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कौन हैं निरंकारी, जिनके मुखिया की हत्या भिंडरावाले ने करवाई थी?

और अब फिर अमृतसर में हुए बम ब्लास्ट में तीन लोग मारे गए हैं.

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अमृतसर में निरंकारी सम्मेलन में 18 नवंबर, 2018 को ग्रेनेड से हमला हुआ, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई. 20 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं.
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अविनाश
19 नवंबर 2018 (Updated: 20 नवंबर 2018, 07:55 AM IST) कॉमेंट्स
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पंजाब का एक शहर है अमृतसर. सिखों के लिए सबसे पवित्र शहर. और हो भी क्यों न, स्वर्णमंदिर वहीं तो है. लेकिन इसी शहर में 18 नवंबर को एक हादसा हुआ है. 18 नवंबर को अमृतसर के राजासांसी के निरंकारी भवन में सैकड़ों लोग मौजूद थे. वो लोग सत्संग कर रहे थे. इसी दौरान दो बाइक सवार लोग वहां पहुंचे. उनके हाथों में हथियार थे, जिन्हें वो लहरा रहे थे. उन्होंने हवाई फायर किए और जब लोग गोलियों की आवाज सुनकर भागने लगे, तो बाइक सवारों ने ग्रेनेड फेंक दिया. हमले में तीन निरंकारियों की मौके पर ही मौत हो गई और 20 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.

पूरे पंजाब में हाई अलर्ट घोषित किया गया है.

हमले का पाकिस्तानी और खालिस्तानी कनेक्शन
इस हमले के बाद पुलिस हमलावरों की तलाश में है. पूरे पंजाब में हाई अलर्ट घोषित किया गया है. जगह-जगह पर सर्च अभियान चलाया जा रहा है. मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई है और हमले के पीछे आतंकवादियों का हाथ बताया जा रहा है. लेकिन कुछ लोग इस हमले के पीछे खालिस्तानियों के हाथ की बात कर रहे हैं. पंजाब पुलिस के मुताबिक खालिस्तान समर्थकों ने अमृतसर के स्थानीय लड़कों को बहकाकर हमला करवाया है. पुलिस का मानना है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की शह पर कश्मीर के आतंकी संगठनों ने खालिस्तानियों का नेटवर्क तैयार किया और उन्हें हैंड ग्रेनेड दिया. खुफिया एजेंसियों के मुताबिक हमले का शक गोपाल सिंह चावला पर है, जिसे पिछले दिनों आतंकी हाफिज सईद के साथ देखा गया था. गोपाल सिंह चावला पाकिस्तानी सिख है जो पाकिस्तानी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का महासचिव रह चुका है और खालिस्तान का समर्थक है. इसके अलावा ये भी कहा जा रहा है कि आतंकी जाकिर मूसा को भी कुछ दिन पहले पंजाब में देखा गया था और उसने भी खालिस्तान समर्थकों से मुलाकात की है.

हाफिज सईद के साथ गोपाल चावला.
लेकिन निरंकारियों पर खालिस्तानी हमला क्यों करेंगे, इसे जानने के लिए निरंकारियों का इतिहास जानना पड़ेगा.
सिख धर्म के 10वें गुरु थे गुरु गोविंद सिंह. उन्होंने कहा था कि उनकी मौत के बाद सिख संप्रदाय में किसी को भी गुरु का दर्जा नहीं दिया जाएगा. सिखों को धर्म का रास्ता दिखाने के लिए सिर्फ एक ही गुरु होंगे और वो होगी उनकी धार्मिक किताब गुरु ग्रंथ साहिब. अब गुरु गोविंद सिंह तो इतना कहकर चले गए, लेकिन कुछ लोगों ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि एक किताब हमारी गुरु बन जाए. उन्होंने कहा कि किताब ही नहीं, बल्कि एक आदमी को भी धर्म गुरु माना जाना चाहिए.
पेशावर में बना संत निरंकारी मिशन
निरंकारी पंथ की स्थापना पेशावर में हुई थी. वो अब पाकिस्तान का हिस्सा है.
निरंकारी पंथ की स्थापना पेशावर में हुई थी. वो अब पाकिस्तान का हिस्सा है.

