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लेखपाल को जातिसूचक गाली देने के मामले में पति-पत्नी बरी, पलट कर लगाए 'भू माफ़िया' के आरोप

ज़िला अदालत के समन के बाद पति-पत्नी ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. हाई कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी है. ये कहते हुए कि उन्हें लेखपाल की जाति ही नहीं मालूम थी, तो केस नहीं बनता.

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allahabad high court
इलाहाबाद हाई कोर्ट की सांकेतिक तस्वीर.
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सोम शेखर
22 मई 2024 (Published: 01:27 PM IST)
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उत्तराखंड में रहने वाले एक व्यक्ति और उनकी पत्नी ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में एक ज़मीन ख़रीदी. बाउंड्री खिंचवाने के दौरान उन्होंने कथित तौर पर उत्तर प्रदेश राजस्व विभाग के एक अफ़सर (लेखपाल) के ख़िलाफ़ जातिवादी टिप्पणी की. पुलिस में शिकायत की गई और पुलिस के आरोपपत्र पर संज्ञान लेते हुए सहारनपुर ज़िला अदालत ने उन्हें समन जारी किया. पति-पत्नी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. हाई कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी है. ये कहते हुए कि उन्हें लेखपाल की जाति ही नहीं मालूम थी, तो केस नहीं बनता.

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, याचिकाकर्ता उत्तराखंड के देहरादून में रहते हैं. नाम, अलका सेठी और उनके पति ध्रुव सेठी. 2022 में उन्होंने अपने उत्पीड़न को लेकर दो आपराधिक मामले दर्ज कराए थे. आरोप लगाए कि लोकल भू-माफिया उनकी जमीन हड़पने का प्रयास कर रहे हैं और उन्हें परेशान कर रहे हैं. इसमें राजस्व विभाग और पुलिस अफ़सर भी मिले हुए हैं. 

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इसके बाद अगस्त, 2023 में सहारनपुर के बिहारीगढ़ पुलिस स्टेशन में इस दंपत्ति के ख़िलाफ़ एक केस शुरू किया गया. आरोप लगाए गए कि सतपुड़ा गांव में भूमि निरीक्षण के दौरान उन्होंने लेखपाल से बदतमीज़ी की. 

शिकायतकर्ता (लेखपाल) के मुताबिक़, दंपति ने धमकी दी कि अगर उनकी बातें न मानी गईं, तो वो लेखपाल पर एक महिला के साथ दुर्व्यवहार और भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगा देंगे. लेखपाल ने तो यहां तक बताया कि उन्हें  ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से हिरासत में रखा गया था और स्थानीय स्टेशन हाउस अधिकारी (SHO) के कहने के बाद ही छोड़ा गया. इन आरोपों के आधार पर पति-पत्नी के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) एक्ट के उल्लंघन सहित IPC के संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया गया.

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दूसरी ओर दंपति ने लेखपाल के ख़िलाफ़ कोई भी जातिवादी टिप्पणी करने की बात नकारी. कहा कि वे उसकी जाति जानते ही नहीं थे, तो जातिसूचक टिप्पणी करने का कोई सवाल ही नहीं. उनका कहना था कि चूंकि उनकी ज़मीन हड़पने की साज़िश में माफ़िया के साथ सरकारी अधिकारी भी मिले हुए हैं, इसीलिए ये केस दर्ज किया गया है. 

कोर्ट ने किसकी मानी?

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अदालत ने माना कि इस बात का एक भी सबूत नहीं है कि दंपति को लेखपाल की जाति पता हो... इसलिए जाति संबंधी शब्दों का इस्तेमाल  करने की बात में बहुत दम नहीं है. जस्टिस प्रशांत कुमार ने आदेश में कहा,

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के मद्देनज़र जब तक ये साबित नहीं हो जाता कि आवेदक पीड़ित की जाति के बारे में जानते हैं, तब तक उनके लिए ऐसी टिप्पणी करने का कोई अवसर नहीं है. अगर किया भी जाए, तो अनजाने में होगा. इसलिए ये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा.

हालांकि, इस केस में भू-माफ़िया, राजस्व अफ़सरों और तत्कालीन SHO की मिलीभगत दिखती है. दंपति को ग़लत तरीक़े से फंसाया गया है. राजस्व अफ़सरों, पुलिस कर्मियों और भू-माफ़ियाओं के मिलीभगत की भी जांच की जानी चाहिए.

जस्टिस प्रशांत कुमार ने पुलिस महानिदेशक से मामले की जांच संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से कराने के निर्देश दिए हैं. 

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