एक दलित जब 2018 में अगड़ी जाति के 'पेटेंट' वाला सरनेम लगा ले, तो क्या होता है
साहस कहें या दुस्साहस, अहमदाबाद में मौलिक ने ऐसा किया.
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सभी चित्र मौलिकसिंह जाधव के फेसबुक प्रोफाइल से लिए गए हैं.
इसमें एक विराट पुरुष की चर्चा हुई है और उसके अंगों का वर्णन है. उसमें एक मन्त्र है -
राजन्य: कृत: ब्राह्मणोऽस्य मुखामासीद्वाहू, ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत.अर्थात क्षत्रिय वीरता कार्य हेतु, ब्राह्मण मुख (मुख्य) कार्य हेतु, वैश्य उरु (अर्थात सर्व स्थान यात्रा) करने हेतु और शूद्र पग (यानी सेवा जैसे गुणों को) करने हेतु बने हैं.
एक दूसरी व्याख्या -
उस विराट पुरुष परमात्मा के मुख से ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई, बाहुओं से क्षत्रियों की, उदर से वैश्यों की और पदों (चरणों) से शूद्रों की उत्पत्ति हुई
एक तीसरी व्याख्या -
ब्राह्मण मुख के समान , क्षत्रिय हाथों के समान, वैश्य पेट के समान और शूद्र पैरों के समान है.
ये मन्त्र सबसे पुराना रेफरेंस है जहां पर 'शूद्र' शब्द और उसकी व्याख्या दिखती है.

भारत के सर्विस सेक्टर की धूम पूरे विश्व में है. विप्रो, इनफ़ोसिस, एचसीएल जैसी कंपनियां मल्टीनेशनल बन चुकी हैं. इसी शूद्रों वाले कार्य यानी सेवा करते-करते. होटल, रेस्टोरेंट, बार, एयरलाइन्स, हाउसकीपिंग... हर जगह प्रोफेशनल शूद्रों की दरकार है.
# 2 - सर्विस सेक्टर यानी सेवा-क्षेत्र में भारत के 28.6% लोग कार्य कर रहे हैं और इसका भारत के आर्थिक विकास में 54% योगदान है.
ऊपर दो अलग-अलग बातें अलग-अलग विषयों से ली गई हैं. इनकी व्याख्या बाद में करेंगे पहले एक न्यूज़ पढ़ते हैं -
गुजरात के अहमदाबाद जिले में एक जगह है – ढोलका. कल वहां दरबार समुदाय के कुछ लोगों ने मौलिकसिंह जाधव के घर में जाकर तोड़फोड़ कर दी. कारण था कि दलित युवक ने अपने फेसबुक प्रोफाइल में अपना नाम बदलकर मौलिकसिंह जाधव रख लिया जो पहले मौलिक जाधव था.

मोदी जी के गुजरात मॉडल को कौन नहीं चीन्हता?
अब काठी-दरबार के लोगों का मत है कि ‘सिंह’ पर उनका अधिकार है. और कोई दलित इसको कैसे अपने नाम के साथ लगा कर इसे 'अपवित्र' कर सकता है.
काठी दरबार के लोगों का मानना है कि वे लोग ‘कुश’ के वंशज हैं. कुश, जो राम के बेटे थे. और यूं वो अपर से भी अपर कास्ट के क्षत्रिय हैं. और वे अपने प्रथम नाम के साथ सिंह लगाते हैं. वे 'ही' अपने प्रथम नाम के साथ सिंह लगा सकते हैं.
मौलिकसिंह ने जो एफआईआर लिखवाई है, उसमें लिखा है कि उसने 10 मई को फेसबुक पर मौलिकसिंह जाधव के नाम से एक पोस्ट डाली थी जिसके तुरंत बाद दरबार समुदाय के कुछ युवाओं ने उन्हें सोशल मीडिया पर घेर लिया (मतलब ट्रोल एंड ऑल) उन्हें धमकी भी दी. एफआईआर में मौलिकसिंह ने कहा है कि मंगलवार को राजदीपसिंह वाघेला और समुदाय के अन्य युवाओं ने उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को पीटा भी था.

