कपड़े महंगे होंगे या नहीं? जानिए सरकार ने क्या फैसला लिया है
GST काउंसिल ने टेक्सटाइल पर टैक्स 12% करने का फैसला टाला
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1 जनवरी से कपड़ों पर महंगाई की मार नहीं पड़ेगी. सरकार ने आम आदमी को न्यू ईयर सरप्राइज देते हुए टेक्सटाइल पर 5 के बजाय 12 फीसदी जीएसटी वसूलने का फैसला फिलहाल टाल दिया है. केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की अगुवाई में शुक्रवार 31 दिसंबर को हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में आमराय से यह फैसला लिया गया. अब काउंसिल की अगली बैठक में इस पर चर्चा होगी. हालांकि 1000 रुपये से कम कीमत के जूते-चप्पलों पर 12 फीसदी टैक्स का बोझ बढ़ना तय है. इस पर काउंसिल ने कोई राहत नहीं दी है. इस बैठक से पहले कई राज्यों के वित्तमंत्रियों ने निर्मला सीतारमण से कपड़े पर टैक्स बढ़ोतरी वापस लेने की मांग की थी. पूरे देश के कपड़ा व्यापारी भी इसका विरोध कर रहे थे.
नए स्लैब पर फैसला टला
जीएसटी काउंसिल ने टैक्स दरों को तर्कसंगत बनाने का फैसला भी अगली बैठक तक के लिए टाल दिया है. बैठक के बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मीडिया को संबोधित किया. उन्होंने बताया कि टेक्सटाइल पर टैक्स रेट 5 फीसदी से 12 फीसदी करने के फैसले पर कई तरफ से चिंता जताई जा रही थी. सरकार ने राज्यों और उद्योग-व्यापार संगठनों के विचार सुने. काउंसिल में इस पर चर्चा हुई और एकमत से राय बनी कि टैक्स बढ़ाने का यह उचित समय नहीं है. इस पर रेट फिटमेंट कमिटी फिर से विचार करेगी. वह अपनी राय फरवरी तक काउंसिल के सामने रखेगी. फरवरी के अंत या मार्च में काउंसिल की बैठक होगी. उसमें टेक्सटाइल पर कोई फैसला होगा. यह पूछे जाने पर कि सरकार ने फुटवियर पर बढ़ोतरी वापस क्यों नहीं ली, वित्तमंत्री ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया. लेकिन यह जरूर कहा कि फिलहाल टेक्सटाइल में टैक्स बढ़ोतरी टालने पर ही राय बनी है. अगली बैठक में ही मौजूदा टैक्स स्लैब में बदलाव और नए स्लैब पर चर्चा होगी. सरकार जीएसटी के चार मेन स्लैब 5,12,18 और 28 फीसदी की जगह तीन स्लैब लाने पर विचार कर रही है. अटकलें हैं कि 12 और 18 फीसदी को मर्ज कर 15 फीसदी किया जा सकता है.
क्या है कपड़े पर पेच ?