इसको लेकर सिखों में विवाद हो गया. विवाद करीब 100 सालों तक चलता रहा. लेकिन 19वीं शताब्दी में ये विवाद और भी बड़ा हो गया. सिख संप्रदाय से अलग होकर कुछ लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब का बहिष्कार किया और कहा कि एक जीवित आदमी ही धर्म का गुरु बन सकता है. 19वीं शताब्दी में जब रावलपिंडी में महाराजा रणजीत सिंह का शासन था, तब इसकी आवाज उठनी शुरु हुई. लेकिन ये आवाज बुलंद होने से पहले ही खामोश हो गई. करीब 100 सालों के बाद इस आवाज ने फिर से जोर पकड़ा और इस बार ये आवाज पेशावर से उठी. ये बात 1929 की है. तब भारत और पाकिस्तान एक ही देश हुआ करते थे. उस वक्त पेशावर में बाबा बूटा सिंह नाम के एक शख्स थे. उनकी गुरुवाणी सुनकर हजारों लोग उनसे प्रभावित हो गए थे. ऐसे ही प्रभावित लोगों में एक नाम बाबा अवतार सिंह का भी था. 25 मई 1929 को बाबा अवतार सिंह और बाबा बूटा सिंह ने मिलकर तय किया कि अब वो लोग अपने ज्ञान को लोगों तक ले जाएंगे और लोगों को बताएंगे कि गुरुग्रंथ साहिब के अलावा जीवित आदमी भी धर्म का गुरु बन सकता है. इसी मकसद से 15 मई 1929 को पेशावर में एक मिशन की शुरुआत की गई और नाम रखा गया निरंकारी मिशन.
भारत आजाद हुआ और निरंकारी मिशन का मुख्यालय बनी दिल्ली
भारत के बंटवारे के बाद जो लाखों लोग पाकिस्तान से भारत आए थे, उनमें निरंकारी भी थे.
भारत के बंटवारे के बाद जो लाखों लोग पाकिस्तान से भारत आए थे, उनमें निरंकारी भी थे.

इस पंथ के पहले गुरु हुए बूटा सिंह. उस वक्त भारत में आजादी की लड़ाई चल रही थी, लेकिन निरंकारी मिशन अपना अस्तित्व बनाने में लगा हुआ था. 1943 में इस मिशन को पहला धक्का तब लगा, जब अचानक से एक दिन बाबा बूटा सिंह की मौत हो गई. हालांकि ये कहा जाता है कि बाबा बूटा सिंह को अपनी मौत के बारे में पता था और उन्होंने मरने से पहले सारे इंतजाम कर लिए थे कि उनकी मौत कब होगी. इसके बाद इस संगठन को चलाने की जिम्मेदारी आ गई बाबा अवतार सिंह पर. बाबा अवतार सिंह ने कमान संभाली, लेकिन इसी बीच भारत आजाद हो गया. 1947 में जब भारत आजाद हो गया और पेशावर पाकिस्तान का हिस्सा बन गया तो पाकिस्तान से एक बड़ी आबादी भारत आई. उस बड़ी आबादी का एक बड़ा हिस्सा राजधानी दिल्ली में भी आया. इस बड़े हिस्से में बाबा अवतार सिंह और उनके अनुयायी भी थे, जो पेशावर से दिल्ली आ गए.
बढ़ता गया संगठन, बने सेवा दल और यूथ फोरम

वक्त के साथ निरंकारी सम्मेलन का स्वरूप बड़ा होता गया.

दिल्ली आने के बाद बाबा अवतार सिंह ने संत निरंकारी मंडल नाम से अपनी संस्था बनाई और 1948 में दिल्ली के बुराड़ी में इसका रजिस्ट्रेशन करवाया. रजिस्ट्रेशन होने के बाद संस्था ने काम करना शुरू किया. जल्दी ही दिल्ली और पंजाब में इस संस्था के कई सेंटर खुल गए. वहां लोगों को शिक्षा दी जाने लगी, आध्यात्मिक प्रवचन शुरू हुए और लोगों को अपनी ओर जोड़ने की कोशिश होने लगी. कई जगहों पर शिविर भी लगने शुरू हो गए. इसके अलावा संगठन का विस्तार भी हुआ और 1956 में संत निरंकारी सेवा दल भी अस्तित्व में आया, जिसके मुखिया बने चाचा प्रताप सिंह. अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाने के लिए किताबें भी छापी जाने लगीं. 1957 में निरंकारी मिशन के उद्देश्य और इसके बनने की कहानी को लेकर एक किताब सामने आई जिसका नाम था अवतार वाणी.
जैसे-जैसे संगठन बड़ा होता गया, उसके काम का विस्तार होता गया.
जैसे-जैसे संगठन बड़ा होता गया, उसके काम का विस्तार होता गया. (सांकेतिक फोटो)

वक्त बीतता गया और संगठन बड़ा होता गया. 5 नवंबर 1963 को निरंकारी संत समागम का वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया गया. इस दिन इस संगठन को विस्तार देने वाले बाबा अवतार सिंह ने संगठन के मुखिया का पद छोड़ दिया और एक आम निरंकारी की तरह काम करने का फैसला लिया. इस संगठन की जिम्मेदारी आ गई बाबा गुरुबचन सिंह पर जो उस वक्त तक इस संगठन की आध्यात्मिक शिक्षाओं के मुखिया थे. गुरुबचन सिंह ने भी संगठन को आगे बढ़ाया. 1971 में गुरूबचन सिंह के बेटे अवतार सिंह ने भी संत निरंकारी मिशन की सदस्यता ले ली और 1975 में युवाओं को इस संगठन से जोड़ने के लिए यूथ फोरम बनाया और संगठन के काम को आगे बढ़ाया.
निरंकारियों पर कट्टरपंथियों ने किया हमला, पुलिस फायरिंग में मारे गए 16 लोग

80 के दशक में जनरैल सिंह भिंडरावाले निरंकारियों का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था.