सोशल मीडिया पर मौलिकसिंह जाधव दलित हितों की बात करते हैं. नॉलेज ट्यूशन क्लासेज़ चलते हैं, और जिग्नेश मेवाणी की टीम में एक सामजिक कार्यकर्ता हैं.
मौलिक जाधव का आरोप है कि कल उस पर कुछ लोगों ने हमला बोल दिया और जमकर पिटाई की. जिसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है. इस बीच ढोलका में धारा 144 लगा दी गई है.
अहमदाबाद के एसपी राजेंद्र असारी के अनुसार -
इस संदर्भ में दो एफआईआर दर्ज़ की गई हैं. एक मौलिक की, जो रायटिंग (बलवा) और एट्रोसिटी (क्रूरता) की है. दूसरी उनके रिश्तेदार, परेश भाई की. स्थिति नियंत्रण में है. हमने किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पुलिस कर्मचारियों को तैनात किया है. हमने शिकायत दर्ज कराई है और जांच शुरू की है.मौलिकसिंह ने अंग्रेजी के समाचारपत्र – दी इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि
कुछ दिनों पहले जब वे अपनी बाइक पर जा रहे थे तो पांच-छह लोग एक कार से उतरे और मुझे रोका. उन्होंने मुझे थप्पड़ मार दिया. जैसे-तैसे मैं भागने में सफल रहा और शिकायत दर्ज कराने के लिए सीधे ढोलका पुलिस स्टेशन गया. मैं दो हमलावरों को उनके नाम से जानता हूं - सहदेवसिंह वाघेला और यशपानसिंह. जब मैं पुलिस स्टेशन में था, तब दरबार समुदाय की भीड़ ने मेरे निवास पर भी हमला किया जिसमें मेरे परिवार के एक बुजुर्गों को सर पर गंभीर चोटें लग गईं और उन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
ये थी पूरी खबर. अब आते हैं मुद्दे की बात पर.

कंसंट्रेशन कैम्पस में रह रहे यहूदियों और कंकालों के बीच केवल सांसों का फर्क बच गया था.
सामजिक विज्ञान की एलीमेंट्री किताबों में पढ़ाया जाता है कि परफेक्ट समाज जैसी कोई चीज़ नहीं होती. हम इवॉल्व करते रहते हैं. बेहतर, और बेहतर होते रहते हैं.
अमेरिका में नस्लभेद था, कनाडा में औरतें वोट नहीं दे सकती थीं, जर्मन में यहूदियों के लिए कंसंट्रेशन कैंप थे. लेकिन न तो अमेरिका, न कनाडा और न ही जर्मनी इन बातों पर गर्व महसूस करता है. हां, शर्म बेशक महसूस करता है. भुला देना चाहता है. क्षमा मांगना चाहता है. पर हमने -
पर हमने ये कैसा समाज रच डाला है
इसमें जो दमक रहा, शर्तिया काला है.
वह क़त्ल हो रहा, सरेआम चौराहे पर
निर्दोष और सज्जन, जो भोला-भाला है.
- वीरेन डंगवाल

'आओ अमेरिका को फिर से महान बनाएं' और 'अच्छे दिन आने वाले हैं' में एक समानता ये भी थी कि ये नारे ठीक चुनावों से पहले लगे थे, और फलदायी रहे थे.
मैंने जाना है कि किसी समाज, किसी देश, किसी क्षेत्र की प्रगति को जांचना हो तो जांचों कि उसके सबसे दबे, कुचले वर्ग तक कितना पहुंचा. अगर लाइन में लगी हुई अंतिम बाल्टी तक पानी पहुंच गया तो इसका मतलब सबको पानी मिल गया.
वरना तो गुजरात मॉडल, लेट'स मेक अमेरिका ग्रेट अगेन, इंडिया शाइनिंग जैसे वाक्यांश काफी हैं वीभत्स सच्चाई को चमकदार गिफ्ट-रैप कर देने के लिए. वरना तो -
मोटर सफ़ेद वह काली है
वे गाल गुलाबी काले हैं
चिंताकुल चेहरा- बुद्धिमान
पोथे कानूनी काले हैं
आटे की थैली काली है
हां सांस विषैली काली है
छत्ता है काली बर्रों का
यह भव्य इमारत काली है
कालेपन की ये संताने
हैं बिछा रही जिन काली इच्छाओं की बिसात
वे अपने कालेपन से हमको घेर रहीं
अपना काला जादू हैं हम पर फेर रहीं
बोलो तो, कुछ करना भी है
या काला शरबत पीते-पीते मरना है?
- वीरेन डंगवाल
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