी ही बातचीत का नतीजा थी 2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच बनी आपसी सहमति, कि नियंत्रण रेखा माने LOC पर संघर्ष विराम पर अमल किया जाएगा. दोनों सरकारों ने कहा कि ये फैसला डायरेक्टर जनरल, मिलिट्री ऑपरेशन्स DGMO स्तर की बातचीत में लिया गया. लेकिन सभी जानते हैं कि भारत-पाक संघर्ष विराम का फैसला ''सर्वोच्च'' स्तर पर ही लिया जा सकता है. इसके नीचे काम ही हो पाएगा.
ये सीज़फायर बीते दो साल से प्रभावी है, इसका मतलब दोनों देशों के बीच पक्का बातचीत जारी है. इसी के चलते भारत जम्मू कश्मीर में तैनात फौज का एक हिस्सा लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भेज पाया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि सबकुछ अच्छा ही हुआ है. पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद बदस्तूर जारी है. फिर भारत जब जब आतंकवादियों पर संयुक्त राष्ट्र के ज़रिये बैन लगाने की कोशिश करता है, तो पाकिस्तान का दोस्त चीन वीटो लगा देता है. पाकिस्तानी सरकार के प्रश्रय में मनी लॉन्ड्रिंग के ज़रिये आतंकवादियों को वित्तीय पोषण मिलना बंद हो गया, ऐसा भी नहीं है. फाइनैंशियल एक्शन टास्क फोर्स के ज़रिये भारत जो दबाव बना पाया, उसने काम तो किया, लेकिन अब पाकिस्तान ग्रे लिस्ट से बाहर है.
इसी संदर्भ के साथ भारत के विदेश मंत्री और पाकिस्तान के विदेश मंत्री की संयुक्त राष्ट्र के मंच पर वो मुखा मुखम हुई, जिसके बारे में हमने आपको बताया था. भुट्टो ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, वो डिप्लोमेसी की दुनिया में कभी इस्तेमाल नहीं की जाती. जवाब में डॉ जयशंकर ने पाकिस्तान को अच्छे से आइना भी दिखा दिया. इन सारी बातों के चलते आम लोग यही समझ रहे थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच तलवारें खिंची हुई हैं. लेकिन बीते दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ ने सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी से बात करने की इच्छा जता दी. उन्होंने कहा,
‘’भारत के साथ तीन युद्धों ने गरीबी और बेरोज़गारी ही बढ़ाई है. पाकिस्तान अपने पड़ोसी के साथ शांतिपूर्ण संबंध चाहता है. मैं प्रधानमंत्री मोदी के साथ कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों पर गंभीर बातचीत का पक्षधर हूं.‘’
शरीफ ने बातचीत में UAE के राष्ट्रपति मुहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान से सहयोग भी मांग लिया. जैसा कि अपेक्षित था, इस खबर को दिल्ली में बड़े ध्यान से पढ़ा गया, लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं. ऐसे में भारत की ओर से पाकिस्तान को भेजे न्योते को क्या SCO से इतर देखा जा सकता है? अगर भुट्टो भारत आते हैं, तो 12 साल बाद कोई पाकिस्तानी विदेश मंत्री भारत आएगा. ऐसे में वो कौनसे मुद्दे होंगे, जिनकी चर्चा हो सकती है, अब ये जानिये -
“अगर पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भारत आते हैं तो भारत को सबसे पहले आतंकवाद पर बात करनी चाहिए.”
आखिरी सवाल ये कि भारत SCO का अध्यक्ष है. और इसी हैसियत से उसने पाकिस्तान को दावत दी है. क्या हमें अध्यक्ष बनने का कोई अतिरिक्त फायदा मिल सकता है? हम इस मौके का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं.
“एससीओ नई दिल्ली के लिए समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रीय, सुरक्षा और राजनीतिक मुद्दों पर अपने क्षेत्रीय समकक्षों के साथ जुड़ने का एक उपयोगी मंच है.”
भारत और पाकिस्तान ने 75 साल एक दूसरे से लड़ते हुए बिता दिये हैं. ऐसे में अगर किसी भी बहाने से उनके बीच शांति की गुंजाइश पैदा होती है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार इस मौके का ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठाएगी और पाकिस्तान समेत भारत के तमाम पड़ोसियों से हमारे संबंध बेहतर होंगे.
वीडियो: दी लल्लनटॅाप शो: PM मोदी को अपशब्द कहने वाले बिलावल भुट्टो को भारत क्यों बुलाया गया?