बाबा गुरुबचन सिंह और उनके बेटे बाबा अवतार सिंह मिशन को आगे बढ़ाने के काम में लगे हुए थे. बाबा अवतार सिंह ने अवतारवाणी और युग पुरुष जैसी रचनाएं कीं. इस वजह से संगठन का देश के साथ ही विदेश में भी नाम हो रहा था. और इसी वजह से सिख चरमपंथियों को परेशानी शुरू हो गई. चरमपंथियों ने बाबा गुरुबचन सिंह पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी रचना अवतारवाणी और युग पुरुष में सिख धर्म और सिख गुरुओं की आलोचना की है. उस वक्त चरमपंथियों के नेता के तौर पर सबसे बड़ा नाम सामने आया था जनरैल सिंह भिंडरावाले का. जनरैल सिंह भिंडरावाले उस वक्त तक निरंकारियों का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था. इसी बीच 13 अप्रैल 1978 को बैसाखी पड़ रही थी. अमृतसर में निरंकारी समागम होना था. हजारों लोग जुटे थे और पंजाब की शिरोमणि अकाली दल की सरकार ने कार्यक्रम की इज़ाजत दे रखी थी.

भिंडरावाले ने 200 लोगों के साथ मिलकर बाबा गुरुबचन सिंह का सिर काटने की कोशिश की थी.

लेकिन भिंडरावाले ने अमृसतर के स्वर्ण मंदिर से एक आदेश जारी किया. कहा कि वो निरंकारी सम्मेलन नहीं होने देगा और अगर इसका आयोजन किया जाता है, तो वो बाबा गुरुबचन सिंह का सिर धड़ से अलग कर देगा और निरंकारियों के छोटे-छोटे टुकड़े कर देगा. लेकिन गुरुबचन सिंह नहीं माने. वो निरंकारियों को संबोधित करने के लिए पहुंचे. इसे देखते हुए भिंडरावाले और अखंड कीर्तनी जत्था के फौजा सिंह के नेतृत्व में करीब 200 लोगों की फौज ने निरंकारी सम्मेलन में हमला कर दिया. फौजा सिंह ने निरंकारी गुरु बाबा गुरुबचन सिंह का सिर काटने की कोशिश की, लेकिन गुरुबचन सिंह के बॉडीगार्ड ने गोली चला दी और फौजा सिंह की मौत हो गई. मौका पाकर भिंडरावाले वहां से भाग गया और फिर पुलिस ने मोर्चा संभाल लिया. लोगों को बचाने के लिए पुलिस को भी गोलियां चलानी पड़ीं. पुलिस फायरिंग में और भी 15 लोग मारे गए. इनमें 13 चरमपंथी थे, जबकि तीन आम निरंकारी थे.
पुलिस ने दर्ज किया केस, कोर्ट से बरी हुए गुरुबचन सिंह
अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च संस्था है.
अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च संस्था है.

16 लोगों की मौत के बाद पंजाब पुलिस ने केस दर्ज किया. नामजद लोगों में बाबा गुरुबचन सिंह भी थे. केस चला और फिर करनाल कोर्ट का फैसला आया, जिसमें बाबा गुरुबचन सिंह को बाइज्जत बरी कर दिया गया. कोर्ट ने कहा कि गुरुबचन सिंह के बॉडीगार्ड ने आत्म रक्षा में गोली चलाई है. फैसला लोवर कोर्ट का था और फिर पंजाब सरकार ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील भी नहीं की. इस हमले का एक और असर हुआ. वो ये कि जब निरंकारी सम्मेलन में 16 लोग मारे गए, तो उस वक्त अकाल तख्त ने एक आदेश जारी किया. अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च संस्था मानी जाती है. उस वक्त अकाल तख्त के मुखिया थे साधु सिंह. अकाल तख्त के मुखिया को जत्थेदार कहा जाता है और सभी सिखों को उनका फैसला मानना होता है. तो बतौर जत्थेदार साधु सिंह ने सभी सिखों को निरंकारियों से संबंध तोड़ने का आदेश दिया. इसके बाद से ही सिखों और निरंकारियों के बीच चल रहा विवाद और भी बड़ा हो गया. और इसी हमले के साथ भिंडरावाले का नाम भी मीडिया की सुर्खियों में आ गया.
तीन बार हमला और फिर मारे गए बाबा गुरुबचन सिंह
चौथी बार के हमले में बाबा गुरुबचन सिंह मारे गए.
चौथी बार के हमले में बाबा गुरुबचन सिंह मारे गए.

