असम परिसीमन: सिर्फ मुस्लिम सीटों को कम करने का आरोप क्यों लग रहा है?
विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग का मौजूदा ड्राफ्ट बीजेपी-आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाता है. जबकि हिमंता बिस्वा सरमा कह रहे हैं कि असमिया लोगों के लिए कम से कम 102 सीटें सुरक्षित हो जाएंगी.

असम में 47 साल बाद हो रहे परिसीमन का भारी विरोध हो रहा है. चुनाव आयोग ने 20 जून को परिसीमन का ड्राफ्ट प्रस्ताव जारी किया था. इसके बाद से ही राजनीतिक दल इसके विरोध में हैं. विपक्षी नेताओं का कहना है कि इससे मुस्लिम बहुल सीटों की संख्या में कमी आएगी. 27 जून को राजनीतिक दलों और संगठनों ने इसके खिलाफ 12 घंटे का बंद बुलाया. कछार, करीमगंज, हैलाकांडी जिलों में बंद के दौरान 300 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया. इस बंद को बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट ने बुलाया था. कांग्रेस, टीएमसी और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) जैसे दलों ने इसका समर्थन किया था.
क्या है परिसीमन ड्राफ्ट प्रस्ताव में?ड्राफ्ट प्रस्ताव के मुताबिक, विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 16 से बढ़कर 19 हो जाएगी. वहीं अनुसूचित जाति की सीट आठ से बढ़कर 9 हो जाएगी. हालांकि प्रस्ताव के अनुसार राज्य में विधानसभा की सीटें नहीं बढ़ेगी. यानी विधानसभा सीटें 126 ही रहेंगी. परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने पर कई विधानसभा क्षेत्रों की भौगोलिक सीमाओं को कम किया जाएगा. कुछ क्षेत्रों को खत्म भी किया जा सकता है और नए क्षेत्र तय हो सकते हैं.
आगे बढ़ने से पहले परिसीमन का मतलब समझते हैं. इसका आसान मतलब होता है राज्य की विधानसभाओं और केंद्र की लोकसभा सीटों की भौगोलिक सीमाओं का रेखांकन करना. यानी राज्यों के अंदर जनसंख्या घनत्व में बदलाव होने के कारण, जब भी परिसीमन होता है, तब संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बदलती रहती है. इसमें अंतिम उपलब्ध जनगणना के डेटा का इस्तेमाल किया जाता है. इस काम के लिए एक परिसीमन आयोग बनाया जाता है.
परिसीमन आयोग के काम को संविधान के अनुच्छेद-82 में परिभाषित किया गया है. अनुच्छेद-82 के मुताबिक, 10 साल में जब एक बार जनगणना होगी, तो उसके बाद परिसीमन किया जाएगा. संविधान के 84वें संशोधन के मुताबिक, 2026 के बाद जब पहली जनगणना होगी और उसके आंकड़े प्रकाशित हो जाएंगे, तो उसके बाद ही लोकसभा का परिसीमन किया जाएगा. जब तक ऐसा नहीं होता है लोकसभा का परिसीमन 1971 की जनगणना के मुताबिक ही होगा. वहीं राज्यों की विधानसभाओं का परिसीमन 2001 की जनगणना के मुताबिक होगा.
देश में आखिरी परिसीमन 2008 में हुआ था. इसके लिए परिसीमन आयोग का गठन 2002 में ही हुआ था. करीब 6 साल बाद आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दी गई थी. लेकिन 2008 में असम और उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों में परिसीमन नहीं हो पाया था. इसके पीछे सुरक्षा कारण थे. फिर 2020 में कानून मंत्रालय ने असम में परिसीमन के लिए नोटिफिकेशन जारी किया. इस पर, दिसंबर 2022 में चुनाव आयोग ने परिसीमन प्रक्रिया शुरू की. 1976 के बाद असम में परिसीमन की यह पहली प्रक्रिया है.