17 सितंबर को जीएसटी काउंसिल की पिछली बैठक में सिंथेटिक, कॉटन, वूलन सहित सभी तरह के क्लॉथ फैब्रिक्स पर जीएसटी की मौजूदा दर 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी करने का फैसला किया गया था. यह 1 जनवरी 2022 से लागू होना था. इस बढ़ोतरी के पीछे सरकार की दलील थी कि कपड़ा इंडस्ट्री अरसे से शिकायत कर रही है कि उसके रॉ मैटीरियल पर उनके उत्पादों के मुकाबले ज्यादा टैक्स है. यानी मैनमेड फाइबर और यार्न पर 18 फीसदी और 12 फीसदी जीएसटी लगता है. जबकि टेक्सटाइल प्रॉडक्ट्स यानी बिना सिले कपड़े पर 5 फीसदी टैक्स है. एक हजार रुपये तक मूल्य के रेडिमेड गारमेंट पर भी 5 फीसदी ही टैक्स लगता है. ऐसे में मैन्यूफैक्चरर्स को इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (IDS) की दिक्कतें पेश आती हैं. यानी वो अपनी हर बिक्री के बाद सरकार को तो 5 फीसदी टैक्स देते हैं, लेकिन रॉ मैटीरियल की खरीद पर चुकाए गए 12 और 18 फीसदी टैक्स का रिफंड क्लेम करते हैं. इसके मिलने में कई दिक्कतें आती हैं. इंडस्ट्री की मांग थी कि इनपुट यानी खरीद पर टैक्स रेट, आउटपुट यानी बिक्री के टैक्स रेट के बराबर किया जाए. लेकिन सरकार ने इस बराबरी के लिए पीछे टैक्स घटाने के बजाय आगे टैक्स बढ़ा दिया. यानी कपड़े और अन्य टेक्सटाइल फैब्रिक्स पर 5 फीसदी की जगह 12 फीसदी जीएसटी लगाने का फैसला किया.
टेक्सटाइल इंडस्ट्री की सांकेतिक तस्वीर
देश भर में हो रहा था विरोध राहत के नाम पर हुई इस बढ़ोतरी को देश भर के कपड़ा व्यापारियों ने आड़े हाथ लिया और वे सड़कों पर उतर आए थे. कारण यह था कि बढ़ी हुई दरों से सिंथेटिक और पॉलिस्टर मैन्यूफैक्चरर्स और बहुत हद तक सरकार को भी इन्वर्टेड ड्यूटी की समस्या से तो राहत मिल गई. लेकिन इंडस्ट्री में 60-70 पर्सेंट तादाद कॉटन बेस्ड फैब्रिक्स बनाने और बेचने वालों की है, जिनके उत्पादों पर टैक्स रेट दो गुने से भी ज्यादा होने वाला था. व्यापार संगठनों के प्रतिनिधि टैक्स घटाने की मांग के साथ पिछले दिनों वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से भी मिले थे. जीएसटी एक्सपर्ट्स का भी कहना था कि चूंकि ज्यादातर टेक्सटाइल प्रॉडक्ट्स पर जीएसटी की दर 5 पर्सेंट से 12 पर्सेंट हो जाएगी, ऐसे में समस्या घटने के बजाय बढ़ जाएगी. समस्या अगर रॉ मैटीरियल पर ज्यादा टैक्स की है तो सरकार को वह टैक्स घटाना चाहिए, न कि फाइनल गुड्स पर रेट बढ़ाकर मामला बराबर करना चाहिए. क्या है इन्वर्टेड स्ट्रक्चर ? जब कच्चे माल पर टैक्स रेट ज्यादा और फाइनल उत्पाद पर कम हो, तो कारोबारी को पूरा इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिल पाता. मसलन, जब कोई कारोबारी कपड़े पर 5 पर्सेंट टैक्स चार्ज करके सरकार को जमा कराता है, तो वह अपने कच्चे माल पर चुकाए गए टैक्स को वापस लेने का हकदार भी होता है. यह क्रेडिट उसके आगे के टैक्स में एडजस्ट हो जाता है. लेकिन जब कच्चे माल पर रेट उत्पाद के रेट से कई गुना है तो यह क्रेडिट ज्यादा बनता है. कई बार सरकार को जितना टैक्स दिया है, उससे भी ज्यादा. ऐसे में उलटे सरकार को रिफंड देना पड़ता है. रिफंड की प्रक्रिया बेहद जटिल और बोझिल होती है. कुछ रिफंड तो वर्षों तक लटके रहते हैं. ऐसे में इंडस्ट्री और सरकार दोनों ही इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर से निजात पाना चाहते हैं. सरकार की भी कोशिश रहती है कि किसी भी उत्पाद के कच्चे माल पर टैक्स उस उत्पाद के रेट से ज्यादा न हो.