कोर्ट से रिहाई के बाद बाबा गुरुबचन सिंह के पक्ष में माहौल बनने लगा. वहीं इसके विरोध में अकाल तख्त पहले ही आदेश जारी कर चुका था कि कोई भी सिख निरंकारियों से संबंध नहीं रखेगा. इसे प्रमोट करने का काम किया बब्बर खालसा ने, जिसे बनाया था बीबी अमरजीत कौर ने. बीबी अमरजीत कौर उन्हीं फौजा सिंह की पत्नी थीं, जिनकी हत्या बाबा गुरबचन सिंह के बॉडीगार्ड ने की थी. इसके अलावा दमदमी टकसाल का नेतृत्व कर रहा जरनैल सिंह भिंडरावाले भी सिखों में निरंकारियों के लिए गुस्सा भर रहा था. अलग सिख राज्य की मांग कर रहा दल खालसा और ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन ने भी सिखों को उकसाने में खासी भूमिका निभाई. नतीजा ये हुआ कि बब्बर खालसा और भिंडरावाले ने मिलकर पंजाब और उसके आस-पास के इलाकों में कई निरंकारियों की हत्याएं कीं. बब्बर खालसा ने गोल्डेन टेंपल में शरण ली और वहीं से सिख कट्टरपंथ को पाला-पोसा जाने लगा. अब इन चरमपंथियों ने एक बार फिर से बाबा गुरुबचन सिंह को निशाना बनाने की कोशिश की. पहले यूपी के कानपुर में और फिर मध्यप्रदेश के दुर्ग में बाबा गुरुबचन सिंह पर हमला किया. लेकिन इन दोनों ही हमलों में बाबा गुरुबचन सिंह बच गए.
शहीदगंज गुरुद्वारा उन लोगों की याद में बना है जो अमृतसर में पुलिस की गोलियों से मारे गए थे.
शहीदगंज गुरुद्वारा उन लोगों की याद में बना है जो अमृतसर में पुलिस की गोलियों से मारे गए थे.

इसी तरह की एक सभा 24 अप्रैल, 1980 को दिल्ली में हो रही थी. इस बार चरमपंथी कामयाब हो गए. अखंड कीर्तनी जत्था के रणजीत सिंह नाम के चरमपंथी की अगुवाई में हमलावरों ने बाबा गुरुबचन सिंह को गोली मार दी और बाबा की मौत हो गई. इसके बाद पुलिस ने 20 लोगों को गिरफ्तार किया और इसमें भी सारे लोग भिंडरावाले के नज़दीकी थे. वहीं गिरफ्तारी से बचने के लिए भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर में पनाह ले ली. इसके बाद निरंकारियों के और भी लोग मारे गए. दूसरी ओर रणजीत सिंह ने 1983 में आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन भिंडरावाले और भी मजबूत हो गया और खून-खराबा करने लगा. उसे निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया, जिसमें भिंडरावाले मारा गया. ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या तक कर दी गई. वो एक दूसरी ही कहानी है. लेकिन गुरुबचन सिंह की हत्या करने वाला रणजीत सिंह 13 साल के लिए जेल में रहा. 1996 में उसे छोड़ दिया गया था. लेकिन फिर 1997 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी सजा को बरकरार रखा और जमानत को रद्द कर दिया. रणजीत सिंह ने आत्मसमर्पण करने से इंकार कर दिया और उस वक्त की सरकार ने तनावपूर्ण स्थिति से बचने के के लिए आनन फानन में रणजीत की बाकी सज़ा माफ़ कर दी.

बाबा हरदेव सिंह और उनकी पत्नी सविंदर कौर के बाद अब संस्था की कमान उनकी बेटी सुदीक्षा के हाथ में है.

इसके बाद से ही सिखों और निरंकारियों के बीच लड़ाई चलती रही है. बाबा गुरुबचन सिंह की हत्या के बाद निरंकारी मिशन की कमान उनके बेटे बाबा हरदेव सिंह ने संभाली और उसे दुनिया भर में फैलाया. भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी निरंकारी मिशन के आश्रम हैं और पूरी दुनिया में इस पंथ को मानने वाले लाखों लोग हैं. 13 मई, 2016 को बाबा हरदेव सिंह कनाडा में थे. एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई. इसके बाद संस्था की कमान उनकी पत्नी सविंदर कौर ने संभाली. 5 अगस्त, 2018 को उनकी भी मौत हो गई और अब इस संस्था की मुखिया बाबा हरदेव सिंह और सविंदर कौर की बेटी सुदीक्षा संभाल रही हैं.


 

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