दिसंबर में परिसीमन शुरू करने की घोषणा के चार दिन बाद ही असम कैबिनेट ने चार जिलों को मौजूदा जिलों में मिला दिया था. इससे राज्य में जिलों की संख्या 35 से घटकर 31 हो गई थी. इसके अलावा 14 जगहों की सीमाओं में भी बदलाव हुआ था. असम में परिसीमन की पूरी प्रक्रिया 2001 की जनगणना के हिसाब से हुई है. आयोग ने ड्राफ्ट प्रस्ताव पर 11 जुलाई तक लोगों से सुझाव और आपत्तियां मांगी है.
असम में विरोध क्यों हो रहा है?विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग का मौजूदा ड्राफ्ट बीजेपी-आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाता है. AIAUDF का कहना है कि मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों की संख्या 29 से घटकर 22 हो जाएगी. AIAUDF विधायक करीमुद्दीन बरभूइया ने ट्विटर पर लिखा,
"चुनाव आयोग ने परिसीमन ड्राफ्ट कुछ इस तरीके से तैयार किया है कि विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व को कम किया जा सके. चुनाव आयोग ने इसके लिए बीजेपी-RSS के निर्देशों का पालन किया है. ऐसा करके चुनाव आयोग ने संविधान का अपमान किया है, जो विधानसभा में सभी समुदायों के बराबर प्रतिनिधित्व की बात करता है."
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) के एक नेता ने आरोप लगाया कि अगर प्रस्ताव को इसी तरीके से लागू किया गया तो राजनीतिक रूप से सबसे ज्यादा नुकसान अल्पसंख्यक समुदाय का होगा. खासकर, उन विधानसभा सीटों पर जहां बंगाली मुसलमान हैं और जिन्हें अक्सर 'बाहरी' बताया जाता है. राज्य में ऐसी 35 सीटों पर इस समुदाय की अहम भूमिका रहती है.
उन्होंने अखबार को बताया,
"विधानसभाओं को कुछ इस तरीके से बनाया गया है कि अल्पसंख्यक इलाके बहुसंख्यक (हिंदू) आबादी के साथ मिल गए हैं. बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी वाली सीटें खत्म हो जाएंगी. इसका असर बारपेटा और बराक घाटी के इलाकों में होगा."
बारपेटा जिले में फिलहाल आठ विधानसभा क्षेत्र हैं. ड्राफ्ट के मुताबिक, अब इसकी संख्या घटकर 6 हो जाएगी. इनमें से एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होगी. एक और नेता ने अखबार को बताया कि परिसीमन कुछ इस तरीके से किया गया है कि बारपेटा इलाके से सिर्फ तीन मुस्लिम उम्मीदवार जीत सकेंगे.
इसके अलावा, कई मौजूदा विधायकों और सांसदों के निर्वाचन क्षेत्र भी प्रभावित होंगे. आरक्षित होने के कारण उनकी सीटें बदल सकती हैं. उदाहरण के लिए, गौरव गोगोई की संसदीय सीट कालियाबोर की सीमाओं में सिर्फ बदलाव नहीं होंगे, बल्कि इसका नाम भी बदल दिया गया है. अब यह काजीरंगा संसदीय क्षेत्र कहलाएगा. नए काजीरंगा निर्वाचन क्षेत्र से कई मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके नागांव में शिफ्ट होंगे.
वहीं विधानसभा के स्तर पर देखें तो मुस्लिम बहुसंख्यक ढिंग विधानसभा खत्म हो जाएगा. यहां से AIUDF के अमिनुल इस्लाम तीन बार विधायक रहे हैं. इसी तरह ढोलाई विधानसभा का नाम अब नरसिंहपुर होगा और इसकी सीमाओं में भी बदलाव होगा. कांग्रेस की सुमन हरिप्रिया अब हाजो सीट से चुनाव नहीं लड़ पाएंगी. क्योंकि यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गई है.
विपक्ष के विरोध के बीच बीजेपी इस प्रस्ताव का स्वागत कर रही है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने पत्रकारों से कहा कि ड्राफ्ट से असमिया लोगों के लिए कम से कम 102 सीटें सुरक्षित होंगी. सरमा ने ये भी कह दिया कि परिसीमन ड्राफ्ट वो काम करेगा जो 1985 का असम समझौता और NRC नहीं कर सका.
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