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जो वैक्सीन मम्मी-पापा को लग रही है, वो उनके किशोर बेटे-बेटी को क्यों नहीं लग सकती?

बच्चों के वैक्सीनेशन से जुड़े इसी तरह के सवालों के जवाब जानिए.

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दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों ने अपने यहां बच्चों के लिए वैक्सीन की शुरुआत कर दी है.सांकेतिक फोटो-PTI
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डेविड
12 मई 2021 (Updated: 12 मई 2021, 01:26 PM IST)
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कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए दुनियाभर में वैक्सीन लगाई जा रही है. भारत में भी एक मई से 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए वैक्सीनेशन शुरू हुआ है. हालांकि अभी भी कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी की शिकायत की है. इस बीच बच्चों को भी वैक्सीन लगाने की चर्चा हो रही है. दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों ने अपने यहां बच्चों के लिए वैक्सीन की शुरुआत कर दी है. इस स्टोरी में हम बात करेंगे कि बच्चों के लिए वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में क्या चल रहा है? कौन सी वैक्सीन दी जा रही है? कौन सी वैक्सीन ट्रायल के किस स्टेज में है? इसे लेकर भारत में क्या सीन है? और सबसे बड़ा सवाल कि इस समय जो वैक्सीन लग रही है, उसे बच्चों को क्यों नहीं लगा सकते हैं? इन सब सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं. किन देशों में बच्चों को वैक्सीन लग रही है? कनाडा दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने बच्चों को वैक्सीन लगाने की इजाजत दी है. कनाडा के ड्रग रेगुलेटर हेल्थ ने 12 से 15 साल के बच्चों के लिए फाइजर की वैक्सीन लगाने की इजाजत दी है. इससे पहले यह वैक्सीन 16 साल से ज्यादा उम्र वालों को लगाई जा रही थी. फाइजर की वैक्सीन के बच्चों पर ट्रायल जनवरी से मार्च के बीच हुए थे.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक फाइज़र ने 12 से 15 साल के 2260 वॉलेंटियर्स पर वैक्सीन के ट्रायल के शुरुआती रिजल्ट, मार्च 2021 के अंत में जारी किए थे. इसके नतीजे काफी अच्छे थे.जिन बच्चों को वैक्सीन की दोनों डोज दी गई थीं, उनको कोरोना इंफेक्शन नहीं हुआ, जबकि जिन बच्चों को डमी इंजेक्शन दिया गया था, उनमें इंफेक्शन देखने को मिला. वैक्सीन लगवाने वालों को बुखार और ठंड लगने जैसे साइड इफेक्ट भी हुए. इन बच्चों की सेहत पर अगले दो सालों तक नजर रखी जाएगी.
फाइजर वैक्सीन: सांकेतिक तस्वीर. (PTI) फाइज़र की वैक्सीन कनाडा में 12 से 15 साल के बच्चों को लगाई जा रही है. सांकेतिक तस्वीर. (PTI)
 अमेरिका ने किस वैक्सीन को मंजूरी दी है? अमेरिका में भी फाइजर-बायोएनटेक (Pfizer-BioNTecch) की कोरोना वैक्सीन को 12 से 15 साल के बच्चों को लगाने की इजाजत मिल गई है. अमेरिका के खाद्य और दवा प्रशासन यानी FDA ने 12 से 15 साल की उम्र के बच्चों के लिए फाइजर वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है. FDA की कार्यकारी आयुक्त डॉक्टर जेनेट वुडकॉक ने कहा कि, वैक्सीन के इस्तेमाल को लेकर किया गया ये फैसला सामान्य स्थिति में लौटने में मदद करेगा. उन्होंने कहा कि बच्चों के माता-पिता इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं कि FDA ने उपलब्ध डेटा को गंभीरता से देखा है. और किन वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है? अमेरिका में फाइजर के अलावा मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के भी बच्चों में ट्रायल किए जा रहे हैं. मॉडर्ना का कहना है कि उसकी वैक्सीन के किशोरों और छोटे बच्चों पर ट्रायल्स चल रहे हैं. शुरुआती नतीजे जून-जुलाई में आ जाएंगे. जॉनसन एंड जॉनसन भी पीडियाट्रिक ट्रायल्स की योजना बना रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक और अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स ने भी 12-17 आयु वर्ग के 3,000 किशोरों पर अपनी वैक्सीन के ट्रायल शुरू किए हैं.
