चंद्रयान के लिए लॉन्च-पैड बनाने वाले 2800 लोगों को सैलरी नहीं मिली, घर चलाने के लिए इडली बेच रहे हैं
रांची में चाय और इडली बेचने वाले दीपक कुमार उपरारिया उस HEC के कर्मचारी हैं, जिसने ISRO के लिए वो लॉन्चपैड बनाया जिससे चंद्रयान का प्रक्षेपण हुआ. उन्हें पिछले 18 महीने से कोई वेतन नहीं मिला है.

23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग की. लोगों ने पटाखे जलाए, एक-दूसरे को बधाई दी. देश के प्रधानमंत्री ने भी इसरो के वैज्ञानिकों और देशवासियों को बधाई दी. लेकिन रांची स्थित हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन HEC के जिन इंजीनियर्स ने चंद्रयान समेत दूसरे अभियानों में काम आए लॉन्चपैड को बनाया था, उन्हें तनख्वाह नहीं मिली. सरकारी नौकरी होने के बावजूद पूरे 18 महीने से ये लोग पैसे को मोहताज हैं. छोटी-मोटी गुमटियां लगाकर गुज़ारा चला रहे है. इनकी कहानी दी लल्लनटॉप ने आपको विस्तार से बताई थी.
ऐसे ही एक HEC कर्मचारी दीपक कुमार उपरारिया की कहानी चर्चा में है. बीबीसी पर छपी आनंद दत्त की रिपोर्ट के मुताबिक अब वो इडली बेच रहे हैं. क्योंकि उन्हें बीते 18 महीने से वेतन नहीं मिला है. और ऐसा सिर्फ दीपक ही नहीं एचईसी के 2,800 कर्मचारियों के साथ हुआ है.
दीपक कुमार उपरारिया की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल है. ज़्यादातर लोगों ने इसी बात को रेखांकित किया है कि दीपक के पास जब कोई चारा न बचा, तब उन्होंने इडली और चाय की दुकान लगाई.
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक दीपक की रांची के धुर्वा इलाके में पुरानी विधानसभा के सामने एक दुकान है. बीते कुछ दिनों से वो वहां इडली बेच रहे हैं. वो रोज़ सुबह इडली बेचते हैं, दोपहर में ऑफिस जाते हैं. शाम को फिर इडली बेचकर घर चले जाते हैं. साल 2012 में दीपक एक निजी कंपनी की 25 हज़ार रुपए महीने की नौकरी करते थे. लेकिन उन्होंने एचईसी में आठ हज़ार रुपए की सैलरी पर ज्वॉइन किया. उन्हें उम्मीद थी कि सरकारी नौकरी से ज़िंदगी संवर जाएगी.
BBC से बातचीत के दौरान दीपक ने बताया,
“जब सैलरी नहीं मिली तो पहले उन्होंने क्रेडिट कार्ड से घर चलाया. लेकिन फिर दो लाख का कर्ज़ हो गया. मुझे डिफ़ॉल्टर घोषित कर दिया गया. बाद में मैंने रिश्तेदारों से पैसा उधार लिया. घर चलाया लेकिन अब चार लाख़ का कर्ज़ हो गया है. लोगों ने उधार देना बंद कर दिया. मैंने पत्नी के गहने गिरवी रख दिए. परिवार भुखमरी की हालत पर आ गया. इसलिए मैंने इडली की दुकान खोल ली. मेरी पत्नी अच्छी इडली बनाती हैं. यहां दिन की 300 से 400 रुपए की इडली बेचते हैं. जिससे दिन का 50 तो कभी 100 रुपए का प्रॉफ़िट हो जाता है. इसी से अब हमारा घर चल रहा है.”
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का कहना है कि साल 2003 से 2010 के बीच में एचईसी ने इसरो को मोबाइल लॉन्चिंग पेडस्टल, हैमर हेड टावर क्रेन, ईओटी क्रेन, फोल्डिंग कम वर्टिकल रिपोजिशनेबल प्लेटफॉर्म, हॉरिजेंटल स्लाइडिंग डोर्स सप्लाई किए हैं. लेकिन चंद्रयान-3 के लिए किसी भी उपकरण को बनाने के लिए एचईसी से कोई मदद नहीं ली गई. इस बात का जवाब देते हुए एचईसी के मैनेजर पुरेंदू दत्त मिश्रा ने BBC को बताया कि टेक्निकली केंद्र सरकार सही हो सकती है. क्योंकि चंद्रयान-3 के लिए अलग से कोई लॉन्चपैड नहीं बनाया गया है. लेकिन भारत में एचईसी के अलावा और कोई कंपनी लॉन्चपैड नहीं बनाती है.
नोट: सरकार के पत्र सूचना ब्यूरो ने BBC की हेडलाइन को ‘भ्रामक’ बताया है.
HEC के कर्मचारियों की पीड़ा पर दी लल्लनटॉप की कवरेज को आप यहां पढ़ और देख सकते हैं -
3 चंद्रयान लॉन्च करने का इनाम- 18 महीनों से तनख्वाह नहीं मिली
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