‘मैं लेस्बियन हूं.’
टेकनीकली ये वाक्य निरापद है. एक इंसान कह रहा है कि वो दूसरे से प्यार करता है. लेस्बियन शब्द से बस इतना पता चलता है कि ये दोनों इंसान लड़कियां हैं. ये कोई अपराध नहीं है. बावजूद इसके, लोगों की नज़रें ये शब्द सुनके तिरछी हो जाती हैं. लोग इसे शर्म से जोड़ते हैं. कितनी शर्म, ये बताने की ज़रूरत नहीं है. और इस माहौल में कोलकाता के एक स्कूल में 10 लड़कियों से लिखित में ये ‘कंफेशन’ मांगा गया कि वो लेस्बियन हैं. कारण ये बताया गया कि ये इन लड़कियों को ‘सही राह पर’ लाने की कोशिश थी.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक स्कूल से जुड़े एक अधिकारी ने ये कहा कि ये लड़कियों क्लास में ‘नॉटी’ हो रही थीं तो उन्हें स्कूल की हेडमिस्ट्रेस ने ऑफिस बुला लिया और कंफेशन लिखवाया. ये उन्हें अनुशासित करने की एक ‘सामान्य’ सी कोशिश थी. इन लड़कियों के माता-पिता को भी चर्चा के लिए बुलाया गया था. विवाद होने पर ये लिखित कंफेशन लड़कियों के मां-बाप को लौटा भी दिए गए थे.

लेकिन समाचार एजेंसी IANS को दिए अपने बयान में हेडमिस्ट्रेस शिखा सरकार ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे ये प्रतीत हो कि उनसे कुछ गलत हुआ है. वो लड़कियों को ‘सही रास्ते’ पर लाने वाले अपने बयान पर टिकी हुई हैं.
लेस्बियन होने या इस बात को स्वीकारने में कुछ गलत नहीं है. लेकिन किसी की ओर झुकाव या प्यार एक बेहद निजी मसला होता है. इससे जुड़ी बातें जब सार्वजनिक रूप से उछाली जाती हैं तो आहत होना लाज़मी है. स्कूल एक ऐसा समय होता है जब बच्चों का मन गीली मिट्टी की तरह होता है. उसपर आसानी से छाप पड़ जाती है. वो लड़कियां पहले ही अपने इर्द-गिर्द फैली भ्रांतियों के चलते किसी अपराधबोध में होंगी. अब जब उनसे एक कंफेशन लिखवा लिया गया है उनके मन पर ये पूरा अनुभव एक ट्रॉमा बनकर दर्ज हो गया होगा और एक बिलकुल सामान्य चीज़ उन्हें अब गंदी लगने लगी होगी.
इस पूरे वाकये में सिर्फ एक चीज़ कुछ राहत देने वाली थी. वो ये कि इन लड़कियों के माता-पिता हैरेसमेंट की इस घटना पर चुप नहीं बैठे. वो स्कूल गए और इस बात पर विरोध जताया. कोलकाता का एक एनजीओ भी स्कूल के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कर रहा है.
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