Johnson And Johnson Vaccine जॉनसन एंड ज़ॉनसन की वैक्सीन (फोटो-AP)
भारत में क्या सीन है? कोरोना वैक्सीन से जुड़ी सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (SEC) ने मंगलवार (11 मई) को 2 से 18 साल की उम्र वाले बच्चों पर भारत बायोटेक की कोवैक्सिन के सेकेंड और थर्ड ट्रायल की मंजूरी दे दी. यह ट्रायल AIIMS दिल्ली, AIIMS पटना और मेडिट्रिना इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नागपुर में 525 लोगों पर किया जाएगा. भारत बायोटेक को फेज़ 3 का ट्रायल शुरू करने से पहले फेज़ 2 का पूरा डाटा उपलब्ध कराना होगा.
इससे पहले 24 फरवरी को हुई बैठक में प्रस्ताव पर विचार-विमर्श किया गया था. भारत बायोटेक को रिवाइज्ड क्लिनिकल ट्रायल प्रोटोकॉल पेश करने का निर्देश दिया गया था. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के सहयोग से भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सिन का इस्तेमाल,  इंडिया में 18 साल से ऊपर की उम्र के लोगों के लिए हो रहा है. अभी वाली वैक्सीन बच्चों को क्यों नहीं दे सकते? सबसे बड़ा सवाल यही है कि अभी जो वैक्सीन मौजूद है और वयस्कों को लग रही है उसे बच्चों को क्यों नहीं दिया जा सकता है? ये जानने के लिए हमने बात की वैक्सीन एक्सपर्ट डॉक्टर विपिन वशिष्ट से. उनका कहना है,
किसी भी वैक्सीन का ट्रायल होना जरूरी है. अभी वयस्कों को जो वैक्सीन दी जा रही है, हो सकता है कि उनका वायरल लोड बहुत ज्यादा हो. बच्चे टॉलरेट ही ना कर पाएं. वैक्सीन लगाने के बाद जो परेशानियां होती हैं जैसे बुखार आता है, पेन होता है, या बाकी दिक्कते आती हैं. ऐसे में अगर इस समय जो वैक्सीन मौजूद है वही बच्चों को दी जाए, तो क्या ये सब परेशानी बच्चे झेल पाएंगे? क्योंकि वैक्सीन से बच्चों में तो और भी कई तरह के रिएक्शन होते हैं. इसलिए जरूरी है कि ये चेक करें कि बच्चे कितनी डोज टॉलरेट कर पाएंगे. इसलिए हर उम्र के बच्चों के लिए ट्रायल जरूरी है. अमेरिका में भी आप देखेंगे कि बच्चों पर क्लिनिकल ट्रायल के बाद ही आगे बढ़ा गया.
बच्चों के लिए भारत में कब तक वैक्सीन आएगी? वैक्सीन एक्सपर्ट डॉक्टर विपिन वशिष्ट का कहना है कि ट्रायल शुरू होने के बाद चार से छह महीने लग सकते हैं. वहीं एनबीटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ़ एम. सी. मिश्रा का कहना है कि देश में इस वक्त कोवैक्सीन और कोविशील्ड लगाई जा रही है, अनुमान के मुताबिक ये वैक्सीन भी बच्चों को लगाई जा सकती है. इस वक्त बच्चों को यह वैक्सीन सिर्फ इसलिए नहीं लगाई जा रही क्योंकि ट्रायल में बच्चों को शामिल नहीं किया गया था. एकदम छोटे बच्चों को वैक्सीन से क्या खतरा है? डॉक्टर विपिन वशिष्ट का कहना है कि एकदम छोटे बच्चों के लिए वैक्सीन ड्राइव नहीं चलाई जानी चाहिए. उनका कहना है,
6 महीने से लेकर 5 साल तक के बच्चों के लिए जरूरी नहीं है कि वैक्सीन लगाएं. यह अनावश्यक रूप से बीमारी को पुश करने वाली बात है. बच्चों को हल्के लक्षण दिखे हैं. वैक्सीन लगाने से बच्चों की नेचुरल इम्युनिटी खत्म हो सकती है. वहीं ये रिसॉर्से की भी बर्बादी है. इस पर बहस होनी चाहिए कि वास्तव में 6 महीने से 5 साल तक के बच्चों के लिए वैक्सीन की जरूरत है कि नहीं.

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